Menu
blogid : 26149 postid : 460

जब अश्लील साहित्य लिखने पर इस्मत चुगतई और मंटो पर चला था मुकदमा

आज उर्दू की जानी-मानी लेखिका इस्मत चुगताई का 107वां जन्मदिन है। उनके जन्मदिन पर गूगल ने डूडल बनाकर उन्हें ट्रिब्यूट दिया है।
आधुनिक उर्दू अफसानागोई के चार आधार स्तंभ माने जाते हैं, जिनमें मंटो, कृशन चंदर, राजिंदर सिंह बेदी और चौथा नाम इस्मत चुगताई का नाम आता है।

Pratima Jaiswal
Pratima Jaiswal21 Aug, 2018
दाएं हाथ की तरफ बैठी हैं लेखिका इस्मत चुगताई. साथ में हैं मशहूर अभिनेत्री रेखा

 

23 साल की उम्र में लिखी पहली कहानी ‘फसादी’
इस्मत ने 1938 में लखनऊ के इसाबेला थोबर्न कॉलेज से बी। ए। किया। कॉलेज में उन्होंने शेक्सपीयर से लेकर इब्सन और बर्नाड शॉ तक सबको पढ़ डाला। 23 साल की उम्र इस्मत आपा को लगा कि अब वे लिखने के लिए तैयार हैं। उनकी कहानी के साथ बड़ा ही दिलचस्प वाकया पेश आया। उनकी कहानी उर्दू की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘साक़ी’ में छपी। कहानी थी ‘फसादी’। पाठक इस्मत से वाकिफ थे नहीं, इसलिए उन्हें लगा कि आखिर मिर्जा अजीम ने अपना नाम क्यों बदल लिया है, और इस नाम से क्यों लिखने लगे।

 

 

इस्मत चुगताई पर चला था ‘लिहाफ’ के लिए मुकदमा
अपनी शादी से दो महीने पहले इस्मत ने सबसे विवादस्पद कहानी ‘लिहाफ’ लिखी। जो शाही घराने की एक ऐसी बेगम पर आधारित थी, जिनके बादशाह ‘गे’ थे और वो दिन-रात लड़कों से घिरे रहते थे, प्यार के लिए तरसती बेगम का आकर्षण अपनी एक दासी की ओर होता है और उनके बीच जिस्मानी तालुकात हो जाते हैं। उस वक्त ‘लेस्बियन’ या ‘गे’ मामलों पर खुलकर लिखी गई यह पहली कहानी थी।
मंटो इस्मत चुगतई के बेहद अच्छे दोस्त थे। इस्मत की लिखी ‘लिहाफ’ को अश्लील मुद्दा मानते हुए उन्हें अदालत में तलब किया गया था। वहीं मंटो की कहानी ‘बू’ को अश्लील और असामाजिक माना गया था। इसमें ‘छाती’ शब्द को अश्लील माना गया। अदालत में उपस्थित गवाह के मुताबिक औरतों के सीने को छाती कहना अश्लीलता है यानि उनके वक्षों का उल्लेख किया जाना अश्लील से भी अश्लील बात है। इस्मत चुगताई पर लिखी गई ‘An Uncivil Woman : writings on ismat chugtai’ अदालत में जो कुछ भी हुआ, उसे विस्तार से बताया गया है।

मंटो इस्मत के बारे में कहते थे ‘अगर इस्मत आदमी होती तो वह मंटो होती और अगर मैं औरत होता तो इस्मत होता। ’

 

 

‘गरम हवा’ के लिए जीता था फिल्मफेयर
इस्मत आपा के पति फिल्मों से थे इसलिए उन्होंने भी फिल्मों में हाथ आजमाया। ‘गरम हवा’ उन्हीं कहानी थी। इस फिल्म की कहानी के लिए उन्हें कैफी आजमी के साथ बेस्ट स्टोरी के फिल्मफेयर पुरस्कार से नवाजा गया। उन्होंने श्याम बेनेगल की ‘जुनून’ (1979) में एक छोटा-सा रोल भी किया था।

24 अक्टूबर 1991 में दुनिया को कह गई अलविदा
24 अक्तूबर, 1991 को उनका निधन मुंबई मे हो गया। लेकिन विवाद यहां भी कायम रहे। उनका दाह संस्कार किया गया, जिसका उनके रिश्तेदारों ने विरोध किया। हालांकि, कई ने कहा कि उनका वसीयत में ऐसा लिखा गया था…Next

 

 

Read More :

बिना UPSC 10 पदों के लिए निकाली थी भर्ती, सरकार को मिले 6000 आवेदन

देश की पहली महिला मंत्री बनी थीं विजयलक्ष्मी पंडित, नेहरु-महात्मा गांधी के साथ स्वतंत्रता संग्राम में लिया था हिस्सा

जब अटल जी ने संसद में प्रणब मुखर्जी से कहा ‘आपका ही बच्चा है’

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh