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आगत का स्वागत

SHABDARCHAN
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”सुख भरे सारे पल हों नये साल में

मुश्किलें सारी हल हों नये साल में ,

जिन सवालों से हम सब परेशान हैं

उन सवालों के हल हों नये साल में। ”

को लेकर एक विशेष उत्साह और उत्सवधर्मिता का वातावरण रहता है। दुनिया भर के ज्योतिषी अपनी-अपनी विधाओं के अनुसार भविष्य की व्याख्या करते हैं। हर कोई अपने लिए शुभ और सुन्दर के घटने की स्वाभाविक आकांक्षा करता है। जीवन में घटित होने वाले वर्षों में कभी-कभी काफी कुछ हमारे मन मुताबिक हो जाता है और कभी अप्रत्याशित ढंग से कुछ बेमन घटनाएँ, हमारे अनुभवों का मुँह कसैला कर जाती हैं। दुनिया भर में नए साल पर नये-नये संकल्प अवतरित होते हैं। कुछ संकल्प हमारी दृढ इच्छा शक्ति के सन्मुख घुटने टेककर तिरोहित हो जाते हैं ,तो कुछ मुफलिस की पैबंद लगी रजाई की तरह अगली बार बदल जाने की उम्मीद में करवटें लेते रहते हैं।

नये का विचार भर हमें रोमांचित करने के लिए पर्याप्त है। जीवन में जब भी कुछ नया होता है ,हम उसके प्रति विशेष रूप से आशान्वित रहते है। भारतीय परम्परा का एक अविभाज्य अंग ‘आगत का स्वागत ‘ भी रहा है। जीवन में घटित होने वाली घटनाओं को हम एक समय चक्र की परिधि में बांधकर रखें, इसका सबसे पहला ख्याल भारत में ही आया था। अतीत के पन्ने पलटकर देखें , तो हमें भारतीय चिंतकों की दूरदर्शिता का पता चलता है। आज दुनिया भर में जो अंग्रेजी कलेण्डर प्रचलन में है, वो हमारे भारतीय पंचाग के अनुसार निर्धारित कलेण्डर से लगभग 57 वर्ष बाद शुरू हुआ। यह वर्ष विक्रमी संवत –2070 -71 है। भारतीय वर्ष का प्रारम्भ 1 अप्रैल से माना जाता है।

भारत विश्व का अकेला ऐसा देश है, जहाँ आज भी हमारी -सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक पृष्ठभूमियों के अनुसार कलेण्डर चलन में रहते हैं। भारत चूँकि कृषि प्रधान देश रहा है अतः यहाँ कृषि को ध्यान में रखते हुए भी कलेण्डर चलन में है ,जिसे हम ‘फसली कलेंडर‘ कहते हैं ,इस वर्ष हमारा ‘फसली कलेण्डर –1421′ है। भारत में चलित अन्य अनेक कैलेण्डरों में ‘बंगला संवत –1420 ‘,’नेपाली संवत-1134′,’इस्लामी हिज़री –1435 -36 ‘,’तथा ‘शालिवाहन शाके –1935′ हैं। भारत में अनेक अन्य मतावलम्बी संक्षिप्त और अपेक्षित आधार पर कुछ और गणनाओं को भी अमल में लाते हैं ;जिनके अनुसार वर्ष 2014 ,को ‘5115वें कलि वर्ष‘ ,’श्री कृष्ण संवत –5250′,’सप्तऋषि संवत-5090′ ,’भगवान बुद्ध संवत-2638′ ,’महावीर संवत-2540′ ,’नानकशाही संवत-546′ ,’खालसा संवत-316′ तथा ‘जय हिन्द संवत –68 ‘ के रूप में भी मनाया जा रहा है।

ये आगत के स्वागत का ही भाव था, जिसके चलते रालेगण सिद्धि से आये एक साधारण से व्यक्ति को देश की राजधानी में समूचे जनमानस ने सर आँखों पर बैठाया। अण्णा नये नहीं थे, उनके तेवर और तरीके ज़रूर नये थे ,जाते वर्ष ने उन्हें एक सर्वाधिक प्रभावी और साधारण व्यक्ति के रूप में दुनिया भर में मान्यता दी।राजनीति के बजबजाते दलदल में तिरस्कार और अपमान के घूँट पीने के बाद भी, जिस नौजवान का हौसला नहीं डिगा ,उस अरविन्द केजरीवाल ने नये सन्दर्भों में सियासत के मायनों का ककहरा रचा। ‘अब ये करके दिखा दो ,तो मान जाएँ ?’ वाले संवादों को चुनौती से हक़ीक़त में बदलकर दिखाने वाले उनके नये ज़ज्बे को जनता ने उत्साह और सत्ताधारियों ने ठंडी आहें भरते हुए स्वीकारा। राजनीति को भाई -भतीजावाद,लूट खसोट ,लोभ ,घोटालों ,प्रभाव और दबाव से मुक्त करते हुए एक ऐसे सकारात्मक धरातल की तरफ जाने में मदद मिली ,जिसकी मंज़िल बहुत दूर तक जाती है। सियासत से घिन करने वाला सर्वाधिक युवा भारत अब उसपर खुल कर बोल रहा है, उसमे भागीदारी चाहता है। बीते साल हुई इस नई आगत का नये साल में और भी ज़ोरों से स्वागत होगा इसमें कोई संदेह नहीं है।

भारत के शीर्ष वैज्ञानिक प्रोफ़ेसर सी.एन.आर.राव जैसे भारत रत्न देश को एक नए वैज्ञानिक क्षितिज की ओर ले जायेंगे। नये साल में ऐसे कुछ ‘और’ नये की चाह होगी। देश के पाँच दर्जन विश्वविद्यालय उन्हें मानद उपाधि से नवाज़ चुके हैं ,कुछ और भी भारत के रत्न इस दिशा में आगे बढ़ सकें ,सबकी ऐसी कामना स्वाभाविक ही है। विज्ञान की चादर को अपने सपनों की परवाज़ बनाने वाले नील आर्मस्ट्रांग और एडविन एल्ड्रिन के भारतीय हुनरवंशज के.राधाकृष्णन धरती के निकटतम पडोसी मंगल ग्रह पर तिरंगा फहराने का हौसला कर पाये ,इस तरह के हौसलों की आमद और तेज़ हो, नया साल इसका इंतज़ार करेगा।

बचपन भविष्य की आधारशिला है। छह साल के कौटिल्य का आई क्यू लेबल 130 अंक है ,आने वाले साल में हर घर, हर गली में ऐसे शिशुओं की किलकारियां गूंजे।भारत अत्यंत मेधावी और प्रतिभासम्पन्न बच्चों का क्रीड़ास्थल बन जाये, तभी प्रत्येक दंपत्ति अपनी सर्वश्रेष्ठ दे पाने के भाव से तृप्त हो सकेंगे।

खेल का जुनून एक धमक बनकर उभरे। उपलब्धियों का सूर्य क्रिकेट के जगत में शिखर धवन बनकर चमके, तो अग्रज सचिन का संन्यास भी एक शुभकामना सरीखा होगा। डब्ल्यू टेस्ट का सबसे तेज़ शतक ज़माने वाले विराट कोहली अगर देश के लिए अपार हर्ष का कारण बनते हैं ,तो ऐसी अन्य अनेक आगतों का नये साल में दिल से स्वागत है।

किसी आवारा रेत के झौंकों की मानिंद अज्ञात के गर्भ में समाता समय यदि अपने साथ -साथ आशाओं को निराशाओं में बदलने वाले तथाकथित बाबाओं को भी अपने साथ ले जा सके, तो आने वाली पीढ़ियों पर उपकार होगा।पूजा -प्रार्थनाएँ मंदिरों और देवालयों में जँचती हैं , जेल की काल कोठरियों में नहीं।

यदि आप अच्छा नहीं कर सकते, तो उस रूप में इतना बुरा भी मत करों कि कुछ खिलने वाली कलियाँ बागबाँ से ही खौफ़ खाने लगें। स्त्री यदि समग्र अस्तित्व का आधा हिस्सा है, तो इस हिस्से को कुरूप करने का हक़ किसी को भी नहीं, भले ही उसका नाम तरुण तेजपाल ही क्यूँ ना हो ! भाई भतीजावाद यदि सत्ता की चार दीवारी तक पहुँचने का ‘खुल जा सिम सिम है‘ तो ‘बहन-भांजावाद’ कईं बार डूबने का सबब भी।पवन कुमार बंसल जैसे फ़ज़ीहत शुदा नेताओं को आते वर्ष में ये सत्य स्मरण रखना चाहिए कि कंस के समय से ही भारत में बुरे मामाओं के डूबने की अविरल प्रथा है। अब जब ये प्रथा ही है, तो आते साल में भी चलती रहे, किसी को क्या आपत्ति है ?

तिकड़में और चालाकियाँ आपको फ़ोर्ब्स के अमीरज़ादों की सूची तक तो पहुंचा सकती है लेकिन अर्श से फर्श तक लाने में भी कोई कमी नहीं रखती। ऑनलाइन ट्रेडिंग के बादशाह कहलाने वाले वायदा कारोबारी जिग्नेश शाह निवेशकों को धता बताकर हर्षद मेहता के बड़े भाई भले ही बन गए हों। घोटालों के सुनामी में उनकी समृद्धि ताश के पत्तों का महल ही साबित होगी। यदि ये समृद्धि है, तो घातक है; जाते हुए वर्ष अपने सामान के साथ इसे भी पैक करके ले जाओ।

‘मी लॉर्ड‘ एक आदर सूचक शब्द है, जो लम्बे समय से न्यायिक प्रक्रिया का प्रतीक है। अब जिसे ‘मी लार्ड‘ कहो वो वाकई में ‘मी लार्ड‘ बनने पर आमादा हो जाये, तो हालात बदतर हो जाते हैं। अपने अधीनस्थ परिवार के किसी सदस्य से कम नहीं यदि उनके साथ ही कदाचार की बात हो तो अशुभ संकेत है। ए. के. गाँगुली को किसी निर्णय का अभिशाप खोज रहा है ,ऐसे भाग्य विधाताओं से विधाता आते साल में रक्षा करें।

25 हज़ार करोड़ एक बड़ी संख्या है, यदि यह धन के रूप में हो तो अपने अलग मायने रखती है ! यह रकम एक बहुत बड़े समुदाय के लिए ‘सहारा‘ बन सकती है।सहारा ग्रुप के मुखिया सुब्रत रॉय सर्वोच्च न्यायालय और सेबी के आदेशों के बावज़ूद कोई कार्यवाही नहीं कर पाये हैं। यदि यही सहारा है, तो करोड़ों लोग बेसहारा ही ठीक हैं।इस बाबत एक शेर बरबस ही याद आ रहा है-

‘बुरा करे जो सहारों कि तू तलाश करे ,

सुतून बन कि सहारें तुझे तलाश करें। ‘

ताक़तवर होना अच्छी बात है आफतवर होना नहीं। अमेरिका यदि कुछ मामलों में खुद को बड़ा मानता है तो मानता रहे इसमें किसी को क्या आपत्ति है ,परन्तु औरों को आप दीन-हीन समझें ,ये कहा की तुक है ? स्वाभिमान और अपने नागरिकों के सम्मान की रक्षा किसी भी संप्रभु राष्ट्र के लिए अनिवार्य तत्त्व है। अब इसके लिए राजनयिक देवयानी के अपमान के बाद आप हरकत में आये तो क्या आये ? दुनिया बदल रही है। भारत का प्रभाव समूचे विश्व में बढ़ रहा है। कुछ नेता जो पुराने दिमाग के हैं, उन्हें दिमाग को ताज़ा करना पड़ेगा। वर्ना जनता अपने लिए नये साल में नये नेता तैयार करने को आमादा है ही !

‘बिग बॉस‘ के पीछे तर्क है कि ये मनोरंजक प्रोग्राम है। इसमें मनोरंजन तो कहीं नहीं दीखता हाँ ‘मनो‘ में ‘रंज‘ ज़रूर पनप रहा है। ये अतिरंजक होकर बिगबॉस से नई पीढ़ियों के ‘बिग लोस‘ तक पहुँच जाये; इससे पहले ही संभलना पड़ेगा। क्या कोई बता सकता है कि वे कौन लोग हैं जो इस तरह के प्रोग्राम चलाने की ज़िद करते हों ? अब कुछ तो नया सोचो। कुछ तो नया करो ,नया साल है भाई !

संस्कारों कि दुहाई देने वाले लोगों को अपने निर्णयों और सोच के दायरों को पुनर्समीक्षित करना होगा। हर बस स्टॉप पर और पब्लिक टॉयलेट पर ‘चले कंडोम के साथ ‘का प्रचार करके आप क्या सन्देश देना चाहते हैं ? चरित्र प्रचार से नहीं मूल्यों के व्यवहार में अनुकरण से आता है। प्रचार करना है तो कीजिये ‘चलें सदाचार और सदभाव के साथ ‘। समाज में धन और ग्लैमर के अंधाधुंध अनुकरण पर लगाम से जीवन में शांति और सौहार्द का सूर्योदय होगा।बैर और हिंसा के मरुस्थल में प्रेम सहयोग और अपनत्व के बीज अंकुरित होगे। तभी हम सबके लिए सच्चे अर्थों में हो सकेगा ‘नव वर्ष मंगलमय’ !

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