‘हाँ उन्हीं लोगों से दुनिया में शिकायत है हमें, हाँ वही लोग जो अक्सर हमें याद आए हैं’
राही मासूम रज़ा की शायरी दुनिया और इंसानी परिस्थितियों पर बिल्कुल सही बैठती है। हमें अक्सर जिन लोगों से शिकायत होती है वही लोग अक्सर हमें याद आते हैं। इंसान के जिंदा रहने पर उसकी दुनिया से और दुनिया की उससे शिकायतें लगी रहते है लेकिन दुनिया से जाने या बिछड़ने के बाद शिकायतों की जगह यादें ले लेती हैं। आज राही मासूम रज़ा की जिंदगी के ऐसे ही यादगार पन्नों को पलटने का दिन है। आज उनका जन्मदिन है।
बंटवारे का दर्दनाक मंजर अपनी आंखों से देखा
1927 में उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में राही मासूम रज़ाका जन्म हुआ था। वहीं पढ़े-लिखे। बचपन में बीमारी के चलते पढ़ाई छोड़नी पड़ी लेकिन हार नहीं मानी और बड़े हुए तो अलीगढ़ आए। वहां पढ़ाई लिखाई पूरी की। बीस बरस के थे जब आजादी और देश का बंटवारा देखा। उस बंटवारे की तस्वीरें दिल में ताजा रह गईं। मन-मस्तिष्क से इतने ‘मेच्योर’ हो चुके थे कि कुछ भी भूले नहीं। वो साठ का दशक जब उनकी कलम ने उन यादों को कागज पर उतारा और ‘आधा गांव’ लिखा, जो आज भी हिंदी साहित्य के सबसे प्रचलित उपन्यासों में से एक है। आज भी इस उपन्यास का सामाजिक ताना-बाना लोग नहीं भूले।
‘आधा गांव’ के बाद फिल्मों के लिए शुरू किया लेखन
राही मासूम रज़ा को ‘आधा गांव’ के लिए 60 के दशक में प्रसिद्धि मिली तो वहीं 70 के दशक में उन्होंने कई कामयाब फिल्मों के लिए लिखा। 1977 में रिलीज फिल्म ‘आलाप’ में उन्होंने कहानी और गाने लिखे। एक साल बाद ही उनकी लिखी फिल्म गोलमाल आई। जिसके डायलॉग आज भी याद किए जाते हैं।
बीआर चोपड़ा की ‘महाभारत’ में लिखे डायलॉग
आपको 90 के दशक का वो दौर याद होगा या आपने अपने बड़ों से उस दौर की कहानियां और टीवी सीरियल्स के बारे में सुना/देखा होगा।
यह वही दौर था जब महाभारत और रामायण देखने के लिए गलियां सुनसान हो जाती थीं। ब्लैक एंड वाइट टीवी का दौर जिसमें सीरियल्स देखने का अलग ही क्रेज था। डॉ राही मासूम रज़ाहिंदुस्तानी भाषा के अप्रतिम साहित्यकार थे। उनकी कई कालजयी रचनाएं लोगों के बीच आज भी लोकप्रिय है। सरल-सहज भाषा शैली और कहानियों का यथार्थ चित्रण राही साहब का लेखकीय चरित्र था लेकिन महाभारत के संस्कृतनिष्ठ संवाद को राही साहब ने आमजन की भाषा में लिखा।
जब बीआर चोपड़ा को मिलने लगी नफरतभरी चिट्ठियां
राही साहब के उपन्यास ‘सीनः75’ का अंग्रेजी में अनुवाद करने वाली पूनम सक्सेना ने अपनी इस किताब से संबंधित एक अंग्रेजी लेख में एक दिलचस्प किसी का जिक्र किया है। राही साहब से जब पहली बार निर्देशक बी आर चोपड़ा ने महाभारत धारावाहिक के संवाद लिखने की पेशकश की थी तब उन्होंने समय की कमी का हवाला देते हुए संवाद लिखने से इंकार कर दिया था, लेकिन बीआर चोपड़ा ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में महाभारत के संवाद लेखक के रूप में राही मासूम रज़ाके नाम की घोषणा पहले ही कर दी थी। जब यह बात हिन्दूवादी संस्थाओं तक पहुंची तो एक मुसलमान के हिंदू धर्मग्रंथ पर आधारित धारावाहिक के संवाद लेखक होने का विरोध करते हुए लगातार लिख रहे थे कि ‘क्या सभी हिंदू मर गए हैं, जो चोपड़ा ने एक मुसलमान को इसके संवाद लेखन का काम दे दिया।‘
‘क्या मैं भारतीय नहीं’
किताब के मुताबिक बीआर चोपड़ा ने ये सारी चिट्ठी राही साहब के पास भेज दिए। राही साहब ने चोपड़ा साहब को फोन करके कहा ‘ मैं महाभारत लिखूंगा। मैं गंगा का पुत्र हूं। मुझसे ज्यादा भारत की सभ्यता और संस्कृति के बारे में कौन जानता है।’ इस संबंध में राही साहब ने साल 1990 में एक इंटरव्यू में कहा था ‘मुझे बहुत दुख हुआ। मैं हैरान था कि एक मुसलमान द्वारा पटकथा लेखन को लेकर इतना हंगामा क्यों किया जा रहा है। क्या मैं एक भारतीय नहीं हूं।‘ मासूम रज़ाको महाभारत धारावाहिक के संवादों के लिए खासतौर पर जाना जाता है जिसके बाद से ही उन्हें आधुनिक भारत का वेदव्यास कहा जाने लगा था।…Next
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