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सरकारी ब्राह्मण

भविष्य
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हे भूदेवों! अब आप लोग अपनी खटिया खडी कीजिये. अब सरकार ने आप की मान्यता रद्द कर दी है. और अब सरकार के नुमाइंदे समाज सुधारको का बुर्का ओढ़ कर आप की सामाजिक मान्यता रद्द करने का वीणा उठाये है. क्या आप को यह महसूस नहीं हो रहा है? क्या आप नहीं देख रहे है की चाहे वह शिक्षा का क्षेत्र हो या नौकरी का, छात्र वृत्ति प्रदान करनी हो या आवास, चाहे कचहरी हो या थाना, हर जगह अब इन्हीं सरकारी ब्राह्मणों की प्रधानता है. अब हर जगह इनकी पूजा या आव भगत प्राथमिकता के आधार पर की जा रही है. ऐसा कर के लोग अपने आप को धन्य मानने लगे है. एक ही जगह बची थी, लोग अपने घर बुलाकर आप को भोजन कराकर अपने आप को कृतार्थ समझते थे. किन्तु अब वह भी लगभग समाप्त ही हो गया है. अब लोग इन सरकारी ब्राह्मणों को अपने घर मीठे एवं स्व्वादिष्ट भोजन कराकर अपना नाम सुर्खियों में दर्ज करा रहे है. समाचार पत्र, इलेक्ट्रानिक मीडिया एवं सभा ज़लसा- समारोह में इनकी भूरी भूरी प्रशंसा की जा रही है कि अमुक व्यक्ति ने जाती-पांति से ऊपर उठकर, सामाजिक सद्भाव का अपूर्व परिचय देते हुए सामाजिक रूप से अछूत एवं निम्न जाती-श्रेणी के लोगो के साथ एक ही पंक्ति में बैठ कर भोजन किया. अब इन सरकारी ब्राह्मणों को भोजन कराने का पुण्य-प्रताप देखिये कि तत्काल उनका नाम गिनीज बुक आफ दी वर्ल्ड में दर्ज हो जाएगा. तथा अगले आम चुनाव में उनकी सीट पक्की हो जाती है. और चुनाव जीत कर अपने सात पीढी आगे एवं सात पीढी पीछे के लोगो का उद्धार कर देते है. देखा इन सरकारी ब्राह्मणों को घर पर भोजन कराने का पुण्य?
“मज्जन फल पखिय तत्काला” जी हाँ, बिलकुल आप को भोजन कराने का फल पता नहीं कब मिलेगा या नहीं मिलेगा. किन्तु इन सरकारी ब्राह्मणों को भोजन कराने का फल तो तत्काल ही मिलना प्रारम्भ हो जाता है.
अब आप यह लालच या उम्मीद कत्तई छोड़ दीजिएगा कि आप के द्वारा कराये जाने वाले विविध धार्मिक कृत्यों के बदले मुंह माँगी दक्षिणा (मज़दूरी?) मिलेगी. और लोग आप का घर भरेगें. क्योकि आप की आवभगत में लोगो को मात्र एक ही फल अपेक्षित होता है. और वह है-आत्मिक शान्ति, संतोष एवं शुचिता. इस खाली पीली शान्ति एवं शुचिता से अब कुछ नहीं मिलाने वाला. देखिये इन सरकारी ब्राह्मणों की पूजा पाठ एवं सेवा से धन, नौकरी, व्यवसाय, यश, पद एवं प्रतिष्ठा सब कुछ मिलता है. तथा परिवार के लोग सतत सांसारिक सुख संसाधनों का भर पूर उपयोग एवं उपभोग करते चले जाते है.
अब आप पौराणिक एवं औपनिषदक ब्राह्मण देवता लोग! सचेत हो जायँ. अब आप पंडितो का घर नहीं भरेगा अब तक आप लोग अपना बहुत घर भर चुके. और लोग अपना सब कुछ लुटाकर आप लोगो का घर भर चुके.
अब ये लोग अपना घर आप से भरवायेगें. कारण यह है की आप लोग अब पूजा-पाठ, वेद-पाठ, पौरोहित्य कर्म आदि को निकृष्ट मान कर उसका अध्ययन एवं अनुकरण-अनुसरण आदि से विमुख होते चले जा रहे है. आप ने अब पाश्चात्य सभ्यता की मदिरा का मदहोश कर देने वाला स्वाद चख लिया है. सर पर चोटी रखना आप को गंवार के रूप में प्रतिबिंबित होना लगता है. इसके बदले में आप को अब “हैट” चाहिए. धोती के स्थान पर आप को “बाम्बे सूटिंग” का पैंट एवं “सियाराम” का शर्ट चाहिए. अन्यथा धोती पहनने से आप भारतीय की तरह लगने लगते है. टीका चन्दन लगाने से आप दान दक्षिणा पर आधारित दक्षिणा से आजीविका चलाने वाले लगते है. आप को बहुत बुरा लगता है यह सुनना-
“औरन को धन चाहिए बावरी बाम्हन को धन केवल भिक्षा”
या फिर वृहत्त्रयी “श्रीमद्भागवत गीता” का यह वचन-
“पढ़ना, पढ़ाना, यज्ञ करना, यज्ञ कराना, दान लेना एवं दान देना- ये ही ब्राह्मणों के षट्कर्म माने गए है.”
इन्हें उपेक्षित कर तड़क-भड़क से युक्त दिखावटी परिवेश एवं उपनिवेश में अपने को समायोजित कर आजीविका की अवधारणा आप को श्रेयस्कर लगने लगी है. आप जो समाज को नयी दिशा देकर उसे संगठित, समुन्नत, मर्यादित, बुद्धिजीवी एवं वास्तविक सुख शान्ति से पूर्ण करने के लिए नाना पुराण, आगम. निगम, वेद, उपनिषद् एवं दर्शन आदि का गहन अध्ययन करने एवं उसके अनुरूप मानव समाज को सुशिक्षित करने के लिए अपेक्षित थे, उसे छोड़ कर उदरभरण वाले व्यवसाय को आजीविका का श्रोत बना लिए. तथा धीरे धीरे आप स्वयं उन मान्यताओं को क्रमशः विस्मृत करते हुए उन्हीं मान्यताओं के विपरीत चलने लगे. तो जिन्होंने इन सबका सदिश अध्ययन ही नहीं किया वे तो अलग अलग मान्यताओं को जन्म देगें ही. और चूंकि आप खुद ही अपनी मौलिक मान्यताओं से अनभिज्ञ है, तो आप भी विवश होगें उनकी नवोदित मान्यताओं के अनुरूप चलने के लिए. क्योकि आप को स्वयं ही नहीं मालूम कि इन मान्यताओं के पीछे क्या ठोस आधार है.
और इसी का नाजायज फ़ायदा उठाकर ये लोग इसमें मीन मेष निकाल कर आप के इन सारे मौलिक मान्यताओं एवं कृत्यों को पाखण्ड एवं तर्कहीन मानकर अपना पंथ चलाते हुए नयी सामाजिक मान्यताओं को जन्म दे रहे है. जिसका पूरा ज्ञान इन्हें तो है ही क्योकि इन्होने खुद ही इन्हें जन्म दिया है. तो अब तो ये ही लोग अपनी मान्यताओं को समाज पर थोपेगें. तथा इनकी इन मान्यताओं का अनुकरण एवं अनुसरण करने के लिए इन्हें आप को अपने घर बुलाना पडेगा. ये इन नयी मान्यताओं को आप के द्वारा करवाएगें. तथा आप से दक्षिणा (जीने का टैक्स?) लेगें. अन्यथा अब आप का जीना मुहाल हो जाएगा.
रावण, कुम्भकर्ण एवं हिरण्यकश्यप आदि दैत्यों एवं राक्षसों के अवतार के पीछे क्या कारण था? नहीं मालूम? तो सुनिए-
वशिष्ठ आदि नव्य उर्ध्ववेत्ता तपोनिष्ठ ब्राह्मणों ने यह निर्धारित कर रखा था कि जो वेद-दर्शन आदि नहीं जानता वह अनार्य है. उन्हें आर्य भूमि में रहने का कोई अधिकार नहीं है. और दशराज्ञ युद्ध में द्रुह्य, तुतुत्सू आदि राजाओं के नेतृत्व में सेना संगठित कर देव-दानव युद्ध करवाया. तथा इन तथा कथित अनार्यो को मार भगाया. ये सब अपना प्राण बचाकर दक्षिण दिशा में पलायित हो गए. आर्य भूमि के सुदूरवर्ती द्रविड़ देश में दंडकारण्य के घने जंगलो में इन सब ने शरण लिया. वशिष्ठ आदि के इस अनुचित व्यवहार से क्षुब्ध होकर ऋषि विश्वामित्र दंडकारण्य में इन सब को संगठित किये. और उन्हें शिक्षा देना शुरू किये. जब अन्य ऋषि-मुनि ने उनसे इस विरोधी कार्य का कारण पूछा. तो उन्होंने बताया कि केवल वही व्यक्ति आर्य नहीं है जो वेद, उपनिषद्, दर्शन तथा मीमांशा जानता हो. बल्कि वह भी आर्य है जो इन पर अटूट विश्वास रखता हो. किसी को जब तक कोई विषय स्पष्ट नहीं किया जाएगा वह उसके विषय में गहराई से कैसे जानेगा या फिर उस पर अपना विश्वास स्थिर करेगा? और ऋषि विश्वामित्र ने यही पर “रक्ष” संस्कृति की नींव डाली. और जो इस “रक्ष” संस्कृति का अनुयायी हुआ, वह राक्षस हुआ. और वही पर उन लोगो ने अन्य विश्वामित्र के समान विचार धारा वाले अन्य ऋषि मुनियों से शिक्षा ग्रहण किया. इसीलिए राक्षस होकर भी उन्हें तप, जप एवं यज्ञ आदि पर पूर्ण भरोसा था. रावण खुद हां तपस्वी था. यह सब जानते है.
तो इस प्रकार उस काल में तो विश्वामित्र जैसे शिक्षक हुए तो उन्होंने इस विषय को उन्हें गहराई से समझाया. आज तो न तो कोई विश्वामित्र है और न ही उनके समान विचार धारा वाले ऋषि-मुनि. तो अब तो ये “राक्षस” केवल आचार-विचार एवं शिक्षा-दीक्षा से ही नहीं बल्कि मन, वचन एवं कर्म से “राक्षस” बन ही जायेगें. क्योकि जब आज “विश्वामित्र” ही वस्तुस्थिति एवं तथ्य से अनभिज्ञ है तो शिष्य स्वरुप दैत्य तो घोर राक्षस बनेगें ही.
इसीलिए हे ब्राह्मण देवता! अब सरकारी विश्वामित्रो की भर्ती शुरू हुई है. अब आप इनकी “रक्ष” संस्कृति के अनुगामी बनिए. और अपनी बेटी-बहन अर्थात शूर्पनखा का नाक कटवाइए. और जगत में यश-कीर्ति पाईये.
क्या आप इन्हें इन मान्यताओं के सुदृढ़, आवश्यक एवं उचित आधार को नहीं बता सकते? कहिये कि हमने उसका मनन-चिंतन ही नहीं किया तो क्या खाक बताएगें?
लेकिन इन “राक्षसों” के पास इतनी तो बुद्धि तो होनी ही चाहिए कि इनकी तात्कालिक आवश्यकता को तो कम से कम समझें?
अच्छा चलिए, एक बात बताईये. आप अपने लड़को के नाम देवेन्द्र, कृष्ण, शिवेंद्र, जयंत, सुन्दर, सत्यप्रकाश आदि क्यों रखते है? क्यों नहीं रावण, अन्धेरा, दुष्ट, या लड़कियों के नाम पूतना, शूर्पनखा, त्रिजटा आदि रखते है? क्योकि इन सबसे मनो मष्तिष्क पर अच्छा प्रभाव पड़ता है. दिल में एक अच्छा भाव उत्पन्न होता है. इसके अलावा यह एक मान्यता है कि बड़े विशिष्ट लोगो के नाम पर बच्चो का नाम रखने से थोड़ा बहुत अनुकूल प्रभाव पड़ता है.
तो यह तो मात्र एक सामाजिक मान्यता है. भाव, विचार, कल्पना आदि तो मानसिक विकार है. इनका ज़मीनी हकीकत से क्या लेना देना? वह तो विचार सही नहीं रहेगा तो चाहे कुछ भी नाम रखिये कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है. केवल अपने मन एवं भाव पर सुदृढ़ नियंत्रण होना चाहिए. किन्तु फिर भी कोई या स्वयं ये “राक्षस” ही अपने बच्चो का नाम कचरा, मैला, गन्दगी आदि नहीं रखते है. क्योकि इनको यह मालूम है कि इस तरह इन समाज सुधार के नियमो का स्वयं पालन करने से वे स्वयं ही कही के नहीं रहेगें.
राम, कृष्ण, विष्णु, सत्यवान, हरिश्चंद्र आदि के नाम के पीछे बहुत ही उच्च श्रेणी का उन्नत नैतिक मूल्य छिपा है. इस पौराणिक एवं सामाजिक मान्यता का तो खूब अनुशरण करते है. किन्तु उनके द्वारा अनुपालित, प्रपोषित एवं संवर्धित मान्यताओं एवं मूल्यों को नहीं मानते. इसीलिए बच्चे का नाम तो शत्रुजीत है. किन्तु वास्तव में वह शत्रुवशी है. लड़की का नाम सुनयना है. किन्तु असल में वह अंधी है. नाम धनेश एवं काम भीखमंगे का. नाम सुशील एवं काम शीलहरण का.
सारी दुष्प्रवृत्तियों के जनक होने के बावजूद भी नाम उच्च अर्थ को बोधित करने वाला ही होगा. क्योकि यह मान्यता है कि “बद अच्छा बदनाम बुरा”
हे स्वाभाविक ब्राह्मण देवता लोग! अपने कर्म को पहचानो. अपने सर्वोत्तम, सर्वोत्कृष्ट, समृद्ध एवं शाश्वत वैदिक, पौराणिक मान्यताओं को मानें, उनका अध्ययन करें, उसकी महिमा स्वयं अच्छी तरह समझें. उसके बाद जन साधारण को समझाएं. फिर किसी यजमान से दक्षिणा माँगने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी. बल्कि स्वतः यजमान अपना सब कुछ आप पर न्यौछावर करने को तत्पर रहेगा.
अन्यथा अब तक तो आप को अप्रत्यक्ष ही धमकी मिलती थी. अब खुले आम धमकी मिल चुकी है कि अब कोई यजमान किसी ब्राह्मण का घर धन से नहीं भरेगा.
अब धन से घर सरकारी ब्राह्मणों का भरा जाएगा. जो थोड़ा “छोटे सरकारी ब्राह्मण” होगा अर्थात डाक्टर, वकील, आदि जो दक्षिणा मांग देगें उसे रोकर या गाकर देना ही है. चाहे भले ही वह वकील आप का मिक़द्दमा हार जाय. या उस डाक्टर के द्वारा भले आप का मरीज़ मर जाय. और जो उससे बड़ा सरकारी ब्राह्मण -किसी मंत्री का सगा, होगा वह तो भीषण दक्षिणा भी लेगा और आप ही की ज़मीन भी हड़प लेगा. किन्तु आप सब कुछ अपनी आँखों से देखते रहेगें.
और जो वास्तव में लाईसेंस होल्डर “सरकारी ब्राह्मण” है उनके खिलाफ तो कुछ सोचना भी अपराध है. अन्यथा आप को एससी/ एसटी एक्ट में बहुत दिनों के लिए कारावास में भेज दिया जाएगा.
हे ब्राह्मण देवो! जानते है आप से लोगो की क्या अपेक्षाएं रह गयी है? वह यह कि आप वेद, पुराण, उपनिषद्, षड्दर्शन, तत्त्व, मीमांसा तथा कर्मकांड आदि का सूक्ष्म अध्ययन करें विधिवत उनका धार्मिक अनुष्ठानं करें. तथा जब काम पूरा हो जाय तो आँख, कान एवं मुंह बंद कर के अपने घर चले जाईये. आप को बुलाया जाएगा घर पर पौरोहित्य कर्म के लिए किन्तु दी जायेगी आप को मज़दूरी. यदि आप ने कुछ भी मुंह खोला तो चटाक से जबाब आयेगा कि एक मज़दूर तो दिन भर एडियाँ रगड़ कर इतना ही मज़दूरी पाता है. फिर आप को मात्र चार-पांच घंटो के कितना चाहिए? अर्थात आप पुरोहित नहीं बल्कि ‘दिहाड़ी मज़दूर” बन कर यजमान के घर गए है. पौराणिक कर्म करायेगें आधुनिक युग में किन्तु दक्षिणा देगें पौराणिक कालीन मात्रा में. अर्थात बीस आना. किन्तु अपने अगर किसी आफिस में राज्य के मात्र चतुर्थ श्रेणी कर चारी है तो उन्हें वेतन केंद्र सरकार के कर्मचारी के बराबर चाहिए. भले उनका दिन भर का “आउटपुट” निल ही क्यों न हो. और अगर नहीं हुआ तो “मुर्दाबाद-जिंदाबाद” का सस्वर उच्च ध्वनि में मन्त्र जाप शुरू हो जाएगा.
दक्षिणा में राजा हरिश्चंद्र ने तो अपना सर्वस्व दान कर दिया था. इसका तात्पर्य है कि राजा हरिश्चंद्र अव्वल दर्जे के बेवकूफ एवं अहमक थे. तो यदि वह इतने निचले दर्जे के राजा थे. तो अपने बच्चो का नाम बड़े ही गर्व के साथ हरिश्चंद्र क्यों रखते है? क्या हरिश्चंद्र नाम रखने से बच्चा चक्रवर्ती राजा हरिश्चंद्र बन जाता है? क्या यह तर्कहीन मान्यता नहीं है?
मुझे उम्मीद है, इन सारी मान्यताओं को तर्क हीन मानने वाले अपने बच्चो का नाम अब चांडाल, डोम, दानव, निशाचर, महिषासुर तथा लड़कियों का नाम पूतना, ताड़का, त्रिजटा आदि रखेगें. क्योकि ये ही ऐसी मान्यताओं के विरोधी नेता है. अतः सबसे पहले इन्हें ही इस दिशा में पहल करनी पड़ेगी.
हे ब्राह्मण देव लोग! अभी भी समय है. अभी भी चेत सकते हो. अभी अपने मौलिक कर्त्तव्य को समझते हुए जनता के सर मौर बन सकते हो. अन्यथा कीड़े मकोड़े की तरह जीवित रहने के लिए इस नाली से उस नाली अर्थात इस धर्म से उस धर्म या इस मान्यता से उस मान्यता में परिवर्तित होते रहो.
हे ब्राह्मणों! नजीर रहे कि काश्मीर के धर पंडित अपनी मौलिक संस्कृति एवं मान्यताओं को भुला दिए. कोई अब्दुल मजीद दार हुआ तो कोई बंशी धर. और उसी बंशीधर के कुलदीप पंडित जवाहर लाल नेहरु हुए जिन्होंने मान्यताओं के ज्ञान के अभाव में अखंड भारत के दो टुकडे करवा दिए. और नयी अभीगर्हित मान्यताओं के पापाग्नी के लौ में जो काश्मीर को झोंका जो आज भी उससे ज्यादा धधकते हुए जल रहा है. फिर भी मान्यता परिवर्तन की आंधी नहीं रुकी.
किन्तु ब्राह्मण क्या करे? उसके बाद न तो “जिंदाबाद-मुर्दाबाद” करने का तो कोई आधार ही नहीं है. और हिन्दू मान्यताओं में अनेक खोट निकालते हुए पंडित इंदु मति नेहरू को समूचे हिन्दुस्तान में कोई काबिल “दूल्हा” नहीं मिला. और उन्होंने हिन्दू परपराओं से हटकर मुहम्मद फ़िरोज़ खान से विवाह किया. और फिर विनाश एवं भ्रष्टाचार की जो भयावह आंधी चली जो अब तो और गति पकड़ चुकी है. और मान्र्यता परिवर्तन की गति बरकरार रही. जिसे “राष्ट्रपिता” की संज्ञा से विभूषित करम चाँद गांधी ने पाखण्ड एवं झूठ की चादर पंडित इंदु मति नेहरु को “गोद लेने के” के रूप में ओढाकर छिपाने की कोशिस किये. किन्तु कोई सफलता नहीं मिली. आज का वर्त्तमान भारत सबके सामने है.
जैसे जैसे मान्यताओं का विरोध होता गया. जैसे जैसे सामाजिक मान्यताओं एवं पारिवारिक मूल्यों का ह्रास होता गया, जैसे समाज सुधार के नाम पर मान्यताओं की पवित्र चादर को तार तार किया जाने लगा, व्यभिचार उसके दोगुनी गति से ऊपर उठाता गया.
हे भूदेवो! अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है. इन मान्यताओं को नष्ट कर सामाजिक संतुलन को बिगाड़ने पर तुले विधर्मी एवं हिन्दू होने का स्वांग भरने वाले हिन्दू विरोधी घर भेदियों के षडयंत्र को विफल करो. जनता को बताओ. सीधे सादे हिन्दू श्रद्धालुओ को समझाओ कि ये अपनी नीच एवं गिरी हुई स्वार्थ सिद्धि के लिए हिन्दू मान्यताओं का गलत प्रचार एवं प्रसार कर अपने ही समान सबको विधर्मी बनाना चाहते है.
और फिर भी चेत नहीं हुआ तो हे अभागे ब्राह्मणों! अब इन सरकारी ब्राह्मणों” के हाथो केवल अपनी संपदा ही नहीं, बल्कि अपनी इज्ज़त, मान-मर्यादा, वंश-कुल, एवं मान-सम्मान को भी लुटते हुए देखते रहो.

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