- 21 Posts
- 353 Comments
कभी कभी यह समझ में नहीं आता की किसी बात पर प्रतिक्रिया स्वरुप हंसा जाये या क्रोधित हुआ जाये……वही स्थिति इस वक़्त है….आप लोग दिन-बदिन टीवी पर समाचार सुनते होंगे की किसी बच्ची, लड़की या महिला के साथ रेप या गैंगरेप किया गया….हमें इस बात का स्वयं ज्ञान है की उनमे से कितने दिन-दहाड़े चलती गाड़ियों में होते हैं या किसी सुनसान इलाके में सड़क के किनारे या गाँवों में जबरन लड़की को खेतो में ले जाकर या जब लड़की घर पर अकेली हो….फिर यह सोंच लेना की रात को आठ बजे के बाद तक काम करने वाली महिलाओं को उनके नियोक्ता द्वारा घर तक पहुंचा दिया जायेगा तो बलात्कार की घटनाएं रुक जाएँगी….कोरी कल्पना और एक कमज़ोर दलील है!
पुलिस वाले नए और सख्त कानूनों की मांग तो करते रहते हैं और उनके न बन पाने पर खुद को असहाय बताने लगते हैं, पर क्या हमें इस बात का पता नहीं है की जो कानून हमारे देश में पहले से ही बने हुए हैं, उनका पुलिस वाले कितनी सख्ती से पालन करवा रहे हैं! ये तो वही बात हो गयी की मंत्रियों को नगर के विकास के लिए जो फंड मिले उसे वो घोटालों से हज़म कर जाएँ और इस बात का रोना रोये की पैसे की दिक्कत की वजह से हम नगर का विकास नहीं करवा पा रहे हैं! खैर नेताओं की बात यहाँ पर करूँगा तो असली मुद्दा धरा का धरा रह जायेगा!
जिन पुलिस वालों पर इन महिलाओं की सुरक्षा का दायित्व है क्या वे उनके साथ बलात्कार नहीं करते? क्या थानों में बलात्कार नहीं होते? याद करिए कुछ दिन पहले ही एक लड़की को थाने बुलाकर उसके साथ बलात्कार करके उसकी हत्या कर दी गयी थी! क्या सलाखों के पीछे बंद औरतों के साथ बलात्कार नहीं होता, जब ऊँचे रसूख वाले लोग महिलाओं या लड़कियों के साथ बलात्कार करते हैं तब क्या होता है हम सबको पता है…..जब तक के बात मीडिया में उछल-उछल कर आम नहीं हो जाती तब तक तो किसी बिरले मामले में ही रिपोर्ट लिखी जाती है, अभी कुछ दिन पहले ही ऐसी घटनाएं घट चुकी हैं!
तो मेरा प्रश्न उन नीति निर्माताओं और उनको लागु करने वाले इन निम्न कोटि के पुलिस वालों से है की क्या वे इस बात की गारंटी ले सकते हैं की किसी बहुत सख्त कानून के बन जाने के बाद बलात्कार की घटनाये ख़त्म नहीं किन्तु आधी या आधी से कम हो जाएँगी? क्या तब दिन-दहाड़े किसी लड़की को किसी कार से अगवा कर बलात्कार या सामूहिक बलात्कार नहीं किया जायेगा?, क्या तब अकेली लड़की घर से बहार निकलते हुए सुरक्षित महसूस करने लगेगी? क्या तब घर वाले अकेली लड़की को घर पर छोड़ने में सहज महसूस करेंगे? क्या तब पुलिस वाले महिलाओं और लड़कियों की इज्ज़त को दिन में या रात में, अमीर से या गरीब से, नेता से या पुलिस से बचा सकने में कामयाब होंगे?
(मै मानता हूँ की किसी भी अपराध को सिर्फ कानून के बन जाने से रोका नहीं जा सकता हाँ यदि कानून का पालन करवाने वाले अपना कर्त्तव्य सही dhang से निभाएंगे तो उस अपराध में कमी ज़रूर हो जाएगी……बाकि बलात्कार एक ऐसा अपराध है जिसके होने का पूर्ण दायित्व पुलिस प्रशाशन पर नहीं डाला जा सकता बल्कि पूरे समाज को अपनी जीवन शैली में बदलाव करना होगा…….क्योंकि आज-कल जो विभिन्न माध्यमो से आम जनता तक पहुँच रहा है वह ज़्यादातर स्त्री और पुरुष की सोंच को दूषित कर रहा है जिसका परिणाम बढती हुयी बलात्कार की घटनाएं हैं!) अब हम और आप सोंचे-समझें की महिलाओं को सुरक्षा किसके द्वारा मिलेगी और किससे मिलेगी?
Read Comments