DIL KI KALAM SE
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वक़्त भी क्या चीज है यारों
हर ओर हकूमत इसकी छाई है
कही छाया है मातम की
तो कहीं बजी शहनाई है l
गिरगिट सा है रंग बदलता
हर्षित, भयभीत, भ्रमित कर
परिचय जग को अपना देता
रंक से राजा पल में बनता
वक़्त जिस पर मेहरबान हुआ
क्षणभर भी न टिकता जग में
काल का भयंकर जब वार हुआ
रावण राजा बड़ा निराला
अहं स्वयं के शिकार हुआ
क्षण भर में परलोक सिधारा
दुस्साहस जब वक़्त से
टकराने का था उसने किया
ग्रसित करता पलभर में
जिसका सामना वक़्त का
जग में यार हुआ
रोक सके जो रोके इसको
किसकी शामत आई है
क्षिप्र गति से दौड़ लगाता
ना देख सके इसकी कोई परछाई है
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