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मैं एक कवि हूँ अन्जाना…..
मेरी कोई पहचान नहीं,
मेरी वाणी में ओज नहीं……
मुझको शब्दों का ज्ञान नहीं,
बस मन में कोई पीड़ा है,
एक मानवता का कीड़ा है,
जो सदा काटता रहता है….
कुछ लिखने को उकसाता है,
जाने क्या इससे पाता है,
मैंने तो कुछ भी ना पाया,
इस दुनिया को भी ना भाया,
जब भी मै कविता कहता हूँ,
बस तन्हा तन्हा रहता हूँ,
श्रोता खुद में बतियाते हैं,
कभी बीच-बीच चिल्लाते हैं,
‘तू अब तक सोया-सोया है,
क्या उठ के मुंह न धोया है,
या काम के बोझ का है मारा,
तू ले ले टॉनिक सिंकारा,
या फिर तू लेले रीवाईटल
जी ले जीवन का हर एक पल,’
सब खिल्ली मेरी उड़ाते हैं,
क्या-क्या मुझको कह जाते हैं,
सुनकर शर्मिंदा होता हूँ,
घर आकर तब मै रोता हूँ,
मै जान गया हूँ हे ईश्वर
है कवि बनना आसान नहीं,
मै एक कवि हूँ अनजाना…
मेरी कोई पहचान नहीं,
मेरी वाणी में ओज नहीं
मुझको शब्दों का ज्ञान नहीं,
मै एक कवि हूँ अनजाना…
मेरी कोई पहचान नहीं,
मेरी कोई पहचान नहीं….
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