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स्त्रियों के विरुद्ध होती घरेलु हिंसा……एक नज़र

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DOMESTIC VIOLENCE
स्त्रियाँ सदैव से दुनिया के प्रत्येक हिस्से में पुरुषों के द्वारा शोषित की जाती रही है, यह एक ऐसी समस्या है जो किसी भी देश के शैक्षिक, आर्थिक, राजनीतिक या बौद्धिक रूप से विकसित होने के बाद भी उस समाज में पायी जाती है किन्तु भारतीय समाज में इसका जितना अधिक विस्तार है उतना सिर्फ कुछ ही गिने-चुने देशों में है! एक तरफ स्त्रियाँ आज लगभग प्रत्येक क्षेत्र में पुरुषों के बराबर आकर खड़ी हो गयी हैं दूसरी तरफ आज भी वह अपने ही घर में अपनों के बीच विभिन्न प्रकार से हिंसा और शोषण का शिकार हो रही है!
घरेलु हिंसा से तात्पर्य – घरेलु हिंसा उसे कहते हैं जब घर के एक सदस्य द्वारा दुसरे सदस्य के साथ कोई ऐसा व्यवहार किया जाये जिससे पीड़ित सदस्य के शरीर, किसी अंग, स्वास्थ्य या जीवन को खतरा उत्पन्न हो जाये….इसके अलावा किसी को मानसिक, आर्थिक या लैंगिक रूप से प्रताड़ित करना भी घरेलु हिंसा के अन्य प्रकार हैं!
प्रत्येक दिन पेपर पढ़ते हुए स्त्रियों के आत्महत्या करने, या आत्महत्या का प्रयास करने, दहेज़ के लिए जला दिए जाने या जलाने की कोशिश किये जाने, पति द्वारा बुरी तरह से पीटे जाने, पति द्वारा दूसरी शादी किये जाने, पति द्वारा पत्नी को घर से निकाल दिए जाने या इसी तरह की अन्य घटनाओं की कुछ खबरे सामने आ ही जाती हैं….ये वे घटनाएं होती हैं जो बड़े स्तर की होती हैं और सुर्ख़ियों में आ जाती हैं किन्तु इनसे कई गुना ज्यादा घटनाये जो सुर्ख़ियों में नहीं आ पाती रोज़ हमारे आस-पास घटती रहती हैं, कई बार तो हम स्वयं अपनी आँखों से ऐसा होते देखते है या अपने किसी जानने वाले के घर में ऐसी घटनाओ के घटने की खबरे सुनते हैं किन्तु ज़्यादातर मामलों में हम कभी बीच में नहीं पड़ते, और ऐसा होने का प्रमुख कारण यह है की हिंसा सहने वाली स्त्रियाँ स्वयं दुसरो को इन मामलो को अपना निजी मामला बताकर दूर रहने के लिए बोल देती हैं! वैसे भी किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किसी के घर की घंटी बजाने से ऐसी घटनाएं रुकने वाली नहीं हैं, हाँ तब हो सकता है हिंसा करने वाले इसे नयी तरह से करें और घरेलु हिंसा करते वक्त अपने घर की टीवी का वोल्यूम इतना बढ़ा दे की कोई और आवाज़ बाहर वालों को सुनाई न दे या स्त्री पर यह कह कर और ज़ुल्म करें की अगर आवाज़ निकाली तो और पीटूँगा! अतः हमें इस बुराई को दूर करने के लिए इसके प्रमुख कारणों को जानकर उनका निवारण करना होगा!
घरेलु हिंसा के कारण-
घरेलु हिंसा के सांस्कृतिक कारणों में कुछ प्रमुख है – *स्त्रियों को पुरुषो से निम्नतर माना जाना, *स्त्रियों को पति की संपत्ति माना जाना, *समाज में व्याप्त दहेज़ प्रथा, *स्त्रियों को ही सदा समझौता करने के लिए प्रेरित करना तथा घर की अन्य स्त्रियों द्वारा ही घर की बहू के प्रति घृणा रखना… इत्यादि!
आर्थिक कारण- * आज भी ज़्यादातर स्त्रियों का आर्थिक रूप से किसी मर्द पर निर्भर रहना, * स्त्रियों को आज भी पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी न दिया जाना(स्त्रिया पैतृक संपत्ति में हिस्सा रखती हैं किन्तु उन्हें अक्सर दिया नहीं जाता), *स्त्रियों के निजी क्षेत्रों में काम करने पर उनका गलत तरीके से शोषण किये जाने का खतरा(हालांकि स्त्रियाँ सरकारी क्षेत्रों में भी अक्सर शोषित की जाती हैं)…इत्यादि!
विधिक कारण- *स्त्रियों की ज़्यादातर संख्या द्वारा अपने अधिकारों और कानूनों से अपरिचित होना, *मुकदमो का लम्बे-लम्बे समय तक चलते रहना, * पुलिस और न्यायालय द्वारा भी स्त्री के प्रति असंवेदनशील व्यवहार किया जाना….इत्यादि!
राजनीतिक कारण- *विधायन द्वारा घरेलु हिंसा के मुद्दे को अधिक गंभीर न मानना, *स्त्रियों का राजनीतिक क्षेत्र में कम संख्या में होना, *स्त्रियों और परिवार के मामलों को लोगो का निजी मामला मानना….इत्यादि!
उपरोक्त समस्त कारणों से बढ़कर कुछ व्यक्तिगत कारण हैं जो घरेलु हिंसा के प्रति ज़िम्मेदार होते हैं जैसे- *कुछ लोगों का अत्यधिक आक्रामक होना या शीघ्र क्रोध आना, *पति-पत्नी के बीच आपसी समझदारी की का न होना …इत्यादि!
उपरोक्त दिए हुए कारण ही मुख्य रूप से घरेलु हिंसा के लिए ज़िम्मेदार हैं जिन्हें दूर करने के लिए एक-एक व्यक्ति, पूरे समाज और हमारे विधायनो और विधिक व्यवस्था को प्रयास करना होगा, तभी हम इस कुरीति से छुटकारा पा सकते हैं,
भारत में स्त्रियों के विरुद्ध होने वाले सभी प्रकार के अपराधों में लगभग 50 प्रतिशत सिर्फ उसके अपने घर के अन्दर ही उस पर किये जाते हैं चाहे वह उसका मायका हो या ससुराल, हाँ ससुराल में घरेलु हिंसा की घटनाएं और उनकी क्रूरता दोनों अधिक हो जाती है…
घरेलू हिंसा कई तरह के अमानवीय आचरणों द्वारा की जाती है जिसमे से कुछ प्रमुख का वर्णन निम्न प्रकार से किया जा सकता है- *गर्भ में ही लड़कियों को पैदा होने से पहले मार दिया जाना, *लड़कियों के पैदा होने के बाद उन्हें अनाथालय या मंदिरों के बाहर छोड़ दिया जाना, *लड़कियों को बचपन से ही घर के काम काज में लगा देना तथा छोटी-छोटी गलतियों पर पीटना, *घर में ही लड़कियों का उनके रिश्तेदारों द्वारा लैंगिक रूप से शोषण किया जाना, *शादी के समय दहेज़ के लिए मांग करना तथा शादी के बाद दहेज़ न मिलने या दहेज़ में और कुछ लाने के लिए स्त्रियों को पीटना, *दहेज़ की मांग पूरी न होने पर स्त्रियों को जला देना या मार डालना, *कई बार पतियों द्वारा अपनी पत्नी को वैश्यावृत्ति करने के लिए मजबूर करना, *पति द्वारा नशे में पत्नी को पीटना और उसके साथ अप्राकृतिक रूप से लैंगिक सम्बन्ध बनाने के लिए मजबूर करना, ससुराल वालों द्वारा छोटी-छोटी बात पर बहु को ताने मारना या पीटना, कई बार स्त्री का इतना मानसिक और आर्थिक शोषण करना की वह स्वयं आत्महत्या कर ले…इत्यादि!
कोई कहने के लिए स्त्रियों के सशक्तिकरण को चाहे जितना बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत करले किन्तु यह सत्य की आज भी प्रत्येक क्षेत्र में अपनी भागीदारी को दर्ज कराने के उपरान्त भी सामाजिक रूप से उसे वह दर्जा नहीं मिल पाया है जो उसे एक पुरुष के बराबर खड़ा कर सके, मेरा सभी लोगों से प्रश्न यह है की आखिर क्यों कोई भी व्रत करना हो तो स्त्री आगे, कोई त्याग करना हो तो स्त्री आगे, शादी के बाद सौ तरह के बंधन, सभी को खुश रखने की ज़िम्मेदारी एक बहू की, किसी काम में थोड़ी सी भी गलती हो गयी तो बहू की खैर नहीं, शादी-शुदा स्त्री को मांग में सिन्दूर, माथे पर बिंदी, गले में मंगलसूत्र, हांथो में चूड़ियाँ, पैरों में पायल और बिछिया, आखिर पुरुष को शादी के बाद क्यों नहीं साज-श्रृंगार के बंधन में बांधा जाता, क्यों नहीं हम एक शादी-शुदा मर्द और कुंवारे मर्द को देख कर पहचान सकते जबकि स्त्रियों के लिए ऐसा करना परम आवश्यक बाध्यता है…पुरुष शादी के बाद भी ऐयाशी कर सकने के लिए स्वतंत्र है, पैसे कमाने के अलावा क्या पुरुष की कोई ज़िम्मेदारी नहीं? अपनी पत्नी के सुख-दुःख का ख्याल रखने की, वक़्त मिले तो घर के काम में उसका हाँथ बटाने की, पत्नी से प्यार से उसका हाल जानने की…क्या इन सब बातों को करने से मर्द की मर्दानगी कम हो जाती है? मेरी तो नहीं होती!
घरेलु हिंसा एक अमानवीय कृत्य है कृपया इसे न करें….यह लेख और मेरा विरोध अभी जारी है………….

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