उर्दू शायर ने कहा है की— “खुद ही को कर बुलंद इतना की, हर तदबीर से पहले, खुदा बन्दे से ये पूछे की बता तेरी रजा क्या है?” और फिर यही बात दूसरे शब्दों में कही गयी है— “मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिये” आज हम किसी बात को लेकर परेशान हो जाते है और हार कर बैठ जाते है, की यह प्रयास भी फेल हो गया! पर ऐसा नहीं है ! आप किसी काम को करने से पहले सही संकल्प ले, तो कोई कारण नहीं , आप सफल न हो! आपको एक प्रेरक कथा सुनाता हूँ, देखीये की क्या नहीं हो सकता है? आपका भाग्य भी आप से पूछेगा की बताओ, क्या लिखूं तुम्हारे भाग्य में? एक बार की बात है की किसी स्कूल में एक बालक पढ़ने जाता था! जैसे दूसरे बालक भी जाते थे! यह बालक पढ़ने में थोड़ा कमजोर किस्म का था सो रोज ही मास्टर जी,के डडो से मार खाता था! यह सिलसिला चलता- रहा, चलता- रहा! एक दिनकी बात है की मास्टर जी, ने एक-एक बालक की सीट पर जा कर दिया हुआ कार्य चेक किया! इस बालक ने अपने आदतानुसार काम नहीं किया था और अपने आप ही हथेली मास्टर जी के आगे कर दी मार खाने के लिए! मास्टर जी ने डंडा उठाया और हथेली की तरफ देखते ही डंडा रख दिया और कहा बेटे मै तुझे नाहक रोज ही मारता रहा हूँ, तेरे तो हाथ में तो विद्या की रेखा है ही नहीं! बस फिर क्या था बालक को यह बात चुभ गयी और उसने मास्टर जी,, से पूछा — मास्टर जी, मुझे बताईये की हाथ में विद्या- रेखा कहा होती है?, मास्टर जी ,ने उसे विद्या- रेखा का स्थान बता दिया! बालक उसी क्षण गया और ब्लेड ले कर उस स्थान पर चीरा लगा कर वापिस कक्षा में आया ! मास्टर जी, ने उसकी लहू-लुहान हथेली देखकर पूछा की यह कैसे हो गया? बालक ने बताया की मास्टर जी मैंने अपने हाथ में खुद ही विद्या की रेखा खींच ली है ,अब आप मुझे पढ़ाईये, मै पढूंगा! यही बालक बताते है की आगे चलकर संस्कृत का ‘पाणिनि’ बना जिसकी व्याकरण ” अष्टाध्यायी ” आज तक महाग्रन्थ माना जाता है! विशव के विदेशी विद्वान् आज भी इस ग्रन्थ की कद्र करते है! तो कहने का मतलब है की आप का संकल्प सही हो तो अपने भाग्य को खुद बना सकते है! जैसा कक्षा के कमजोर बालक ने अपने ही संकल्प से महानता हासिल कर ली और तब आप से आपका ‘भाग्य- विधाता’ खुद ही आकर पूछेगा, बताओ क्या चाहते हो और वैसा ही कर देगा!
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