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सरकारों ने सदा नवयुवकों को रिझाने के लिए उनकी भागीडारी को राजनीति में लाने के लिए आवश्यक बताया है, इस तरह उन्हें सदा ही उन्हें उल्लू बनाया है ! यही तो है पुराने घाघों की राजनीति! यदि नव युवक आ गए तो इन घाघों को कौन पूछेगा? इतिहास गवाह है की आज नव युवकों में पायलट और सुन्धिया जी के कुंवरो ने क्या कर दिखाया? और तो और श्री अखिलेश ने सता संभालने के बाद क्या कुछ किया जिसे हमें इन पर नाज हो सकता? और सबसे ताकतवर युवा नेता राहुल ने क्या किया? और अब वे श्री मोदी जी के सामने क्या टिक सकते हैं, यदि नहीं तो क्या इन युवा नेताओं से क्या हम उम्मीद कर सकते हैं! घाघों को तो इन्हें पाल कर इनसे घूण्डइपन का लाभ लेना है इसलिए ये इन्हें पालते है,ताकि अपना स्वार्थ सिद्ध कर सके ! इसमे कोइ शक नहीं की ये अनुभव् हीन कुछ नहीं कर सकते और करना भी चाहें तो ये घाघ कुछ भी नहीं करने देंगे! सच है की बिल्ली शेर को पेड़ पर चड़ना कैसे सिखाएगी? शेर उसे खा नही जाएगा? हमें चापलूसों की बातें न मानकर यह नहीं भूलना होगा की राहुल कभी भी पी एम् नहीं बन सकेंगे और बन भी गए तो अखिलेश की तरह नाकाम ही रहेंगे! अखिलेश पिता के कारण भले सी एम् बन गए पर असफल सी एम् कहलायेंगे!
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