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औरतो के अपराधी चौदहवीं सदी के तुलसी या इक्कीसवीं सदी के?

भविष्य
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औरतो के अपराधी चौदहवीं सदी के तुलसी या इक्कीसवीं सदी के?
एक बनिया के घर में एक चूहा सपरिवार रहता था. बड़े मजे में वह बनिया के दूकान की खाने वाली चीजों का सपरिवार भोग लगाता था. बनिया तो वैसे हल्दी का थोक व्यापारी था. वह और कोई चीज नहीं बेचता था. किन्तु वह अपने लिए घर से खाने पीने की चीजें लेकर रोज दूकान पर आता था. तथा दोपहर का भोजन एवं नास्ता आदि वह दूकान में ही करता था. खा पीकर वह बर्तन इकट्ठा कर के रख देता था. तथा घर जाकर बर्तन धोता था. चूहे उसका जूठन खाना भी खाते थे.  तथा उसके कुरते, पाकिट में रखे रुपये पैसे आदि को भी कुतर देते थे. नित्य स्वादिष्ट खाना प्रचुर मात्रा में मिलने के कारण धीरे धीरे उसके परिवार के सदस्यों की संख्या में बढ़ोत्तरी होती चली गयी. अब बनिया की दूकान के सामान ज्यादा नुकसान होने लगे. बनिया को चिंता हुई. उसने एक चूहादानी मंगवाया. और धीरे धीरे एक एक कर उस चूहे के परिवार के सदस्यों को बाहर दूर फेंकवा दिया. खुले में पडा चूहा परिवार कुछ तो चील कौवो का शिकार बन गया. शेष किसी तरह जान बचाकर किसी सुरक्षित जगह पर शरण ले लिए. और कुछ दिन बाद बचे परिवार के वे सदस्य वापस उसी दूकान में पहुंचे. फिर सब ने मिल कर परस्पर राय मशविरा किया. सब ने एक सुर से बनिया के विरुद्ध निंदा प्रस्ताव पारित किया. और बनिया के इस अपराध के लिए भयंकर दंड की व्यवस्था करने के प्रस्ताव के साथ उनकी वह सभा समाप्त हुई. अब सभी ने मिलकर उसके गल्ले में छेद करने की योजना बनायी. सब ने मिल कर जोर शोर से काम करना शुरू किया. और रात रात में ही गल्ले में छेद कर के उसके पैसो को ढूँढने लगे. लेकिन बनिया तो दूकान बंद करने के साथ ही गल्ला निकाल कर उसे साथ लेकर चला गया था. उनके हाथ में कुछ एक ही रुपये लगे. उसी रुपये को सब ने मिल कर बुरी तरह कुतर दिया. फिर गुस्से में सब बाहर निकल कर उसके फर्श धोने के लिए रखे गए तेज़ाब के डिब्बे को भी कुतर दिया. तेज़ाब के डिब्बे में छेद होते ही वह उग्र तेज़ाब द्रुत गति से बहते हुए बाहर निकला. और चूहों के ऊपर पडा. ढेर सारे चूहे जल गए. किन्तु परिवार का मुखिया बच गया. अब उसे भय हो गया. वह उस दूकान से भाग निकला. अफसोस एवं चिंता में वह इधर उधर भटक रहा था. तभी रास्ते में उसे एक हल्दी की गाँठ मिल गयी. उसने सोचा क़ि बनिया के पास भी तो हल्दी था. उसी से बनिया भी दूकान चलाता था. और बड़े स्वादिष्ट भोजन नित्य ही करता था. हम भी इस हल्दी की गाँठ से दूकान करेगें. और जब दूकान खूब चल जायेगी. तो सपरिवार अच्छे एवं स्वादिष्ट भोजन करेगें.
बस क्या था? उसने भी दूकान खोल दी. अपने समाज में नयी दूकान एवं उसमें भी नयी चीज देख कर सबने उसे तुरत खरीद लिया. और उसे सहेजने की चीज समझ कर सबने उसे अपने अपने घरो में रख लिया. अब चूहे को फिर दुबारा हल्दी लाने की चिंता सताने लगी. बहुत विचार के बाद वह पुनः रात को उस बनिया की दूकान में पहुंचा. और पूरा एक गट्ठर ही घसीट कर लाने का प्रयत्न करने लगा. उस गट्ठर के ऊपर ही उसके तौलने के बाट रखे हुए थे. बस, उस गट्ठर के ऊपर से वह लोहे का भारी बाट उस चूहे के सिर पर गिर गया. चूहे का सिर कुचल गया. और वह मर गया.
इसी तरह आज के तुलसी दास लोग है. राम चरित मानस में एक चौपाई पढ़ लिए-
शूद्र गंवार ढोल पशु नारी. सकल ताड़ना के अधिकारी.
अर्थात शूद्र जिसका शुद्ध रूप क्षुद्र है, गंवार अर्थात बुद्धि हीन, ढोल अर्थात वाद्य यंत्र जो पीटने पर बजता है, पशु अर्थात जंगली प्राणी (पालतू नहीं), नारी अर्थात औरत. ये सब प्रताडनीय है.
बस इतना तुलसी दास ने औरतो के बारे में क्यों कहा? वह औरत विरोधी है. औरतो के प्रति उनके पास कोई सम्मान नहीं है. उन्होंने औरतो के सम्मान पर कुठारा घात किया है. वह अनपढ़, गंवार, जाहिल एवं सामाज विरोधी थे. उनका बहिष्कार होना चाहिए. उनके इस ग्रन्थ को पर्तिबंधित कर देना चाहिए. आदि आदि. मध्य प्रदेश में हुए किन्नरों की सभा की भांति इन्होने भी अपना एक समाज – एक संगठन तैयार कर लिया. औरतो के लिए उनके सम्मान में टेसुए बहाने लगे. औरतो को यह समझाने में लग गए क़ि तुलसी ने ही औरतो को इस गिरी हुई दशा में पहुंचाया.
किन्तु शायद इन चूहों को इतना ज्ञान नहीं है क़ि अब औरतें पढ़ लिख गयी है. उन्होंने भी राम चरित मानस पढ़ा है. अंतर सिर्फ इतना है क़ि ये औरतें पूरा राम चरित मानस पढी है. और ये टेसुए बहाने वाले इस पवित्र ग्रन्थ के ज्ञान की ढेरी से एक हल्दी का वह टुकड़ा उठा लिए जो उनकी मौत का कारण बनने वाला है.  देखें-
सती जी ने श्रीराम की पत्नी सीता का रूप धारण किया था. अपनी पत्नी के रूप में होते हुए भी भगवान राम सती को शीश झुका कर विनम्रता पूर्वक प्रणाम करते है-
“जोरी पानि प्रभु कीन्ह प्रनामू. पिता समेत लीन्ह निज नामू.” ——(बालकाण्ड- सती मोह)
सूर्पणखा ने राम को अपनी वासना का शिकार बनाना चाहा-
रुचिर रूप धरी प्रभु पहि जाई. बोली बचन बहुत मुसुकाई.
तो  सम पुरुष न मो सम नारी. यह संयोग विधि रचा विचारी.
——————————–अहई कुमार मोर लघु भ्राता.
और भगवान ने उसके प्रणय निवेदन को बहुत शालीनता के साथ यह कह कर टाल दिया क़ि मैं पहले से ही विवाहित हूँ. मेरा छोटा भाई अविवाहित है. उससे पूछो, यदि उसकी सम्मति हो. तो उससे विवाह कर सकती हो. अर्थात एक अविवाहित स्त्री की मर्यादा विवाह के परिप्रेक्ष्य में महत्तम होती है. जो भोग्या नहीं बल्कि ग्राह्या है.
“अनुज वधु भगिनी सुत नारी. सुनु शठ कन्या सम ए चारी.
इन्हहि कुदृष्टि बिलोकहि जोई. ताहि बधे कछु पाप न होई.” (किष्किन्धा काण्ड- बाली-सुग्रीव द्वंद्व युद्ध)
अर्थात भाई की पत्नी, बहन, पुत्र वधु एवं कन्या ये चारो बराबर है. इन्हें जो कुदृष्टि से भी देखे उसे वध कर देने में कोई पाप नहीं होता है.
यही नहीं स्त्री की सीख बहुत ही महत्व पूर्ण होती है-
“अहो मूढ़! अतिशय अभिमाना. नारि सिखावन करसि न काना.” (तदेव)
अर्थात हे मूर्ख! तुमने अति महत्त्व पूर्ण नारि की शिक्षा पर भी ध्यान नहीं दिया?
यदि तुलसी दास द्वारा महिलाओं की उच्चता का जितना वर्णन किया गया है, उसका उल्लेख उसी तरह दोहा-चौपाई में किया जाय तो एक नया रामचरित मानस तैयार हो जाएगा. फिर भी आप देखें- विश्वामित्र के यज्ञ विध्वंश में ताड़का के वध को भगवान ने यह कह कर अस्वीकार कर दिया क़ि उनके कुल में या शिक्षा में औरतो का वध निषेध है, यद्यपि वे भले कुलक्षनी हो. किन्तु जब विश्वामित्र ने कहा क़ि एक कुलक्षनी के नाश से यदि सैकड़ो सुलक्षनियो की रक्षा हो सकती हो, तो उसे करना चाहिए. तथा एक राजा को अपनी प्रजा के सुख के लिए किसी कुलक्षनी की ह्त्या आवश्यक है. अन्यथा प्रजा की पीड़ा से उस राजा को नरक यातना भोगनी पड़ती है. तब जाकर भगवान ने उस ताड़का का वध किया.
रावण के द्वारा सीता हरण के समय सीता जी चलाती जाती थी. तथा अपने आभूशानो को तोड़ तोड़ कर नीचे फेंकती जाती थी. जब राम अपने भाई लक्ष्मण के साथ उन्हें ढूँढने निकले तो एक एक कर के वे आभूषण मिलते गए. राम प्रतेक आभूषण को उठा कर उसके बारे में लक्ष्मण से पूछते जाते थे. जैसे सिर का मंगल सूत्र मिला. राम ने उसे लक्ष्मण को दिखाते हुए पूछा क़ि लक्ष्मण देखो यह सीता का मंगल सूत्र है. तब लक्ष्मण जी का उत्तर था क़ि हो सकता है, यह सीता जी का हो. आगे फिर गले का हार मिला. फिर राम ने लक्ष्मण से कहा क़ि लक्ष्मण देखो यह सीता जी का हार है. लक्ष्मण जी ने उत्तर दिया क़ि हो सकता है यह सीता जे का हो. फिर उनका पाँव का पाजेब मिला. राम ने कहा क़ि देखो लक्ष्मण यह सीता का पाजेब लगता है. लक्ष्मण जी बिलकुल आवेशित हो गए. तथा बोले क़ि निश्चित रूप से यह माता सीता का ही पाजेब है. राम जी चौंक गए. उन्होंने पूछा क़ि मंगल सूत्र एवं हार के बारे में तुमने कहा क़ि हो सकता है क़ि सीता का हो. किन्तु जब पाजेब की बारी आई तब तुमने दृढ़ता पूर्वक कह दिया क़ि यह निश्चित रूप से सीता का ही है. ऐसा क्यों? लक्ष्मण ने उत्तर दिया क़ि सीता उनकी मान है. उन्होंने सीता को कभी सिर के ऊपर देखा ही नाहे. उन्होंने सदा उनके चरणों की तरफ ही देखा है. नित्य चरणों पर दृष्टि रहने के कारण उनके पाजेब की मुझे सही पहचान है.
इससे बड़ा एक औरत का सम्मान क्या हो सकता है?
यदि औरत जाति के प्रति दुर्भावना होती तो रावण जैसा त्रिलोक विजयी सीता को अशोक वन में क्यों रखता? उन्हें अपने सोने के महलों में बलात उठा कर ले जाता. तथा उन्हें जबरदस्ती अपनी रानी बनाता. या उनका शील हरण करता. फिर उसे क्या पडी थी क़ि सीता को अशोक वाटिका में रखा? उसकी सेवा में विष्णु भक्ता त्रिजटा को लगाता?
यदि राम के लिए नारी एक सर्वथा त्याज्य एवं ताड़ना की ही अधिकारिणी थी तो फिर राजसूय यज्ञ के समय सीता के अभाव में सोने की सीता की मूर्ती बनवाकर क्यों रखवाते? और उस यग्य में उस औरत की चरण वन्दना करवाते?
अरे चूहों! हल्दी की एक गाँठ के चक्कर में क्यों अपना सर्वनाश करवाते हो? क्यों आधे अधूरे पाठ से द्रोणाचार्य की तरह अपनी जान गंवाना चाहते हो? जिन्होंने युद्धिष्ठिर की पूरी बात नहीं सुनी क़ि अश्वत्थामा कौन मरा? हाथी या मनुष्य? और अपने अधूरे ज्ञान के कारण उन्हें अपने प्राणों से हाथ धोना पडा.
संभवतः ही ऐसा कोई ग्रन्थ होगा जहाँ पर राम चरित मानस से ज्यादा औरतो की महत्ता वर्णित हो.
आज के तुलसी औरतो का कितना सम्मान कर रहे है? क्या इसका भी वर्णन यहाँ आवश्यक है? मेरी समझ से इतने स्वच्छ वर्णन की कोई आवश्यकता नहीं है.
और नारी वह भी है जो लोक लाज के भय से अपने नाजायज नवजात शिशु को झाडी या कचरे के डब्बे में फेंक आती है. नारी वह भी है जो अपनी वासना की भूख मिटाने के लिए किटी पार्टी, बियर बार, और भी ऐसी कितनी पार्टियां या मसाज सेंटर अटेंड करती है.
और आज के तुलसी इन्ही नारियो के गुण ग्राहक है.
धन्य हो ऐसे महान ज्ञानवान एवं आधुनिकता माता के वर प्राप्त तुलसी!
पाठक

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