हम लोग बच्चों के नाम भगवान के नाम पर ही रखना पसंद करते है ,जैसे राम,कृषना ,सीता आदि , यह सोचकर की उसमे भगवान् के गुण आ जायेंगे! मै कहता हूँ कि हर आदमी भगवान् का स्वरुप है या भगवान् ही है, उसमे भगवान् का वास है! मन में सचाई हो, सुन्दरता हो,किसी के प्रति द्वेषभाव न हो वही सुन्दर है वही भगवान है,इसलिये कोई कहे की मैं भगवान् हूँ तो वह गलत नहीं कहता? बशर्ते उसमे तथाकथित गुण हों! इस समाज में तीन तरह के लोग हैं पहला है साधारण,दूसरा है जो अन्यों के दर्द में दर्द महसूस कर उसे अपना ही दर्द मानकर उनके लिए कुछ करने को तत्पर रहते हैं और तीसरे वे हैं जो सभी समाजों के लोगों को जीने ही नहीं देते वे उनका शोषण कर अपना दबदबा बढ़ाते हैं ये राक्षस स्वभाव के होते हैं! दूसरे दर्जे के लोग बहुत कम या सदीयों मे एक ही पैदा होते है और यही तीसरे प्रकार के लोगों से समाज को राहत पहुंचाते है. ये भी समाज के लोग होते हैं जो इस स्वभाव और कर्मों के कारण मनुष्य से भगवान बन जाते हैं.और भगवान ही कहलाने योग्य होते हैं, वास्तव मे ये होते तो मनुष्य ही हैं उनका भी जन्म,मरण होता है पर अपने कर्मों से वे मनुष्य से भगवान बन जाते हैं! हमारे भगवान् राम एक राजकुमार,राजा दशरथ और रानी कैकयी के पुत्र ही थे,एक मनुष्य ही थे,फिर उन्हें हम भगवान क्यों मानते है? जब तक यह संसार रहेगा उन्हें हम सभी भगवान् के रूप मे ही पूजते रहेंगे,आज तक और जब तक यह पृथ्वी रहेगी ,हम दिवाली और दशहरा मनाकर उनकी पूजा करना नहीं भूलेंगे! जब की वे मानव ही थे फिर क्यों वे भगवान कहलाने लगे? मानव की तरह उनका भी जन्म हुआ और मरण भी ! उनके लिए महात्मा तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना कर डाली! क्यों?, ऊपर हमने जो तीन प्रकार के मनुष्य बताये हैं उनमे वे दूसरे प्रकार के मानव थे ,जो दूसरों के दर्द को अपना दर्द समझ कर कुछ काम कर गए जिससे जनता को तीसरे तरह के लोगों से राहत मिले! उनमे भेद-भाव की कोई बात नहीं थी,वे सभी गुण संपन्न थे ,राम से भगवान् राम बने इस प्राणी ने शबरी को, जत्तायु को. केवट को,विभीषण को,वानरों को, बाली को,साथ ले कर चलने और उनका दर्द को जानने का दर्द था, उसे दूर करने को बेताब थे, उन्होंने उस काल के राक्षसों से सभी प्रकार के पीड़ितों की रक्षा की! और राक्षस रावण को मार दिया! उनके इस कर्म से वे राम से भगवान राम बन गए! महात्मा तुलसीदास से किसी ने पूछा की आप राम की स्तुति ही क्यों करते हैं ? उनका जवाब था की उनमे शक्ति,शील और सौंदर्य के जो तीन गुण हैं उनके कारण!इस प्रकार आचार्य शुक्ल जी ने उन्हें उच्च धर्म के पालनहार के रूप मे देखा,उन्हें अपने और पराये,अमीर और गरीब मे कोई फर्क नहीं लगता था ,सबका दर्द उनका दर्द था तभी तो सब उनके साथ हो गए थे! वे मैदानी नदी की तरह सबको साथ लेकर चलते थे, जिनकी चाल धीमी होती थी वे भी उनके साथ हो लेते थे! आचार्य शुक्ल जी मानते थे की_”जो किसी के दर्द को देख कर दुखी नहीं होते ,किसी की खुशी में खुश नहीं होते ,उनके जीवन में रखा ही क्या है?,उनका जीवन तो मरुस्थल की यात्रा ही है.” राम से भगवान राम बने इस मानव में सब को अपना दुःख महसूस करने की खूबी थी इसलिये वे जन से भगवान् बन गए! आप भी बन सकते है भगवान् ,आप में वे गुण हैं ऊन्हे कार्य रूप देना है, बस!
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