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एक सपना था जो टूट गया फिर,
व्यर्थ का ये प्रलाप है क्यों,
ख़ाबों के टूटने पर भी कभी,
कोई जान देता है भला,
रात तुम सोये,
चंद सपनों ने बहलाया रात भर,
सपने में राजा बने बैठे थे तुम,
दोनों हाथों से धन लुटाते,
अपनी जयघोष सुनकर प्रफुल्लित हुए,
अब नींद पूरी हो गई है,
उठो और मुस्कुराकर,
शुक्रिया कहो उस रात को,
जिसने चंद पलों के लिए ही सही,
कुछ ऐसा दिया,
जो खोजते हो शायद हर रोज कहीं,
सपने में जो देखा वो मिला नहीं,
ये सोचने का आखिर फायदा क्या है,
ये जीवन भी एक सपना ही है,
सब खाली हाथ ही आते हैं,
कुछ नाम कुछ सम्मान,
यहाँ पाते हैं कुछ ही देर के लिए,
और इतराते हैं सीने से लगाए उसे,
पर जब बारी जाने के आती है,
तब सब छूटता सा लगने लगता है,
जो कुछ लाया ही नहीं,
उसका क्या छूटता है यहाँ,
व्यर्थ के प्रलाप में रखा क्या है,
मौत ही अंतिम सत्य है,
इससे बचना संभव ही कहाँ है,
तो मुस्कुराओ और शुक्रिया कहो,
उस जीवन को जो रंग कई दिखा कर,
अब छूट रहा है धीरे से……..
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