नास्तिकजी का आस्तिकतावादी आडम्बर- एक आतंकवादी दर्शन भाग 4
नास्तिकजी का आस्तिकतावादी आडम्बर- एक आतंकवादी दर्शन भाग 4
नास्तिकजी- आस्तिकजी, बी टेक एवं बी ई में तो इंजिनीयरिंग की ही पढ़ाई होती है?
आस्तिक जी– बिलकुल, बी टेक या बी ई करने वाले ही इंजीनियर होते है.
नास्तिकजी– फिर केवल कुछ ही इंजिनीयरिंग करने वालो को नौकरी क्यों मिलती है? सब को क्यों नहीं मिलती है? या फिर उसके बाद भी नौकरी देने के लिए टेस्ट क्यों लिया जाता है?
आस्तिकजी- ऐसा इसलिए ताकि उनमें जो सबसे अच्छा एवं योग्य हो उसे चुना जा सके.
नास्तिक जी– तो जब तक कोई छात्र पूरा योग्य नहीं हो जाता उसे इंजिनीयरिंग की डिग्री ही क्यों दी जाती है? ताकि उसे फिर दुबारा टेस्ट न देना पड़े. तथा सरकार को फिर छटनी न करना पड़े.
आस्तिकजी– भाई उंच नीच तो हर जगह होता है. हर कोई एक सामान कैसे हो सकता है?
नास्तिकजी– आस्तिकजी, अभी आप हिन्दुओ के ज्योतिष के सामान लटकाने एवं भ्रम में डालने वाली बातें करने लगे. जब एक ही विषय, एक ही पठन सामग्री, एक ही शिक्षक, एक ही विद्यालय, फिर एक ही सामान परीक्षाफल क्यों नहीं?
आस्तिकजी– बात विषय, सामग्री या शिक्षक-शिक्षालय की नहीं, बल्कि बहुत कुछ शिक्षार्थी-विद्यार्थी पर भी निर्भर करता है. यदि विद्यार्थी पढ़े ही नहीं तो उसके लिए क्या किया जा सकता है/
नास्तिकजी– यदि विद्यार्थी पढ़ना ही नहीं चाहता, उसकी रूचि ही नहीं या उसके मुताबिक़ दिमाग की कमी है तो फिर उसे वह विषय पढ़ाया ही क्यों जाता है? क्यों नहीं उसे वही विषय पढ़ाया जाता है जिसमें उसकी रूचि हो, जिसमें वह परिश्रम कर सके, या जिसके लिए उसके पास पर्याप्त दिमाग हो? इस प्रकार विद्यार्थियों को भी सहूलियत हो जाती. सरकार को भी बार बार एक ही नौकरी के लिए अनेक टेस्ट्स नहीं कराने पड़ते. सब इकट्ठा योग्य इंजिनीयर निकलते.
आस्तिकजी– नास्तिकजी, फिर भी उनमें कोई सबसे अच्छा एवं कोई थोड़ा कम अच्छा विद्यार्थी होगा ही.
नास्तिकजी– आप फिर ज्योतिषियों की तरह पाखण्ड पूर्ण बातें करने लगे. तथा मार्ग से भटकाने वाली बातें करने लगे. जब सब विद्यार्थी रूचि से पढ़ने वाले, परिश्रम करने वाले तथा उस विषय के अनुकूल दिमाग वाले होगें तो सब एक सामान ही क्यों नहीं होगें? यह तो आप कुंडली के ग्रहों के सामान बाते करने लगे क़ि जो ग्रह चौथे भाव में होगा वह सातवें से, जो सातवें में होगा वह दशवें से तथा जो दशवें में होगा वह लग्न वाले से कमजोर होगा. इस अनेकता से तो समाज में विग्रह पैदा हो जाएगा. लोग भ्रम एवं अनिश्चितता के शिकार हो जायेगें. बिलकुल हिन्दुओ के ज्योतिष की तरह. चलिए कोई बात नहीं. फिर मिलेगें. नमस्कार.
पाठक
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