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वो जानलेवा यात्रा……..

परिवर्तन की ओर.......
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नैनीताल से हल्द्वानी तक की वो यात्रा…….जब भी याद करता हूँ तो रूह काँप जाती है….. जो लोग जानते हैं ……. नैनीताल के बारे में वो वहां के रास्तों के बारे में बखूबी जानते होंगे.. और जो नहीं जानते वो इस फोटो को देख कर जान ले ……………
nainital

इस तरह मोड़दार रास्ते हैं…… शनिवार का दिन था…….. हमारे एक मित्र हमारे पास आये और बोले…………. पन्त जी, आज घर को आप हमारे साथ चलना……….. मैंने कहा की ठीक है…… शनिवार को क्योकि हमारे ऑफिस में आधा दिन कार्य होता है…….. तो मैंने अपने मित्र से कहा की ठीक है……. आप 2 बजे आ जाईयेगा….. 2 बजे चल कर ढाई बजे वाली बस पकड़ लेंगे….. पर मित्र बोले नहीं बस में नहीं जाना है……….. मैं गाड़ी लेकर आया हूँ…….
हमारे ये मित्र बहुत सरल स्वाभाव के सीधे साधे व्यक्ति हैं ……… जब इन्होने कहा की मैं गाड़ी लाया हु,,,,,,,,,, तो मैं थोडा चौंका ……….. और पूछा कौनसी ….. मित्र ने कहा स्कूटर….. मैंने कहा कैसे………… कियोकी ये आश्चर्यजनक घटना थी……….. उनके सीधेपन के कारण उनको उनके घर वाले गाड़ी चलने नहीं देते थे……… और मुझे ये गाड़ी चलानी आती नहीं थी…………….

न जाने उन्होंने कब से गाड़ी चलायी नहीं थी…………….. ऊपर से पहाड़ी रास्ता……….. उन्होंने जितने बार भी गाड़ी चलायी हर बार शहर में ही चलाई……. यहाँ नौकरी पे आने से पहले वे बाहर किसी शहर में रहते थे……. तो मैंने कहा दोस्त आप किसी और को ले जाएँ मैं बस से ही आऊंगा………… अब मित्र बोले ……… पन्त जी यदि आप चलते तो मुझे सहारा हो जाता………. एक से भले दो…….. इस से पहले भी मैं इस गाड़ी से आया हूँ…….. पर अकेले था और एक तीक्ष्ण मोड़ पर ये स्कूटर मेरे ऊपर गिर गया… उस दिन कोई और होता तो वो थोडा सा आईडिया दे देता तो मैं नहीं गिरता…………….

घर वाले भी काफी नाराज़ हो रहे थे…….. वो तो स्कूटर लाने ही नहीं दे रहे थे……अब अगर आप चलते तो मैं उनको बता देता की आप साथ हैं तो वो निश्चिंत हो जाते……….. और काफी कुछ कह कर उन्होंने मुझसे हाँ करवा ली…………. मुझे भी लगा की जो आदमी यहाँ इतना घबरा रहा है. वो मोड़ पर अकेले नहीं चल पायेगा………….. और मैं उसके साथ हो गया……… ताकि थोडा सहारा हो जाये………..

अब हम चल पड़े ……….. एक ऐसी यात्रा पर जिसके बारे में सोचते हुए मेरे रोंगटे खड़े हो जाते है……………….. जैसे ही हम नैनीताल से चले ………. मित्र के स्कूटर चलने के ढंग से मैं घबरा गया……….. मैं न चलाना जानते हुए भी उनसे अच्छा चला लेता……….. मैंने उनको कहा……… दोस्त आपके चलाने के तरीके से मुझे घबराहट हो रही है………. वो बोले यहाँ थोडा पब्लिक है तो चलने में दिक्कत हो रही है………. आगे तो सब सुनसान है……. वहां कुछ नहीं होगा…….. आप बिलकुल न घबराएँ…………

अब मैंने सोचा की जब ओखली में सर दे दिया है तो मूसलों से क्या डरना………………
अब आगे की फिर बाद में……………..

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