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हरियाणा नगरी चौटाला राजा

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बहुत समय पहले हमारे पाठ्यक्रम में एक कहानी थी, जिसका शीर्षक था “अंधेर नगरी चौपट राजा”! हम में से ज़्यादातर लोग उस काहानी से अवगत होंगे! एक ऐसा राज्य जहां के नियम-क़ानून बिना किसी औचित्य के बनाए गए थे! यदि राज्य में कोई अपराध होता था तो उसकी सजा किसी न किसी को अवश्य मिलती थी तथा इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था की जिसे सजा दी जा रही है वह दोषी है या निर्दोष है! जिसकी वजह से पूरे राज्य में अराजकता का माहौल था तथा जनता में भय व्याप्त था! पिछले दिनों हरियाणा में बढ़ रहे बलात्कार की घटनाओं तथा उन्हें रोकने के लिए खाप के द्वारा दिए गए बयान और चौटाला जी द्वारा उनका समर्थन किये जाने पर यही प्रतीत हो रहा है कि हरियाणा राज्य “अंधेर नगरी” है तथा चौटाला जी वहां के “चौपट राजा” हैं! संभवतः इससे अधिक उपयुक शीर्षक हरियाणा राज्य और चौटाला जी के लिए नहीं होगा! क्योंकि पहले तो आप एक ऐसे अपराध पर लगाम लगाने में नाकाम रहे हैं, जो स्त्री वर्ग के प्रति होने वाला सबसे जघन्य अपराध है! जो कि पूरे राज्य में बढ़ता चला जा रहा है! दूसरे अब आप एक ऐसे कानून को लागू करने का समर्थन कर रहे हैं, जो सम्पूर्ण स्त्री वर्ग के लिए शारीरिक प्रताड़ना का सबब तो बनेगा ही साथ ही उनके शैक्षिक, मानसिक, सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक विकास को अवरुद्ध कर देगा!
खाप की यह राय है कि लड़कियों की विवाह की आयु को घटाकर 15 वर्ष तथा लडको की आयु को 18 वर्ष कर दिया जाये तो इससे बलात्कार की घटनाओं पर लगाम लगाईं जा सकती है! हालांकि समस्त बुद्धिजीवी वर्ग को इस तरह के फैसले में प्रथम दृष्टया ही देश के कानून के प्रति विरोधाभास के साथ ही अनेक खामियाँ नज़र आ रही हैं, किन्तु ऐसी क्या बात है की कई-कई गाँव के लिए न्याय करने वाली खाप पंचायत और राज्य के सर्वाधिक ज़िम्मेदार व्यक्ति चौटाला जी को इसमें खामियों के बजाय बलात्कार की घटनाओं को रोकने की खूबियाँ नज़र आ रही हैं! चलिए खाप पंचायत के सम्बन्ध में तो हम समझ सकते हैं की उसमे शामिल ज़्यादातर लोग अनपढ़, अज्ञानी मर्द हैं, जिन्हें न तो देश के सामान्य ज्ञान की जानकारी है, न ही देश के संविधान और अन्य विधियों की जानकारी है! वे तो अपनी कूढ़ बुद्धि से पशुवत फैसले ले लेते हैं! जिसमे लगभग हर बार स्त्री वर्ग को ही हाशिये पर रखने की प्रवृत्ति देखने को मिलती है! किन्तु चौपट चौटाला जी ने क्यों इस तरह की राय का समर्थन कर दिया? संभवतः वे बलात्कार की घटनाओं को रोक पाने में नाकाम रहे तो किसी भी उल-जलूल उपाय का समर्थन करके ऐसा जताने की कोशिश की कि वर्तमान नियम-कानूनों में ही कमी है, जिससे ऐसी घटनाएं बढ़ रही हैं और अगर इन्हें बदल दिया जाए तो सब ठीक हो जाएगा! इसके अलावा शायद उनमे खाप पंचायतों के फैसले का विरोध करने की क्षमता ही न हो क्योंकि इससे उनके वोट बैंक पर बुरा असर पड़ने की भी संभावना हो सकती है और ये बात तो हम सब अच्छी तरह से जान चुके हैं की नेताओं के लिए वोट और सत्ता से बढ़कर कुछ भी नहीं!
अब इस फैसले के पक्ष में दिए गए तर्कों पर तथा अन्य पहलुओं पर नज़र डाल लेते हैं! खाप के महाविद्वानो का कहना है कि वर्तमान समय में बदलते हुए सामाजिक परिवेश और हमारी जीवन शैली की वजह से लड़कियों में साढ़े दस वर्ष की उम्र में तथा लडको में तेरह वर्ष की अवस्था में हार्मोन्स का परिवर्तन होने लगता है, जो उन्हें गलत कदम उठाने के लिए उकसाता है इसलिए ज़्यादातर अविवाहित लड़के-लडकियां ही ऐसी घटनाओं में शामिल रहते हैं! अतः ज़ल्दी से जल्दी विवाह कर देने से उनके इधर-उधर भटकने की संभावना ही नहीं रहेगी!
खाप के इस तर्क का पहला जवाब ये है की यदि हार्मोन्स परिवर्तन की आयु लड़कियों में साढ़े दस और लडको में तेरह वर्ष है तो आपको उनके विवाह की उम्र भी यही रखनी चाहिए! आखिर आपने ये पांच वर्ष की विशेष छूट किस आधार पर दे दी? क्यों आप माँ-बाप को बेवजह पांच वर्षों तक अपने लड़के-लड़कियों की निगरानी और उनकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी उठाने का कष्ट दे रहे हैं? क्योंकि अब सरकार तो किसी काम की रह नहीं गयी, जिससे सुरक्षा और न्याय की उम्मीद की जा सके! इसके अलावा आपकी इस बात का समर्थन तो कोई भी नहीं कर सकता की 15 वर्ष की आयु में लड़कियों और 18 वर्ष की आयु में लड़कों का विवाह कर देने से बलात्कार की घटनाएं लगभग ख़त्म हो जायेंगी! क्योंकि आज के समय में तो पुरुष वर्ग ऐसा वहशी होता चला जा रहा है, जो नवजात बच्चियों और बुज़ुर्ग महिलाओं के साथ ऐसा पाशविक कृत्य करने में भी पीछे नहीं है! गौरतलब है की वर्ष 2010 में 14 वर्ष से 18 वर्ष की आयु की लड़कियों के साथ होने वाली बलात्कार की घटनाओं का प्रतिशत मात्र 16.1 था! मतलब 15 से 18 वर्ष तक की लड़कियों के साथ होने वाली बलात्कार की घटनाओं का प्रतिशत लगभग 12-13 ही होगा! चूँकि हमारे देश में वर्तमान में लड़कियों की विवाह की आयु 18 वर्ष निर्धारित है इसलिए 18 वर्ष से अधिक आयु की लड़कियों के साथ होने वाली बलात्कार की घटनाओं तथा 15 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों के साथ होने वाली बलात्कार की घटनाओं पर तो आपके फैसले से कोई प्रभाव पड़ने वाला नहीं है! यानी की अगर मान लिया जाए की 15 वर्ष में लड़की की शादी कर देने से कुछ लड़कियां बलात्कार का शिकार होने से बच जायेंगी तो भी लगभग 87-88 प्रतिशत बलात्कार की घटनाओं पर इस फैसले से कोई भी प्रभाव नहीं पड़ने वाला क्योंकि वे घटनाएं 15 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों और 18 वर्ष से अधिक वर्ष की लड़कियों और स्त्रियों के साथ होती हैं!
रही बात लड़कों के जल्दी विवाह करने और बलात्कार की घटनाओं को अंजाम न देने के तर्क की! तो हम सभी इस बात से भी अवगत हैं, की बलात्कार को अंजाम देने वाले पुरुष वर्ग में 15 -16 वर्ष की आयु के किशोर से लेकर 50 -60 वर्ष की आयु तक के वृद्ध भी शामिल रहते हैं तथा उनमे से अधिकतर लोग बलात्कार इसलिए नहीं करते क्योंकि वे अविवाहित हैं! बल्कि इसलिए करते हैं क्योंकि उन्हें सही-गलत से कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि उन्हें एक से अधिक लोगों के साथ सम्बन्ध बनाने में ज्यादा मज़ा आता है, क्योंकि वे बदलते हुए परिवेश में कुंठित मानसिकता से ग्रस्त होते चले जा रहे हैं! इसके अलावा एक बड़ा कारण यह भी है की उन सबके ह्रदय से कानून का भय समाप्त होता जा है! इसके अलावा बात रही 18 वर्ष के किशोर के विवाह करने और घर-गृहस्ती को चलाने की, तो जब आज के युग में 25 -30 वर्ष के युवक बेरोज़गारी से ग्रस्त रहते हैं, तब भला 18 वर्ष का किशोर कौन से जतन करके अपना परिवार चलाएगा! इसका परिणाम यह होगा की लड़कियों का विवाह तो 15 वर्ष की आयु में होगा किन्तु किसी 25 -30 वर्ष के काम-धंधे या नौकरी करने वाले पुरुष से, क्योंकि कोई माँ-बाप अपनी लड़की का विवाह ऐसे लड़के से कभी नहीं करेंगे जिसके भविष्य के बारे में वे आश्वस्त न हो! ले-दे कर इस व्यवस्था का शिकार सिर्फ और सिर्फ स्त्री वर्ग ही होगा! जो वापस उसे उस मुगलकालीन दासता की ओर ले जाएगा, जहां उसे शिक्षा ग्रहण करने और अपने पैरों पर खड़े होने का अधिकार नहीं होगा! क्योंकि 30 वर्ष का पति नहीं चाहेगा की उसकी 15 वर्षीय पत्नी अन्य पुरुषों के संपर्क में आये!
अब बात खाप और चौटाला जी की कि क्यों वे हमेशा स्त्री वर्ग को ही अपने निर्णयों का शिकार बनाते रहते हैं! कुछ समय पहले खाप ने समाज में फैलती अश्लीलता को कम करने के लिए लड़कियों के जींस पहनने और मोबाइल रखने पर प्रतिबन्ध लगाने का आदेश दिया था! जबकि जींस पहनने से तो लड़की के पैर अच्छे से ढक जाते हैं और मोबाइल की उपयोगिता और आवश्यकता पड़ने पर उसके काम आने की खूबियाँ किसी को बताने की आवश्यकता ही नहीं! मुसीबत में पड़ी लड़की इसका उपयोग अपने बचाव के लिए कर सकती है! मोबाइल के गलत प्रयोग से कही अधिक उसका सदुपयोग होता है! लेकिन ये खाप और चौटाला जैसे लोग बिना सोचे समझे स्त्री वर्ग को अपने घटिया फरमान सुना देते हैं!
यदि आप को प्रतिबन्ध लगाना ही है तो अश्लील सिनेमा पर प्रतिबन्ध लगाइए, घटिया लोगो पर प्रतिबन्ध लगाइए, सेंसर बोर्ड का विरोध करिए, जो लोग सरे-आम लड़कियों को छेड़ते हैं उन्हें कठोर सजा दीजिये, बलात्कार करने वाले पुरुष को जेल की कोठरी तक पहुंचाइये! आप ये सब करने में असमर्थ है क्या? क्या आपके नियम-कानून सिर्फ लड़कियों पर ही लागू होते हैं? क्या बलात्कार करने वाले पुरुष आपसे अधिक शक्तिशाली हैं? या आप स्वयं मर्द प्रजाति के होने के कारण मर्दों पर अंकुश नहीं लगाना चाहते? क्या स्त्री वर्ग आपकी नजरो में इंसान नहीं, जिसे हमेशा आप अपनी दासी और भोग की वस्तु के रूप में देखते हैं! हमारे पूरे समाज की सोंच पुरुष प्रधान हो चुकी है, जब किसी स्त्री के साथ कोई पुरुष बलात्कार करता है, तब लड़की बहुत दूर-दूर तक बदनाम हो जाती है और उसे हेय दृष्टि से देखा जाने लगता है जबकि पुरुष अगर सजा पा भी जाता है तो वापस समाज में लौटने के बाद भी उसकी साख में कोई कमी नहीं होती! क्योंकि हमारे समाज में इज्ज़त का ठेका सिर्फ स्त्रियों के पास है! किसी स्त्री का पति अगर दूसरी स्त्री से बलात्कार करे तो पत्नी अपने पति के बचाव में खड़ी दिखाई देती है, किसी माँ का लाडला ऐसा करे तो माँ बचाव में खड़ी दिखाई देती है! यहाँ तो स्वयं स्त्रियों की नजरो में एक स्त्री की इज्ज़त से बढ़कर उसका कुकर्म करने वाला पति, लड़का या भाई होता है! जब तक ऐसा चलता रहेगा, समाज में यह घटनाएं बढती ही रहेंगी! एक अन्य बात यह भी की भारत देश में और भी बहुत से राज्य हैं, जिनमे से कुछ में बलात्कार की घटनाएं अधिक होती हैं और कुछ में बहुत कम! इसका कारण यही है की कुछ राज्यों का सामाजिक वातावरण बहुत गिरे हुए स्तर पर पहुँच चुका है क्योंकि वहां की क़ानून व्यवस्था इतनी लचर हो चुकी है की वह अपराधियों पर अंकुश लगाने और उन्हें सजा देने में लगभग नाकाम सी हो चुकी है!
खाप को संक्षिप्त में एक सुझाव देना चाहुंगा की यदि वे स्त्री की इज्ज़त बचाने के लिए उसके स्वतंत्रता पूर्ण, स्वाभिमान पूर्ण एवं आत्म निर्भर जीवन पर प्रतिबन्ध लगा रहे हैं,(जिससे की बलात्कार की घटनाएं रुकने वाली नहीं हैं) तो स्त्री ऐसे पशु सामान जीवन का क्या करेगी! आप उसे हमेशा अपनी दासी और भोग की वस्तु के समान समझेंगे! इससे अच्छा तो यही होगा की स्त्री वर्ग को आप समाप्त करने का फरमान सुना दीजिये (क्योंकि आपकी नज़रों में देश के क़ानून की कोई अहमियत नहीं और कानून तो सिर्फ वो है जो आप कहें) या स्त्री वर्ग स्वयं अपने को समाप्त कर ले! न लड़कियां होंगी न उनके साथ बलात्कार होंगे और फिर एक दिन ऐसा आएगा की बलात्कार को अंजाम देने वाले वर्ग का भी नामोनिशान मिट जाएगा!

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