DIL KI KALAM SE
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काल्पनिक दुनियाँ बड़ी निराली
क्षण में राजा क्षण में खाली
खुले नयन से सपना देखे
चित लगाये तो उलझन पाली
क्षणिक समय में स्वर्ग दिखाए
हर ख़ुशी को पल में पाए
शीघ्र ही मनसा की पूर्ति होती
कल्पनाये जब मन में होती
झर झर झरने
नयन से गिरते
खग विहग भी करतल करते
नई उमंग को कर उजागर
बिन पंख के नभ विचरते
चक्षु खुले तो आई समझ
कैसे जिये हम, ये जीवन
सुख दुःख तो है, एक जरोखा
भाग्य को ना किसी ने देखा
क्यों ना हम मौज मनाये
प्रेम से सबको गले लगाये
लेखक “श्री गौरव भट्ट”
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