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अन्ना का आन्दोलन आज की जरूरत है यह सब जानते हैं, कारण की सब इस सड़ी व्यवस्था से दुखी हैं इसलिए कहते हैंकि हम अन्ना के साथ हैं ,हम अन्ना के साथ हैं क्या यह कहना भर अन्ना के साथ होना हो जाएगा?.विवशता यह भी है की क्या हर आदमी घर छोड़ कर यदी अन्ना के पास चला भी जाया तो उनके धर्म का पालन कौन करेगा? इस समय देश की हालत देख आकर अन्ना के कदम को सब सही बताते हैं फिर भी अनुपम्खेर और चौहान साब क्यों समझाते हैं की अनशन तोड़ दें अन्ना की टीम?.क्या जिस लिए अन्ना लड़ रहे हैं उसका यह समाधान है की अनशन छोड़ दें?नहीं बिलकुल ही नहीं.यदि अरविद या अन्ना को कुछ होगया तो क्या होगा इस अनशन का?क्या सरकार मान जायेगी? या यह सरकार हट भी जाय या हार भी जाय तो नए लोग क्या स्वर्ग से आयेंगे?देश चलाने को?जैसा अभी हाल में यूं.पी. में मायावती के बाद अखिलेश के आने से क्या कुछ बदला है. जो हालत पहले थे वही अब भी है.और रहेंगे भी शायद.सर्फ़ लोगों को लगा की हमने मायावती को हटा दिया
हमारादेश गलत आदमियों का देश है तो फिर क्या होगा शायद किसी को भी इसकी साफ़ दृष्टी है ही नहीं? यह सोच साफ़ हो तब आगे बढ़ना ठीक होगा जो की नहीं है किसी के पास.मैंने जाना की भ्रष्ट भी भ्रष्टाचार से तंग हैं फिर भी वे गलत काम इसलिए कर रहे हैं क्योंकि सामनेवाला जो कर रहा है.उसका कुछ नहीं बिगड़ रहा है,तो मैं भी क्यों न करू यह गलत काम ?
हम मानते चले आ रहे हैं की इस धरती पर जब जब पाप बढ़ जाते हैं तो भगवान् आते हैं, पर अब भगवान् भी हम देशवासीयों से डरते हैं और अवतार ले कर दुःख दूर करने से डरने लगे हैं मुझे देश की भयावह स्थिति का आभास हो रहा है जिसे हिंदी में ‘गृहयुद्ध’ कहते हैं , इसमे बेगुनाह भी मारे जायेंगे, . पर और कोई चारा नहीं है. यह भी बलिदान होगा. कहते हैं की –“सूखी के साथ गीली भी जल् जाती हैं”.
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