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फांसी होने का दरवाजा खोलें!

सपाटबयानी
सपाटबयानी
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अभी हाल में हुए गैंग रैप में सुशील कुमार के साथ भले ही चिदंबरम जी ने मोर्चा सम्भाला हो, पर क्या कुछ होने वाला है?, नहीं! यह खेल कभी भी बंद नहीं है होने वाला! देखा जाय तो यह पाप किसी की ह्त्या करने से भी घिनौना और भयावह है! सोचिये की उस लड़की का क्या हाल हो रहा होता होगा ,जिसकेसाथ यह दूश्कर्म हो रहा होता होगा?एक सामान्य आदमी की हालत जब सुनकर ही खराब हो जाती है तो भुक्तभोगी का हाल बयान करना कैसे संभव होगा?इसका इलाज है की संविधान में परिवर्तन कर ऐसे लोगोको फांसी दी जाने का का दरवाजा खोला जाए! फांसी भी मुग़ल कालीन तरीके से —“सार्वजनिक रूप से चौराहे पर जनता के सामने गोलियों से भूना जाए! ताकि दर्शकों के मन में भय पैदा हो सके!’यदि यह तरीका नहीं अपनाया गया तो यह सब चलता ही रहेगा और कोइ भी कुछनही कर पायेगा!

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