प्रवाचक भी श्रम करते है!—-मेरी अमेरीका से आख़िरी पोस्ट!
सपाटबयानी
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आजकल हमारे देश में तमाम प्रवचन करने वाले हो गए है! इतनी भीड़ के कारण टी.वी. के दो-तीन चैनल तो सारा दिन इन्ही से भरे रहते है! आप ‘संस्कार’ या ‘आस्था’ चैनल खोलें तो कोई न कोई प्रवचन करने वाला/वाली मिल ही जायेंगे?जायेंगी! और यदि आप धार्मिक विचारों के हैं तो घर बैठ कर ही सारा समय बिता सकते है, कहीं जाने के बिना आप घर बैठे ही अपने भगवान का स्मरण कर लाभ पा सकते है! इनमे तामाम साधु, सन्यासी और योग गुरुओं के नाम आते है! ये सिर्फ प्रवचन के काम ही नहीं करते है अपितु अन्य काम करके भी समाज का लाभ करते है! इनमे स्वामी राम देव दवाईयां बना कर , सतपाल जी, सांसद हो कर, बापू आसाराम भी दवाईंया बना कर,श्री श्री रवि शंकर और तरुण सागर जी अपना प्रकाशन बेचकर समाज को लाभ तो पहुंचा रहे है और तो और समाज की सेवा भी कर रहे है! इस परिश्रम के बदले अगर अपने बेटे की शादी में खूब पैसा खर्च करते है तो क्या हुआ? हर बाप की इच्छा नहीं होती की यदि उसके पास पैसा है तो खर्च करे और पैसा तो खर्च करने के लिए ही होता है! अगर ये लोग सोने और हीरों की घडीयाँ पहनते है और अपने बच्चों को विदेशों मे शिक्षा देने हेतु भेजते है तो उनके उज्जवल भविष्य के लिए जो हर पिता करता है, बाकी इनकी करनी और कथनी में अगर भेद है, तो हम क्यों भूल जाते है की ये पहले मानव है,जिसकी यह कमजोरी होती है! यह उनके परिश्रम का ही तो फल है और इतने बड़े काम में गलती तो होती ही है! और संत विमल जी महाराज ने अपने जीवन में व्यापार करके तमाम नुकसान उठाया,तनाव झेले और तमाम मेहनत के बाद इस मुकाम को हासिल किया तो क्या बुरा किया? इसलिए समाज इनसब संतों का कृतज्ञ है! आप देखेंगे की इनमे कुछ तो शक्ति है की तमाम लोग इनके प्रति क्यों और कैसे आकर्षित हो कर ,अपना घर बार छोड़ कर नियमित ही इनकी सेवा में रहते है , जो इनके शिष्य कहलवाकर अपने को धन्य मानते हैं! आप यदि इनसे भी अच्छा प्रवचन कर सकने की कला प्राप्त भी कर लें तो भी आप दस लोग इकट्ठा नहीं कर सकते और शिष्य बनाना तो दूर-दूर तक संभव ही नहीं! इस तरह की कला और फन में माहिरों में बापू आसाराम, स्वामी राम देव, सतपाल जी महाराज,आचार्य सुधांशु जी महाराज, गुरु माँ आनंद मूर्ती,श्री श्री रवि शंकर जी, क्रांतिकारी जैन मुनि तरुण सागर जी महांराज और विमल जी जैसे संतों के नाम मुख्य है! इस तरह इन्होने इस मुकाम पर पहुँचने में पूरा जीवन ही खपा दिया होगा, तब जाकर ये लोग इन ऊंचाईयों पर पहुंच सके हैं ! जिसे हम इनका परिश्रम, साधना,और नियमित अभ्यास कह सकते हैं! जो एक दिन में पा लेना संभव है ही नहीं! बाकी रही बात इनके असामाजिक कार्यो की उससे हमें क्या लेना-देना? हम केवल इनकी अच्छी -अच्छी बातों को ले और बुरी बातों को नजरंदाज कर दे! उनके वचनों से ५००लोगों में से पांच लोग भी लाभ ले कर अपना जीवन बना लेते है तो इनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता! याद रखें की इनकी आज की ऊंचाईयों की नीव में कितनी न टूटी फूटी ईंटें लगी हुई है! जिन्हें देख पाना किसी के बस की बात नहीं! ॐ हरि ॐ!
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