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“आलिंगन की चाह”

SUBODHA
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जब परमात्मा अपने अकेलेपन से ऊब गया,तब उसने सृष्टि रचना प्रारम्भ की ,आज जो कुछ दृष्टिगोचर हो रहा है यह सब उसी का पसारा है ,पर यह आत्मा जब से परमात्मा से अलग हो गयी ,तब से उसी से पुनर्मिलन के लिए बेचैन है ,क्यूंकि सब अपने स्रोत को ही खोजते हैं ,और उसी में मिलकर पूर्ण हो पाते हैं ,चाहे नदिया की धार -समुद्र से मिलकर अथवा भटका जीव अपनों से मिलकर , और मात्र विद्युत तथा जल की धारा ही नहीं ,नियति का प्रत्येक कण – लीस्ट रेजिस्टेंस के पथ को ही फॉलो करना करना चाहता है ,अर्थात कम वाधाओं में पूर्ण लक्ष्य की प्राप्ति ,पर यह अक्सर होता नहीं -|| कोटि-कोटि मुनि जतन कराहीं,अंत राम कहि आवत नाही|| ,जब अनेक जन्म की विगड़ी हुयी सुधरती है ,तब पूर्णता प्राप्त हो पाती है,अन्यथा –
वहुत वर्षो से अथवा हज़ारो वर्षो से यह जीव -जन्म के उपरान्त माँ के स्नेह आँचल से भाव विभोर होता रहता, थोड़ा और बड़ा हुआ तो पिता -परिवार ,बाबा -नाना ,आपस में सब एक -दुसरे से बंधन युक्त हैं,थोड़े और बड़े हुए -भाई -बहिन के स्नेह पाश से बधें- वो छूं -छूं बिलइयां का खेल ,वो एक दुसरे को सताना,मारना ,गले लग जाना ,सब भूल जाना फिर मारना ,शायद वह मार (झगड़ा ) नहीं,प्रेम की स्वीकारोक्ति है,तुम घोड़ा बनो ,हम सवारी करें ,जो सबसे बड़ा रहा -वह जीवन भर घोड़ा ही बना रहा ,पर यह हर घर में नहीं और आज के बदलते परिवेश में बिलकुल भी नहीं,जीव अपने निर्माता से ही दूर है ,न वो स्नेह आलिंगन ,न ही वह घुड़सवारी ,नए -नए पालने और तकनीक इज़ाद हो गए,बच्चे गलहार नहीं बन पाते ,भगवान ही नहीं ,हर प्राणी भाव का भूखा है ,इंसान ही नहीं ,बिल्ली ,कुत्ता ,बैल भी मालिक से स्नेह की आकांक्षा रखते हुए,वात्सल्यपूर्ण भोजन के लिए प्रतीक्षित रहते हैं |
बच्चे और कोई नहीं ,हमारे अपने हैं जिन्हे हमसे सेवा लेनी है ,वह अवश्य लेकर रहेंगे -चाहे वह बाबा बनकर लें अथवा बच्चा बनकर ,अतः सजग रहकर जीवन जीना ही मूल लक्ष्य हो -यदि सेवा में चूक हो गयी ,तो भगवान का तो पता नहीं ,पर हमारी भावी पीढ़ी कुंठित हो जाएगी ,हमारा भविष्य अंधकारमय हो जाएगा |
हे प्यारे जीव ,तू कब तक संसारी जीवों से आलिंगन की चाह लिए भटकता रहेगा ,कब तक -माता -पिता ,पत्नी -प्रेयसी ,पुत्र -पुत्री ,पौत्र -पौत्री आदि से मधुर स्नेहालिंगन की कामना से जकड़ा रहेगा ,तुझे पुकार रहा है ,वह तेरा मूल स्रोत ,वह सबका पिता -सबकी माँ,सबसे अच्छा पुत्र ,सबसे अच्छी पुत्री ,वह हर एक रूप में तेरे सामने आने को तैयार है -पर एक बहुत कठिन शर्त है – सबको भूलकर उसकी ओर चलना होगा ,सबको झूठा समझकर ,उस परमसत्य को खोजना होगा ,पर ,हाँ मेरे प्यारे -यदि वह मिल गया ,तो जन्म -जन्म की भटकन और तड़पन मिट जाएगी, सारी व्यथा मिट जाएगी ,भवभीति और भयभीति सब विलीन हो जाएगा ,अतः उस ओर मुड़ो |

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