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काफल पक गए पर मैंने नहीं चखे………….

परिवर्तन की ओर.......
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काफल का मौसम एक बार फिर आ गया … काफल से भरी टोकरियाँ लिए गाँव के लोग बसों से सफर करने वाले मुसाफिरों को काफल बेचने फिर निकल पड़े हैं….. जब भी काफल का जिक्र आता है तो यहाँ गांवो मे सुनाई जाने वाली काफल के संबंध मे एक कथा बरबस ही याद आ जाती है……. काफलों को देख कर याद आई इस कथा को पुन: प्रस्तुत कर रहा हूँ….

काफल पाको मैं नि चाखो…….. इस पंक्ति का अर्थ है……. की काफल (उत्तराखंड में पाया जाने वाला एक फल जो पेट के रोगों के लिए चमत्कारी रूप से लाभ दायक है….) काफल पक गए मैंने नहीं चखे………….

उत्तराखंड में एक लोक कथा प्रचलित है……. जिस का नाम काफल पाको मैं नि चाखो…….. है……….. बड़ी मार्मिक कथा है ये………. कभी बहुत पहले सुनी थी…….. पूरी तो याद नहीं पर जितनी याद है……….. उसको अपने शब्दों में प्रस्तुत कर रहा हूँ……….. इस कथा के अनुसार………..

उत्तराखंड के एक गांव में एक गरीब महिला रहती थी……. जिसकी एक छोटी सी बेटी थी ………….. दोनों एक दुसरे का सहारा थे……… आमदनी के लिए उस महिला के पास कुछ नहीं था …… छोटी सी खेती बाड़ी थी ….. जिस से किसी तरह घर चल पाता था……. पर गर्मियों में जैसे ही काफल पक जाते ……….. (काफल एक छोटा सा लाल रंग का फल है…… जिसमें गुठली पर थोडा सा फल की परत सी चड़ी होती है….) महिला का दिल प्रफुल्लित हो उठता…… वो जंगल से काफल तोड़ कर लाती और उनको बाज़ार में बेच कर आती……..

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एक बार वो जंगल गयी और वहां से एक टोकरी भर कर काफल तोड़ कर लायी…….अभी सुबह का समय था…… फिर उसको जानवरों के लिए चारा लेने जाना था………… तब शाम को वो उन काफलों को बाज़ार में बेचने जाती……. वो टोकरी ले कर आई और अपनी बेटी को बुला कर कहा…………..

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बेटी मैं जंगल से चारा काट कर ला रही हूँ ………. तब तक तू इन काफलों की पहरेदारी करना………. जंगल से आ कर मैं तुझे भी कुछ काफल खाने को दे दूंगी……….. पर तब तक तू इनको खाना मत…………..

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छोटी सी लड़की उन काफलों की पहरेदारी करती रही………… कई बार उन रसीले काफलों को देख कर उसके मन में विचार उठा की कुछ काफल खा ले…….. पर माँ की बात थी की जब तक लौट कर ना आ जाऊं ………. एक भी काफल मत खाना………… लड़की अपनी जिह्वा पर काबू कर बैठे रही…………………

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दिन में जब माँ घर वापस आई तो टोकरी का एक तिहाई भाग कम था………. और लड़की टोकरी के पास बैठे सो रही थी……….. माँ जोकि सुबह से काम पर लगी थी……. और जो बेटी को ये बोल कर गयी थी की वापस आ कर कुछ काफल दूंगी………. और जो हर पल इस बेटी के लिए ही जी रही थी………… वो बेटी की इस ध्रष्टता पर की उसने मन करने के बाद भी काफल खा लिए………. गुस्से से भर गयी……………..

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उसने घास का गट्ठर एक और फैका और सोती हुई लड़की की पीठ पर मुट्ठी से जोरदार प्रहार किया……….. नींद की अवस्था में इंसान की शक्ति कम हो जाती है………. क्योकि उस समय वो पूर्ण अचेतन की अवस्था में होता है……….. माँ के एक ही प्रहार से बेटी ढेर हो गयी………… माँ ने उसे हिलाया डुलाया पर वो मर चुकी थी……………

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माँ उसके पास बैठे बैठे रोती रही……. शाम होते होते काफल की टोकरी पूरी की पूरी भर गयी………. फिर उस महिला को समझ आया की दिन की धुप और गर्मी के कारण काफल मुरझा जाते हैं………………. और शाम को ठंडी हवा लगते ही वो फिर ताजे हो गए………….. अब माँ को अपनी गलती का और अहसास हुआ और अपनी प्यारी पुत्री की मौत के सदमे से तुरंत वहीँ पर मर गयी………………

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कहा जाता है की उस दिन के बाद से एक चिड़िया चैत के महीने में ……… काफल पाको मैं नि चाखो……..कहती है…….. जिसका अर्थ है की काफल पक गए मैंने नहीं चखे…….. और फिर एक दूसरी चदिया .. पुर्रे पुतई पुर्रे पुर…… गाते हुए उडती है……………. जिसका अर्थ है…………. पुरे हैं बेटी पुरे हैं…………………….

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ये कहानी अपने आप में कई संदेशों को समेटे हुए है…………. एक जो हम तुरंत किसी बात के निष्कर्ष पर पहुच जाते हैं…………….. और दूसरा कभी भी सोते हुए इंसान पर हाथ नहीं उठाना चाहिए और बच्चो पर तो बिलकुल नहीं न जाने कब आपका प्रहार उनके प्राणों में हो जाये………………………..

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