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नारी का जीवन-?????

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आज के आधुनिक युग में भी स्त्रियों की दुर्दशा और कन्या भ्रूण हत्या की घटनाओं को देखते हुए मुझे ये लेख लिखना पड़ रहा है….
प्रत्येक माता एवं पिता को संबोधित-
कितने आश्चर्य की बात है की नारी की कोख से ही जन्म लेने वाले स्त्री और पुरुष उसी स्त्री की दुर्दशा के लिए बराबर के ज़िम्मेदार हैं….और इससे भी अधिक आश्चर्य तब होता है जब एक स्त्री स्वयं दूसरी स्त्री को निकृष्ट समझने लगती है और उसके दुखों का कारण बनती है, दादी माओ को तो अक्सर ही पोती नहीं पोता चाहिए होता है, कभी कभी कुछ माएं भी लड़की नहीं लड़के की इच्छा रखती हैं…..बचपन से लेकर बुढापे तक अलग-अलग रिश्तों में एक स्त्री दूसरी स्त्री के दुखों कारण बनती है, कभी दादी-नानी के रूप में, कभी भाभी तो कभी नन्द के रूप में तो कभी कभी माँ के ही रूप में एक स्त्री दूसरी स्त्री के प्रति पक्षपात पूर्ण रवैया अपनाती है और इन सबसे बढ़कर एक रिश्ता सास और बहु का जो एक-दुसरे के लिए बहुत ही बुरा साबित होता चला आ रहा है. …..क्या स्त्रियाँ यह बात भूल जाती है की वे स्वयं एक स्त्री हैं?
संभवतः ऐसा इसलिए होता है की भारतीय समाज में बचपन से प्रत्येक स्त्री और पुरुष के दिमाग में ये बातें ठूंस ठूंस कर भर दी जाती हैं की स्त्री सदैव पुरुष से निकृष्ट है और रहेगी चाहे वह जितनी ही साक्षर क्यों न हो जाए, चाहे कितनी ही ऊँची पोस्ट पर क्यों न पहुँच जाए…. भारतीय समाज में रचे -बसे रिति-रिवाज़ और संस्कार उसे कदम-कदम पर यह एहसास कराते रहते हैं की वह कुछ भी करले पुरुष वर्ग से श्रेष्ठ नहीं बन सकती क्योंकि श्रेष्ठता तो पुरुष वर्ग का जन्सिद्ध अधिकार है और दासता ही स्त्री वर्ग का जन्सिद्ध कर्त्तव्य है,…इसी वजह से अशिक्षित के अलावा कई सारी शिक्षित स्त्रियाँ भी इस मानसिकता से ग्रस्त हो जाती है की कुल का दीपक तो एक लड़का ही हो सकता है तथा लड़का ही उनके समस्त दुखों की दवा बन सकता है या उनके बुढापे की लाठी बन सकता है….क्यों क्या एक लड़की पढ़-लिख कर अपने माँ-बाप का नाम रोशन नहीं कर सकती और उनका सहारा नहीं बन सकती? शायद नहीं क्योंकि लड़की तो पराया धन होती है उसे विवाह के बाद अपने माँ-बाप से दूर जाना ही पड़ता है…किन्तु क्या आज के समय में यह बात प्रासंगिक रह गयी है? क्योंकि आज-कल के बेरोजगारी भरे दौर में जिसको भी जहाँ भी नौकरी मिलती है वह वहीँ चला जाता है चाहे वह लड़का हो या लड़की तो फिर कैसे लड़का माँ-बाप का सहारा बन सकता है और लड़की नहीं? दोनों ही दूर रहकर भी अपने माँ-बाप का सहारा बन सकते है यदि वे बनना चाहे तो…..
लेकिन शायद दहेज़ प्रथा भी इसका दूसरा प्रमुख कारण है….तो भैया यह बिमारी तो हम सभी की ही पैदा की हुयी है और यदि हम इसे ख़त्म करना चाहे तो ज़रूर ख़त्म कर सकते है…अपने लड़के और लड़कियों दोनों को पढाये और इस काबिल बनाये की वे स्वयं इतना कमाए की उन्हें दूसरों से कुछ भी लेने की आवश्यकता ही ना रहे…वैसे भी एक सामान्य शादी में 5 से 10 लाख रूपये दहेज़ में दिए जाते होंगे लेकिन यही लड़की स्वयं कमाए तो इतनी रकम तो वो शुरू के 5 -10 साल में ही कमा लेगी और उसके बाद न जाने कितना ज्यादा….फिर आप क्यों इस दहेज़ जैसी कुप्रथा को आश्रय दे रहे है जो ना जाने कितनी स्त्रियों के जीवन को बर्बाद कर चुकी है और आज भी स्त्रियों के लिए बहुत बड़ा अभिशाप बनी हुयी है…..मै ये उम्मीद पुरुष और स्त्री दोनों वर्गों से रखता हूँ की वे मेरी बात को समझेंगे और समाज में व्याप्त कन्या भ्रूण ह्त्या तथा स्त्री शोषण से जुडी कुरीतियों को समाप्त करने में अपना योगदान देंगे….
याद रखिये बेटियाँ अपने माँ-बाप को बेटों से कही ज्यादा प्यार करती है और उनकी ज्यादा सेवा करती है, एक सास को भी हमेशा ये याद रखना चाहिए की वह भी कभी बहु थी तथा बहु को याद रखना चाहिए की वह भी कभी सास बनेगी, प्रत्येक स्त्री के पास ऐसा दिल होता है जिसमे प्यार और त्याग की असीम भावनाए विद्यमान होती हैं और समझौते करने में स्त्रियों का कोई मुकाबला ही नहीं है तो फिर एक स्त्री दूसरी स्त्री से समझौता क्यों नहीं कर सकती…..
आगे का लेख प्रत्येक पति और पत्नी को संबोधित-
पुरुष भी मानव है, स्त्री भी मानव है, पुरुष भी प्यार चाहता है, स्त्री भी प्यार चाहती है, पुरुष को भी क्रोध आता है, स्त्री को भी क्रोध आता है, पुरुष को भी दर्द होता है, स्त्री को भी दर्द होता है, पुरुष भी गलती करता है, स्त्री से भी गलती होती है…..किन्तु
किन्तु क्यों ऐसा होता है की स्त्रियों द्वारा गलती किये जाने पर उनका पति उनकी पिटाई कर सकता है जबकि पति द्वारा गलती किये जाने पर कोई कोई ही पत्नी पति को उसकी गलती का एहसास कराने की कोशिश कर पाती है और उनमे से भी कइयों को उसका अंजाम उल्टा गालियाँ सुनकर या मार खाकर चुकाना पड़ता है?
ऐसा क्यों होता है? क्या किसी पुरुष ने कभी ये सोंचा है की गलतियां तो उससे भी हो जाती है और उसके द्वारा गलतियाँ किये जाने पर यदि उसकी पत्नी उसकी वैसे ही पिटाई करे जैसे की वह अपनी पत्नी की करता है तो शायद पति लोग अपनी पत्नियों को पीटना छोड़ दे, लेकिन अफ़सोस इस बात का है की ऐसा होने वाला नहीं क्योंकि भारतीय सभ्यता के अनुसार शादी करने के पश्चात गलतियों का पुतला पुरुष “पतिदेव” बन जाता है और देवता पर हाँथ उठाना तो दूर कई पत्नियां उससे बहस भी करना घोर पाप समझती हैं….किन्तु अगर कोई पत्नी हिम्मत करके बहस भी करले तो फिर उसे पतिदेव के कोप का भागी बनना पड़ता है क्योंकि पतिदेव भी उसी समाज का हिस्सा हैं जिसमे पुरुषों को स्त्रियों से श्रेष्ठ और पतियों को पत्नियों का परमेश्वर मानने का चलन है, बस इसी मानसिकता से ग्रस्त पतिदेव को तुरंत क्रोध आ जाता है और वो अपनी शारीरिक शक्ति का प्रयोग अपनी तुच्छ और कमज़ोर समझी जाने वाली पत्नी पर कर देते हैं…कई पति यह बोलेंगे के पत्नी गलती करती है तो फिर उसे पीटना ही पड़ता है तो भैया जब आप गलती करो तो अपनी पत्नी को बोलो की आप को गलती के अनुसार पीट कर सजा दे दे, लेकिन ऐसा तो आप नहीं करोगे, क्योंकि आपको सब छूट है आपकी पत्नी को नहीं….
एक बात और की जब कोई दूसरा गलती करता है तो हमें क्रोध आ ही जाता है फिर चाहे वो हमसे बड़ा हो या छोटा हो, हमारा बौस हो या नौकर, दोस्त हो या रिश्तेदार लेकिन हम पीटते सिर्फ अपने से कमज़ोर को ही हैं और अन्य कमज़ोर लोगो से लाख गुना ज्यादा अपनी पत्नी पर गुस्सा उतार देते हैं, क्यों? क्योंकि अब वो आप की बपौती बन गयी है, ज़्यादातर पत्नियां अपने पतियों से शारीरिक रूप में कम शक्तिशाली होती है इसलिए वे अपने ऊपर होने वाले अत्याचार को सहन करती रहती हैं…यही सहन करने की आदत पतियों को और हिंसा करने के लिए उकसाती है….एक कहावत भी है की हिंसा करने वाले से सहने वाला ज्यादा दोषी होता है….हाँ यह बात पूरी तरह से सत्य है….पत्नियां जब तक अपने विरुद्ध होने वाली हिंसा का ठोस जवाब नहीं देंगी उन्हें ये हिंसा सहनी पड़ेगी क्योंकि बहुत मुश्किल है की किसी पति देव की आँखे एक दिन अपने आप खुल जाएँ और उसे अपनी पत्नी के उस दर्द का एहसास हो जाए जो उसने ही दिया है लेकिन जिसे उसने स्वयं पर कभी महसूस नहीं किया…..
मेरा आग्रह ईमानदार पतियों से है की वे अपनी पत्नी को भी इंसान समझे और उसे उसके गलतियों के लिए वैसे ही समझाएं जैसे वे दुसरे लोगों को समझाते हैं….क्योंकि गलतियां सबसे होती है….और स्त्रियों अपने पति को पहले बात से समझाएं और उसे एहसास कराएं की वह भी गलतियां करता है और यदि उसने आपके विरुद्ध हिंसा का प्रयोग करना जारी रक्खा तो उसे उसका मुह तोड़ जवाब मिलेगा……लेकिन सबसे पहले स्त्रियों को स्वयं को एक जीवित एवं सम्मानित इंसान समझना पड़ेगा और पढ़-लिख कर अपने पैरों पर खडा होना पड़ेगा तथा अपने और अपने परिवार का खर्च उठाने लायक बनना पड़ेगा!

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