- 117 Posts
- 2690 Comments
आज एक छोटे से लड़के को मंदिर के सामने कुछ प्रार्थना करते देखा………. कौतूहलवश पूछ बैठा ……… क्या प्रार्थना की……? वो बोला कुछ नहीं…….. बस इतना कहा है की कैसे भी पास करवा को इस साल तो ग्यारह रुपये चढ़ाऊगा………. अचानक अपनी याद आ गयी……… एक तो सुबह ही राजकमल भाई का ब्लॉग उधार पिछले जनम का पढ़ा था….. तो उस याद मे एक भय भी था………
मुझे याद है की जब छोटा था तो समझाया गया था की 5 वीं की परीक्षा सबसे महत्वपूर्ण होती है…….. तो यहाँ अच्छे अंक आए तो समझो कुछ हुआ । फिर कुछ साल बाद 10वीं के लिए ओर फिर 12वीं के लिए ओर फिर ग्रेजुएशन के लिए यही कहा गया……. अब ये तो शुरू से ही सुना ओर पढ़ा था की सबसे बलवान तो परमात्मा ही है……….
वो चाहे तो गूंगा बोलने लगे…… लंगड़ा पहाड़ों को पार कर जाए….. ओर अंधा देखने लगे……… तो लगा की क्या वो चाहे तो मैं इन सब परीक्षाओं मे अच्छे अंकों से पास नहीं हो सकता …………
तो शुरू हो गया व्यापार…….. पहले 5वीं मे फिर 10वीं मे ओर फिर 12वीं ओर स्नातक मे हर बार मंदिर मे ओर एक नहीं उन दिनों जहाँ भी जिस भी मंदिर जाना हुआ वहीं……… भगवान को रिश्वत ऑफर कर दी……… 11 रुपये से शुरू हुआ ये नाटक 101 रुपये तक चला………. पर ऑफर की शर्तें अपनी थी……… की भगवान 99% मे 11 / 51/ 101 रुपये 90% से ऊपर पर 99 से कम मे सवा 5/ 25/ 51 रुपये…. 80% से ऊपर मे सवा रुपया/ 11रुपया/ 21रुपया……… ओर उससे कम तो मैं खुद ही ले आऊँगा………….
ओर आश्चर्य की बात ये की उन परीक्षाओं मे जहां पास होने के भी लाले हों वहाँ भी इन कंडिशन्स मे कोई बदलाव नहीं था…….. उच्च सीमा 99% ओर निम्न 80% ही रही……… कभी ये नहीं कहा की कैसे भी पास कर दो………
फिर जब स्नातक भी उत्तीर्ण हो गए तो नौकरी के लिए यही नाटक …………. जिस मंदिर गए वहीं ऑफर दे आए……… मानो भगवान नहीं किसी सरकारी दफ्तर के दलाल से बात चल रही हो……… ओर सबसे बड़ी बात जैसे ही नौकरी भी मिल गयी वो भी एक एक बाद दूसरी भी………. ओर तब लगा की कहीं भगवान 5वीं से लेकर इस नौकरी तक का हिसाब न मांग ले तो एक तरफा युद्ध विराम की घोषणा करते हुए उद्घोष कर दिया की भगवान जैसी कोई चीज़ है ही नहीं……… सब कर्मो का फल है……… अगर हम पास होते रहे ओर नौकरिया मिली तो वो हमारी मेहनत से ………….. और हम तो घोर नास्तिक हैं…………..
अब आज राजकमल भाई का लेख पढ़ कर लगा है की कहीं भगवान भी तो इन सबका हिसाब अगले जनम मे नहीं करेगा………..
ये हर मुसीबत मे पड़े आदमी का हाल है की जब मुसीबत है….. तो हम भगवान के मंदिर मे जाते हैं ओर उसको स्पष्ट कर देते हैं की हमारा ये काम हो जाए तो इतने रुपये या घंटी या सोने / चाँदी का छत्र चडाएंगे…………. मानो परीक्षा हमारी नहीं भगवान की हो……. अगर वो पास हुआ तो हम उसको कुछ भेंट देंगे…… अन्यथा हम उसके अस्तित्व को नकार देंगे………. की मैं तो जानता था की ये खाली पत्थर है….. फिर भी मैंने कहा की एक बार परख कर देख ही लें……….. पर मैं ही सही था।
ओर जब हमारा मनोरथ पूरा हो जाता है तो फिर हम कहते हैं… की ये मेरे कर्मों का मेरी मेहनत का फल है….. क्या ये इंसान का दोगलापन नहीं है….
Read Comments