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मन की भटकन

DIL KI KALAM SE
DIL KI KALAM SE
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सब कुछ जग में नश्वर है
एक ही सबका ईश्वर हैं
हिन्दू ,मुश्लिम, सिख, ईसाई
अनेक धर्मो में बट गया जग
मन में फिर क्यूँ भटकन है l

क्या करूँ मैं, क्या कहूँ मैं
क्या सोचे ये चंचल मन
आत्मचिंतन को छोड़ के मैं
लगा रहा अर्जित करने
मान सम्मान और केवल धन
समय गवाया जीवन भर l

सच जीवन का दर्पण है
वेद पुराण में वर्णन है
समाहित कर जग कल्याण को
गीता जग में उपस्थित है
मन में फिर क्यूँ भटकन है l

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