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कुदरती आफ़तों के मेज़बान हम

SHABDARCHAN
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भूकम्प त्रासदी
प्राकृतिक आपदाएँ कभी भी बताकर नहीं आतीं। न ही प्रकृति से परे कुछ है ? समूचा मानवीय विज्ञान कुदरत के एक हल्के से धक्के पर स्तब्ध हो खड़ा देखने को विवश रहता है। आपदा के उपरान्त ज़िम्मेदारियाँ तय की जाती हैं। पदों पर आसीन व्यक्ति कुछ योजनाओं और नीतियों पर बैठकें आयोजित करते हैं। काफी कुछ किये जाने के मंतव्य सुनिश्चित किये जाते हैं। सिर्फ नहीं किया जाता तो यह की हम प्रकृति और अपनी पृथ्वी के साथ अपने रिश्तों के तानों-बानों को गहनता से बुनने की सोचें। पूरी दुनिया कुदरती कहर के सामने बौनी साबित होती है और होती भी रहेगी। इन आपदाओं से पूर्णरूपेण उबरा नहीं जा सकता। हाँ इन आपदाओं के प्रभाव और परिणामों में कमी अवश्य लायी जा सकती है।
प्रकृति की वीणा पर बजने वाले स्वर जब अकड़ में डूबी इंसानी ज़मात को सुनाई देने बंद हो जाते हैं। तब प्रकृति के डमरू का आर्तनाद अपने प्रचंड वेग में नर्तन को विवश होता है। जब हम क़ुदरत की तरफ से अपना मुँह मोड़ लेते हैं तब प्रकृति भी हमारी परवाह कम कर देती है। प्रकृति के प्रत्येक अंश से हमने अपना मुँह मोड़ लिया। धरती का वर्तुल छोटा अनुभव होने लगा तो इंसानी अंहकार ने आसमानों में बस्तियां बनाने की योजनाएं शुरू कर दी। ज़मीनें उजाड़ दी, वातायनों को अवरुद्ध कर गड्ढों के अम्बार लगा दिए, नदियों के साथ दुर्व्यवहार किया,उनके प्रवाहों को परिवर्तित कर दिया, पर्वतों के सीने चीरकर अपने लिए ऐशगाहों के निर्माण कर लिए, जंगल उजाड़ दिए,पहले वृक्ष काटकर गगनचुम्बी इमारतों की नींव रखी, बाद में पौधारोपण अभियान चलाकर अपनी पिक्स फेसबुक पर अपलोड करके फूले नहीं समाये,चिड़ियों को उड़ा दिया, गायों को कूड़ा कचरा खाने को विवश किया।जो पशुओं को पालते हैं उन्हें पुराने और पिछड़े मानकर नाक भौं सिकौड़ी, सुबह जल्दी घूमने को देहातीपन मान लिया गया। नतीजा हमारे सामने है !
समूची धरती और उसके प्राकृतिक आभूषण कहीं दूर खड़े होकर मानों हमें निहार रहे हैं।अगर पूरी प्रकृति बोल सकती होती तो रोज़ अपनी दुहाई और गुहारों से आपको आपका अतीत स्मरण करा रही होती। ये सब पशु-पक्षी आपको याद दिलाते कि हमारे पूर्वज किस तरह इस सारे अस्तित्व के सहभागी थे। ये समूची प्रकृति हमसे अतिशय गहरे सन्दर्भों में संयुक्त थी। इसका मतलब यह नहीं है कि पहले कोई आपदाएं नहीं आती थी। आपदाएं तब भी आती थी लेकिन संतोष और शांति के शिखर पर विराजमान मानवीय चित्त इसे नियति का नियम मानकर मुक्त भाव से विचरता था।
जापान पूरी दुनिया में सर्वाधिक भूकंपों से जूझने वाला देश है। वहां सबसे ज़्यादा ,सबसे तीव्र गति के और लम्बी अवधि के भूकम्प आते रहते हैं। वहां की एक अत्यंत साधारण सी चिड़िया है जो सर्वत्र दिखाई देती रहती है। जैसे ही भूकम्प आने वाले होते हैं इन चिड़ियों के स्वभाव में अचानक परिवर्तन आ जाता है। ये ज़्यादा चहचहाने लगती हैं। इनके विचित्र और बदले हुए व्यवहार से सतर्क होकर लोग अपने घरों से बाहर निकल जाते हैं। ऐसी अनेक घटनाएँ विशेषज्ञों ने एकत्रित की हैं जिनमें इन छोटी सी चिड़ियों ने बड़ी मददगार होने की भूमिका अदा की है। इनकी उपयोगिता को देखते हुए वहां वृक्षों के कटान को प्रतिंबंधित कर दिया गया है। आखिर वृक्ष ही तो इन पंछियों के वास्तविक आशियाने हैं। अतीत साक्षी है कि इस छोटे से प्रयोग से काफी जान-माल की हिफाज़त संभव हो सकी है।यही नहीं काफी नागरिक इन चिड़ियों को अपने घरों में पालते भी हैं। तोतों की एक विशेष प्रजाति प्राकृतिक आपदाओं को होने से पूर्व ही परखने और संकेत कर देने के लिए अपनी विशेष प्रतिभिज्ञा रखती है।
भारत के ग्रामीण परिवेश में प्रत्येक घर में गाय रखने की एक सुदीर्घ परम्परा रही है। गायों को भी प्रकृति की ओर से एक विशेष योग्यता अर्जित है, वे खतरों को भाँपकर अपने स्वभाव में परिवर्तन ले आती हैं। भूकम्प से पूर्व उनके संकेत न समझने पर गायें अपने रस्से तक तुड़ा देती है और बाहर भाग जाती हैं। गौ-मूत्र से अनेक असाध्य रोगों में फायदे मिलने के असंख्य उदाहरण भरे पड़े हैं। किडनी से सम्बंधित रोगों में गौ-मूत्र रामबाण की तरह काम करता है ऐसा आयुर्वेद में उल्लेखित है। भूकम्प और महामारी के आगमन से पूर्व गायों के स्वभाव में क्रान्तिकारी परिवर्तनों पर वैज्ञानिक शोध चल रहे हैं। कहते हैं कुत्ते में यमराज को देखने की क्षमता है। ऐसा भी कहा जाता है कि कुत्ते तभी रोते हैं जब उन्हें अपने आस -पास किसी की मृत्यु का अहसास होने लगता है। यही वज़ह है कि कुत्तों के रुदन को अपशकुन माना जाता रहा है।लेकिन ये कुदरती अलार्म भी तो हैं, जो हमें आने वाली मनहूसियत से आगाह करते हैं।

आज भी सूंघने के लिए कुत्ते का ही इस्तेमाल किया जाता है। अपनी वैज्ञानिक उपलब्धियों पर फूल कर कुप्पा होने वाले पश्चिमी जगत के प्रायः समस्त देश विभिन्न उद्देश्यों के लिए सूंघने में आज भी कुत्तों का ही प्रयोग कर रहे हैं। एक भी मशीन ऐसी नहीं बनायीं जा सकी जो इस कार्य को अंजाम दे सके। चलिए ये सब छोड़िये चीटीं की तो हमारे आधुनिक जीवन में कोई बिसात नहीं है लेकिन आज भी बारिश के आने का पता उसे ही सबसे पहले चलता है। हम आपदाएं आने के बाद प्रबंधन की सोचते हैं जबकि चीटियाँ प्रबंधन पहले करती हैं आपदा बाद में आती है।गिलहरी जैसे जीव को हमने कभी गंभीरता से नहीं लिया लेकिन जीव विज्ञानियों के शोध चौंकाने वाले हैं गिलहरी जिन परिवारों में रहती हैं यदि वहां किसी व्यक्ति को कैंसर है तो वे खाना एकदम बंद कर देती हैं। यही नहीं उनके परिवार वहां से पलायन भी करने लगते हैं। सूत्र कहते हैं कि मानसिक रोगियों और पागलों के हाथ से बकरियां पत्तियाँ ग्रहण नहीं करतीं। आयुर्वेदिक दवाओं में प्रायः इन्ही रोगों के लिए बकरियों की मिंगनों को औषधि के रूप में दिए जाने की लम्बी परंपरा आज भी कायम है। कौवों को अतिथि आगमन का संकेतक माना गया है। यही नहीं हमारे धर्म शास्त्रों में अनेक जगह यह वर्णन आया है कि कौवे को ग्रास डालने वाला व्यक्ति अकाल मृत्यु से रक्षित होता है।
रावण जैसे महाशक्तिशाली और चक्रवर्ती सम्राट को श्री राम ने युद्ध में जब पराजित किया तो उनके साथ कोई बड़ी सेना या लाव -लश्कर नहीं था इन्ही निरीह समझे जाने वाले प्राणियों के बलबूते उन्होंने अपने सत्य के संधान को सुनिश्चित किया। इसका एक ही उद्देश्य था मानव जीवन सभी के अस्तित्व के साथ है। कुछ भी अकेले और स्वार्थी बनकर सिद्ध नहीं किया जा सकता। इस सबसे मेरा तात्पर्य ये नहीं है की आप सब कल से अपने -अपने घरों में पशु -पक्षियों को रखने लगे ये तो आप कर भी नहीं पायेगे। हां एक काम आप ज़रूर कर सकते हैं इन सबके प्रति मित्रतापूर्ण और सहयोगी रवैय्या अवश्य अपना सकते हैं। इनके होने को स्वीकारें इनकी उपयोगिता को नमन करें। न ये हमारे बिना पूरे हैं और न ही हम इनके बिना ;और फिर कौन जाने कभी ऐसी भी घड़ियाँ आ जाएँ जब ये बेजुबान आपके दोषों और गुनाहों के लिए स्वयं के प्राणों का उत्सर्ग कर दें। जटायु ने ही सबसे पहले ये खबर दी थी कि सीता कहाँ हैं ,यह स्मरण रखना चाहिए। पश्चिमी देशों ने इस तरह के नुकसानों को समझ लिया है अब वे प्रकृति और उससे जुड़े समस्त तत्वों के प्रति जवाबदेह हो रहे हैं। कहीं कानून बनाकर तो कहीं नियमों पर अमल करके व्यक्ति और प्रकृति के मध्य एक सेतु निर्मित किया जा रहा है ;जो अत्यंत सुखद संकेत है। पूरी प्रकृति के साथ रहिये आप पूर्ण रहेंगे। आपदाएँ तो आती हैं और आती रहेंगी हाँ आपके आत्मविश्वास और संतोष में एक अभूतपूर्व सौंदर्य का उदय अवश्य होगा, जो कृत्रिम और आपा-धापी पूर्ण जीवन शैली में कदापि नहीं हो सकता !

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