एक है योजना आयोग. क्या कहा…..आपने इसका नाम नहीं सुना. तो साहब नहीं सुना होगा. क्योंकि योजना आयोग ख़ास लोगों का महकमा है. इसमें काम करने वाले भी ख़ास होते हैं और इसके द्वारा बनाई जाने वाली योजनायें भी ख़ास होती हैं. न तो इसके अधिकारीयों और न ही कर्मचारियों को देश के आम लोगों से कोई सरोकार होता है. इसलिए देश के आम लोग इस महकमे के बारे में कुछ नही जानते. तो साहब इसी खासमखास योजना आयोग के मुखिया हैं-सरदार मोंटेक सिंह आहलूवालिया. मोंटेक सिंह जी महान स्वनामधन्य अर्थशास्त्री हैं. आर्थिक हालातों पर बड़े-बड़े सेमिनारों का आयोजन करते हैं. फिक्की के प्रोग्रामों में बतौर मुख्य वक्ता शिरकत करते हैं. देश के विकास के लिए बड़ी-बड़ी योजनायें बनाते हैं…..लेकिन ये योजनायें क्रियान्वित होती हैं या नहीं….ये उनको भी नहीं पता. इन्ही योजनाकार महोदय ने एक और महान खोज की है और पता लगाया है कि पिछले लम्बे अरसे से देश में जो महंगाई बढ़ी है, उसका कारण क्या है. प्रधानमंत्री से लेकर वित्तमंत्री तक जिस महंगाई का उदगम नहीं पता लगा सके, वह मोंटेक जी ने चुटकियों में पता लगा ली. जिस तरह गौतम बुद्ध को वट वृक्ष के नीचे कैवल्य की प्राप्ति हुई…ठीक उसी तरह अपने मोंटेक अंकल को योजना आयोग के एसी चेम्बर के तले बैठकर कैवल्य की प्राप्ति हुई की महंगाई बढने का कारण गाँव वाले हैं, जो अब दूध, फल सब्जी का उपभोग करने लगें हैं. जिससे संतुलन बिगड़ा है और महंगाई बढ़ रही है. वैसे साहेब सही कह रहे हैं. अपुन भी ग्रामीण हैं…हमारे पिताजी बताते हैं कि पहले हमारे घर में सब्जी केवल विवाह-शादियों में ही बनती थी. घर का मीनू कुछ यूँ होता था…नाश्ते में छाछ-रोटी, लंच में दही रोटी, डिनर में घी-रोटी. लेकिन अब रोज सब्जी बनती है. फल भी आते हैं. बाकी ग्रामीण भी अब लाइफ का स्टाइल बदल चुके हैं. अब स्टाइल बदला है…तभी देश का संतुलन बिगड़ा है. क्योंकि गरीब और ग्रामीण फल-सब्जी खाने के लिए नहीं बल्कि उनका उत्पादन करने के लिए पैदा हुए हैं. इन्हें खाने का कोपीराईट तो शहरी… वह भी अमीर शहरियों के पास है. ऐसे में जब गरीब ग्रामीण भी अमीरों वाला शौक़ पालने लगे तो असंतुलन तो होगा ही…और जब असंतुलन होगा तो महंगाई भी बढ़ेगी..वह मोंटेक प्यारे….इस दुर्लभ खोज के लिए बधाई. वैसे अब जब पता चल ही गया है कि महंगाई के लिए ग्रामीण जिम्मेदार हैं…तो इसे रोकने के लिए कुछ किया जाना चाहिए. सो मोंटेक जी और सरकार के लिए मेरे कुछ अमूल्य सुझाव हैं. एक तो यह कि ग्रामीणों को सब्जी-फल खरीदने के लिए बैन किया जाना चाहिए. यदि फिर भी कोई सब्जी खरीदने कि हिमाकत करे….तो उसके लिए दंड का प्रावधान हो. बल्कि मैं तो ये कहता हूँ कि संविधान में बाकायदा संशोधन कर उन्हें फल-सब्जी-दूध की खरीद के अधिकार से वंचित कर देना चाहिए. वैसे सरकार की जो नीतियाँ चल रही हैं उससे तो ये लगता है की जल्द ही इन नीतियों के प्रभाव से न गाँव रहेंगे न ग्रामीण…गरीब बेचारे तो पहले से ही आत्महत्याएं करके अपना खत्म कर रहे हैं. तो उम्मीद करें कि कुछ समय बाद गरीब और ग्रामीण लुप्त होंगे और महंगाई भी भाग जायेगी…..आमीन?????
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