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जय हो जायसवाल जी की….

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“ नई-नई जीत और नई-नई शादी का अलग ही महत्व है। जिस तरह समय के साथ जीत पुरानी पड़ती जाती है उसी तरह वक्त के साथ बीवी भी पुरानी होती जाती है और उसमें वह मजा नहीं रह जाता है।”

उपरोक्त कथन को कहने वाले श्रीप्रकाश जायसवाल जी इसे कहते समय एक मंत्री नहीं बल्कि एक हास्य व्यंगात्मक कवि की भूमिका में स्वयं को प्रस्तुत करना चाह रहे थे! संभवतः उनसे पहले मंच पर कई कवियों ने हास्य व्यंग की कवितायें और बातें कही होंगी, जिन्हें सुनने के बाद उनका मन भी हास्य व्यंग से जुडी बातें करने का हो गया होगा, किन्तु इस मन की बात को पूरा करने के चक्कर में उन्होंने कुछ ऐसा बोल दिया, जिसका अर्थ बहुत गलत भी निकलता है! बहुत गलत भी निकलता है से मेरा तात्पर्य यह है कि उनके शब्द “उसमे वह मज़ा नहीं रह जाता है” से ऐसा अर्थ भी निकल सकता है कि पुरानी बीवी से लड़ने-झगड़ने, रूठने-मनाने, उसके मायके जाने और ससुराल वापस आने इत्यादि में शायद उतना मज़ा नहीं आता हो!

उपरोक्त विचार तो मेरे ह्रदय में उठे और मैंने उनके शब्दों के भावों को थोडा विस्तार देने की कोशिस की! किन्तु मैं कितना भी विनम्र होते हुए उनके शब्दों के भावों को प्रकट करूं, उनके शब्दों का स्पष्ट अर्थ यही निकल रहा है जोकि अधिकतर जनता सोंच रही है! “उसमे वह मज़ा नहीं रह जाता है” मतलब क्या है जायसवाल जी का? पत्नी क्या अपने पति को मज़ा दिलाने का साधन मात्र होती है? पत्नी से क्या आपका रिश्ता मात्र शारीरिक सुखों तक सीमित होता है, जिसे शायद वह पत्नी अपनी बढती हुयी उम्र के साथ आपको उस स्तर तक नहीं प्रदान कर सकती, जितना की अपने यौवनावस्था में कर सकती थी! क्या पत्नी से आपका मानसिक, आत्मिक, भावनात्मक तथा अपने बच्चों की माँ का रिश्ता नहीं होता? अगर ऐसा नहीं होता तो कोई आदमी विवाह ही नहीं करता क्योंकि उसके शारीरिक सुखों को वह प्राचीन काल से लेकर आज के युग में भी कई जगहों से पैसो के माध्यम से या अन्य माध्यम से पूरा कर सकता है!

पत्नी और पति का वास्तविक रिश्ता तो ह्रदय से होता है! जैसे-जैसे विवाह के बाद समय बीतता जाता है, वे एक-दूसरे की भावनाओं, ज़रूरतों और सुख-दुःख को भली भाँती समझने लगते हैं तथा पति-पत्नी के बीच वास्तविक प्रेम की उत्पत्ति होती है! तब उन्हें एक-दूसरे के साथ रहने में पहले से कहीं ज्यादा आसानी होती है, लड़ाइयाँ कम होती हैं! इसके अलावा जब उनके बीच उनकी अपनी संतान आती है, तब तो यह रिश्ता अटूट रूप से मज़बूत हो जाता है! ऐसे में कभी अपनी पत्नी का ध्यान न रखने वाला पुरुष भी उसकी ज़रूरतों, उसकी सेहत, उसकी खुशियों इत्यादि का ध्यान रखने लगता है! पति-पत्नी और उनकी संतान मिलकर एक नए परिवार, नए आशियाने का निर्माण करते हैं! जो उनके सपनो का घर होता है, जो वर्षों की मेहनत के बाद ही बन पाता है! जिसमे पति और पत्नी दोनों की सच्ची लगन और मेहनत शामिल होती है! फिर कैसे कोई समझदार, शादी-शुदा मर्द इस तरह का बयान दे सकता है?

जायसवाल जी शायद उस कवि सम्मलेन की ज़ोरदार हास्य की बयार में स्वयं पर काबू नहीं रख पाए और फिसल गए! उनका दिमाग सही-गलत का निर्णय नहीं कर सका! भरी सभा में चाहे हास्य लाने के लिए ही सही उन्होंने शायद अपनी व्यक्तिगत राय को ज़ाहिर कर दिया! देखा जाए तो कुछ मर्दों की यह राय हो भी सकती है की पुरानी बीवी में वो मज़ा नहीं आता, तभी तो समाज में आज भी शादी के बाद कई मर्द दूसरी औरतों से नाजायज़ सम्बन्ध रखते है, बल्कि इसका चलन शायद पहले से ज्यादा होता चला जा रहा है! कुछ शादीशुदा महिलायें भी ऐसे संबंधों को बनाने में गुरेज़ नहीं करती! किन्तु उनकी परिस्थितियां, उनकी सोंच, उनके संस्कार सभी इसके लिए ज़िम्मेदार होते हैं! जिनकी बात करना इस विषय से भटकना होगा!

बात श्रीप्रकाश जायसवाल जी की जो कि केंद्रीय मंत्री हैं, भरी सभा में उन्होंने एक बयान दिया जो कि सिर्फ स्त्रियों के लिए अपमानजनक नहीं है, बल्कि सभी शादी-शुदा मर्दों के लिए भी सोंचने का विषय है कि क्या वाकई उनकी पत्निया उन्हें मज़ा दिलाने का साधन मात्र हैं? यदि वाकई ऐसा है तो विवाह मत करिए अथवा विवाह से पहले होने वाली पत्नी को इस बात से अवगत करा दीजिये ताकि वह शादी करने या न करने तथा आपके साथ उचित व्यवहार करने का फैसला ले सके और अगर ऐसा नहीं है तो जो लोग शादी के बाद विवाहेत्तर संबंधों में लिप्त हैं या होना चाहते हैं, ऐसा कुकृत्य न करें!


जागरण फोरम के सवालों को भी ले लेते हैं-

1. क्या एक वरिष्ठ केन्द्रीय मंत्री का यह बयान वाकई सरकार की अंदरूनी सोच को दर्शाता है?
उत्तर- यह तो स्पष्ट तौर पर उनकी व्यक्तिगत राय है, जिससे वे भी स्वयं बाद में मुकर गए!

2. इस मुद्दे पर श्रीप्रकाश जायसवाल की सफाई को क्या पूरी तरह नजरअंदाज किया जा सकता है?
उत्तर- नहीं, क्योंकि है तो वो भी इंसान, मंत्री बन गए तो क्या हुआ? अच्छे-अच्छे लोग भी कभी-कभी भटक जाते हैं, फिर वो तो नेता हैं!

3. यदि हास्य-व्यंग्य के बहाने भी श्रीप्रकाश जायसवाल ने ऐसा बयान दिया है, तो क्या इसे सही ठहराया जा सकता है?
उत्तर- नहीं, बस इनके लिए एक सलाह है “जिसका काम उसी को साजे, और करे तो डंडा बाजे”! उतना सेन्स नहीं है तो हास्य व्यंग के क्षेत्र में न उतरे!

4. क्या श्रीप्रकाश जायसवाल का यह कथन पुरुष प्रधान समाज की कड़वी सच्चाई बयां करता है?
उत्तर- बिलकुल नहीं, यह उनके व्यक्तिगत वैवाहिक संबंधों की कडवी सच्चाई बयान करता है!

बाकी आम जनता से मेरा आग्रह है कि जायसवाल जी का अच्छा ख़ासा विरोध हो चुका है! आगे का विरोध मेरे ख्याल से उनकी पत्नी को करना चाहिए क्योंकि यह बयान और किसी के बजाय उन्ही से सीधे तौर पर सम्बंधित है, उन्हें ही जायसवाल जी से जवाब-तलब करना चाहिए की अब क्यों जायसवाल जी को उनमे वो बात और वो मज़ा नहीं आता!

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