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ये झरने नहीं गधेरे हैं…….

परिवर्तन की ओर.......
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बरसात का मौसम……………….. तपती भूमि की प्यास बुझाता है………… बरसात के मौसम में मानो भगवान अपनी असीम ताकत का कुछ नमूना हम इंसानों का दिखा देता है….. वो अहसास करता है की हम विज्ञानं के सहारे भले कहीं पहुच जाये पर उसके पास तक नहीं…..

बरसात के मौसम में चारों और हरियाली सी छा जाती है… हर तरफ हरा भरा नज़ारा दिखने लगता है…. साल भर पानी के बिना तरस रहे लोगों को इतना पानी मिल जाता है की वो पानी मांगने लगते हैं…

इस मौसम में पहाड़ों में कुछ अद्भुद घटनाएँ घटती हैं….. जैसे पहाड़ों पर आपको हर ओर पानी ही पानी दिखाई देगा…. हरे भरे जंगलों में पानी के झरने से दिखाई देने लगते हैं……. कई जगहों पर भूस्खलन होने लगता है……… कहीं कहीं रोड धंस जाती हैं………….. तो कहीं बदल फटने की जैसे घटनाएँ जैसी मैंने बेबस विज्ञान बेहाल इंसान ……….. में एक स्कूल की घटना का वर्णन किया है.. जहाँ बदल फटने से कई मासूम बच्चे मारे गए…

इस बरसात के मौसम में एक बड़ा अद्भुद दृश्य देखा…… कुछ पर्यटक नैनीताल की ओर जा रहे थे……… मार्ग में एक गधेरे में तेज़ बहाव के साथ पानी बह रहा था….. ओर टूरिस्ट उसमे नहा रहे थे ओर फोटो खीचा रहे थे…………. ओर स्थानीय लोग उन्हें घूर घूर कर .देख रहे थे…. उन पर्यटकों को थोडा सा आश्चर्य हुआ की आखिर ये लोग उनको इस तरह क्यों घूर रहे है… फिर उन्होंने सोचा शायद यहाँ के लोग इस झरने में नहाते न हों….

इसलिए इनको कुछ अजीब सा लग रहा हो…………

वास्तव में उनका सोचना सही माना जा सकता है….. क्योकि इन को देखकर आप वास्तव में इनमे झरनों का सौंदर्य महसूस कर सकते हैं…………. पर जिसके पास कुछ नहीं है उसके लिए थोडा काफी है…….. पर जिसके पास विराट है…… उसके लिए ये सब छोटा है…………

वो पर्यटक बंधू ये दुविधा मन में लेकर चले गए की आखिर वो लोग उन्हें घूर क्यों रहे थे……. संभवतः वे पर्यटक प्रथम बार ही नैनीताल आये थे………. या अगर पूर्व में भी आये तो बरसात में ही आये…………….

बरसातों में प्रकृति पहाड़ी गधेरों को झरना बना देती है…. पर जिनको पता है की ये गधेरे है वे कुछ ख़ास प्रभावित नहीं होते……… वास्तव में गधेरे पुराने समय में शौच आदि के लिए प्रयोग किये जाते थे…. इनमे थोडा थोडा पानी रहता था…….. पर बरसातों में जब सारा जंगल पानी से भर जाता है…….. तो ये गधेरे पानी के बहाव के साथ झरने का रूप ले लेते हैं……….

और जब इन झरनों में पर्यटक नहाते हैं ……….. तो स्थानीय लोग थोडा सकुचाते हैं………. पर पहाड़ों की परंपरा रही है……. की पर्यटकों की भावनाओं से खिलवाड़ नहीं किया जा सकता है………. वो लोग शायद ये सोच रहे हों की क्यों नहीं हम लोग भी इन गधेरों को झरना मान कर कुछ समय इस प्रकृति का आनंद लें….

क्योकि अब वो गधेरो की पुरानी उपयोगिता समाप्त हो चुकी है……………..

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