नास्तिकजी का आस्तिकतावादी आडम्बर- एक आतंकवादी दर्शन भाग 2
नास्तिकजी का आस्तिकतावादी आडम्बर- एक आतंकवादी दर्शन भाग 2
नास्तिकजी– श्री आस्तिक जी, जब कोई व्यक्ति सिविल कोर्ट से मुक़द्दमा हार जाता है. तो वह ऊपरी अदालत में फिर क्यों अपील करता है?
आस्तिक जी– ताकि वहां से उसे न्याय मिल सके.
नास्तिक जी– तो क्या उसे निचली अदालत से अन्याय ही मिलता है?
आस्तिक जी– नहीं, यह बात नहीं है. हो सकता है. उस समय तक उसे सम्पूर्ण प्रमाण नहीं मिल पाए होगें. तथा उसका वकील उसका प्रस्तुति करण सही ढंग नहीं कर पाया होगा. इस लिए वह व्यक्ति मुक़द्दमा हार गया होगा. उसके बाद उसने ऊपरी अदालत में अपील की होगी.
नास्तिक जी– तो क्या यह आवश्यक है क़ि ऊपरी अदालत में उसने सारे प्रमाण प्रस्तुत ही कर दिए होगें? या उसके वकील ने सही ढंग से उसकी व्याख्या की होगी?
आस्तिक जी– तो कोई बात नहीं. वह व्यक्ति उच्च न्यायालय में जा सकता है.
नास्तिक जी– ऐसा क्यों? क्या उस प्रमाण के आधार पर उस निचली अदालत का ही न्यायाधीश पुनः फैसला नहीं दे सकता?
आस्तिक जी– भाई दे क्यों नहीं सकता है?
नास्तिक जी- फिर ये निचली एवं ऊपरी अदालत का गठन क्यों? यदि बाद में प्रमाण मिलते है तो बाद में उसी अदालत द्वारा दुबारा फैसला क्यों नहीं दिया जा सकता? आखिर जिन सुबूतो के आधार पर और जिस संविधान के आधार पर निचली अदालत फैसला देगी उसी के आधार पर ऊपरी अदालत भी फैसला देगी. क्या यह ऊपरी एवं निचली अदालत का आडम्बर नहीं है? या क्या एक बार फैसला देने के बाद वह न्यायाधीश दूषित हो जाता है-हिन्दू धर्म ग्रन्थ में जैसे ज्योतिष? लग रहा है सरकार भी ज्योतिष की तरह पाखंडी एवं आडम्बरी हो गयी है. जो कई तरह के ग्रहों के अनुसार विविध न्यायालयों को जन्म दे रही है. तथा जनता को भ्रम जाल में फंसा कर रख दी है. कोई आश्चर्य नहीं. संविधान में ऐसी व्यवस्था होगी तभी तो. अच्छा नमस्कार.
पाठक
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