piyush tiwari
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मेरी फिक्र है उसे
जान तेरी किताब हमने हातो से खोली है
शायद अब निशान तेरे बदन पे पढ रहे होंगे !!
जुल्म काटो ने पैरो पे किया था बहुत
अब तेरे होट उन्हें मरहम दे रहे होंगे !!
दरिया गहरा बहुत है जानता हु मैं
मगर मंदिर मे इब्बादत वो कर रहे होंगे !!
देखे बरसो हो चुके है ऐसा लगता है मुझे
पर मेरी आँख तुझ मैं से निकल के मुझे देख रही होगी !!
वो शाखे तेरी भाहो जैसी थी रे
जिनपे बैठके चिड़िया रेशम का घोसला बून रही होगी !!
तितलियां उढ रही है हवा मैं
शायद वो अपने जुल्फे सवार रही होगी !!
आदते पढ़ चुकी है फूलो से रस निकल के पीने की
मगर तेरी जुबान तो जेहर उगल रही होगी !!
और इंतज़ार शायरी सुनने का किया रात भर
शायद वो अपनी आँख फूलो की पत्तियों से छुपा रही होगी !!
पीयूष तिवाड़ी
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