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बहुरानियों की शापिंग!

सपाटबयानी
सपाटबयानी
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आजकल यह फैशन हो गया है की तमाम पैसे के फैलाव के कारण बड़े और औसतन घरों की बहुएं अनावश्यक खरीदारी करने में ही विश्वास रखती हैं ! माल्स में जाने से मतलब की कोई न कोई चीज जरूर खरीदनी है वरना माल में जाने का क्या मतलब? जरूरत है नहीं कोट, स्वेटर की लेकिन खरीदना है,क्योंकि पैसा जो पर्स में है! इसतरह उन्हें नहीं मालूम की कितने स्वेटर और कोट घर में हैं जिन्हें पहनना याद ही नहीं रहा! दो-तीन साल बाद उन्हें आऊट डेटेड कह कर फेंकना इनकी आदत बन जाती है! पति तो कान पकड़ी भेड़ है और घरमें सास ससुर कोई भी कुछ कहने की जुर्रत कर नहीं सकता! इस तरह पैसे वालों का पैसा यूं ही बर्बाद हो कर बह जाता है! हम भूल जाते हैं की पैसे की कद्र नहीं करेंगे तो पैसा हमारी कद्र नहीं करेगा! हम हर सुविधा को सुविधा की तरह लें, जरूरत हो तो जरूर लें वरना क्या पैसा काट रहा है जो इसे हम बर्बाद करें ? हम न भूलें की अपनी गलत आदतों से बड़े नहीं बन सकते परन्तु हम कायदे से रहें यही हमारी अच्छी आदत है, हमारा अछा भविष्य हो सकेगा! दिखावा आपको दुःख देगा, इसे न भूलें! तरीके से रहें, तरीके से खर्च करें और तरीके से खाएं ,पता नहीं भगवान आपका परीक्षण ले रहा हो , इसे न भूलें!

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