अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने और अपनी मजबूत युद्ध क्षमता के लिए मशहूर रहे मैसूर के टीपू सुल्तान की 20 नवंबर को जयंती मनाई जा रही है। टीपू को आधुनिक तोपों और युद्ध कौशल के लिए भी जाना जाता है। लंबी दूरी तक तेज विस्फोट के साथ मार करने वाली तोपों को ईजाद करने के लिए टीपू को फॉदर ऑफ रॉकेट भी कहा जाता है।
युद्ध के लिए तकनीक का इस्तेमाल
तत्कालीन मैसूर राज्य में 20 नवंबर 1750 को जन्में टीपू सुल्तान के पिता हैदर अली राज्य के सुल्तान और कुशल योद्धा थे। पिता की मृत्य के बाद टीपू सुल्तान को मैसूर का सुल्तान बनाया गया था। मैसूर राज्य पर आंखे गड़ाए अंग्रेज टीपू को पद से हटाकर खुद राज्य हथियाना चाहते थे। इसी कारण अकसर अंग्रेजों और टीपू के सैनिकों के बीच झड़पें होती रहती थीं। शुरुआती झड़पों से टीपू समझ गए थे कि अंग्रेजों से निपटने के लिए खास रणनीति और तकनीक का इस्तेमाल करना होगा।
पहली लोहे की तोप बनवाई
टीपू सुल्तान के पिता के पास 50 तोपें और उनके चलाने वाले करीब 100 लोग थे। टीपू ने एक तोप को तेज और लगातार चलाने के लिए कम से कम चार लोगों को नियुक्त करने की जरूरत पर काम किया। टीपू सुल्तान खुद भी एक तेज तर्रार तलवारबाज और एक कुशल तोप चालक थे। इसलिए उन्होंने अंग्रेजों को हराने के लिए अपनी तोपों को और विकसित करने की तैयारी की। इस कड़ी में उन्होंने अपने पिता के समय से बनाई जा रही पहली लोहे के केस वाली तोप में कई महत्वपूर्ण बदलाव कर उसकी मारक क्षमता को विकसित किया।
3 मिनट की बजाय 1 मिनट में गोला दागने लगीं तोपें
टीपू सुल्तान ने 18वीं सदी के दौरान अपने शासन काल में लोहा, एल्यूमुनियम और लकड़ी के मिश्रण से बनीं तोपों में बदलाव करते हुए उन्हें पूरी तरह से लोहे और पीतल से बनवा दिया। इससे गोले दागने के बाद नाल के गर्म होने की समस्या से काफी हद तक छुटकारा मिला और गोले दागने की गति भी पहले काफी तेज हो गई। टीपू की इस तकनीक से एक तोप जो औसत दूसरा गोला दागने के लिए 3 मिनट में तैयार होती थी वह अब 1 मिनट में गोला दागने के लिए तैयार होने लगी। बाद में स्पीड की और बेहतर हो गई। वहीं, एक तोप पर तोपची सैनिकों की संख्या में इजाफे से बड़ा परिवर्तन हुआ।
बांस से बनाए रॉकेट तो कहलाए फादर ऑफ रॉकेट
टीपू सुल्तान के समय में सबसे आधुनिक और मजबूत तोपों का इस्तेमाल किया गया। टीपू ने युद्ध में जीत हासिल करने के लिए तोपों की उपयोगिता को देखते हुए तोप बनाने की यूनिट को भी लगवाया। अंग्रेजों ने कई बार टीपू पर चढ़ाई की लेकिन वह तोपों से निकलने वाले गोलों के भयानक विस्फोट से घबराकर पीछे हट गए और हार मान ली। टीपू सुल्तान को आधुनिक तकनीक की तोपें बनाने के लिए फॉदर ऑफ रॉकेट कहा जाता है। हालांकि, टीपू सुल्तान को बांस में बारूद लगाकर लंबी दूरी तक मार करने वाला हथियार बनाने के लिए भी फॉदर ऑफ रॉकेट कहा जाता है। मॉडर्न रॉकेट साइंस के जनक रॉबर्ट गोडार्ड ने टीपू सुल्तान को रॉकेट का जनक माना है। …Next
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