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” air conditioner “

SUBODHA
SUBODHA
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वैसे मैं नित्य सुबह ही कुछ लिख देता हूँ,अपने ब्लॉग में. जिस दिन कुछ न लिख सकूँ -वह दिन अधूरा लगता. हम तो डायरी जैसे लिखते हैं,पहले भी मैं कभी -कभी अपनी डायरी में कुछ लिख दिया करता था.पर यहाँ तो कितनी अच्छी सुबिधा -न पेन चाहिए ,न पन्ने.सब सुरक्षित हो जाता.मानवीय मन में न जाने कितने विचार उठते,सब एक -एक कर के सुरक्षित हो रहे हैं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की दुनियां में.१० व्यूअर भी मिल गए,तो सोने पे सुहागा. लोग कहते किसी काम से पांच सहमत हो जाये,तो भी अच्छा,पर यहाँ तो १० से अधिक अभी तक हर ब्लॉग में मिल ही गए हैं.धन्यवाद,साधुवाद और अनेक हार्दिक शुभकामनायें हमारे रीडर्स,तुम महान हो जो मुझे पढ़ते.
अब बात करते हैं -ए.सी.की ,हिन्दी में जिसे वातानुकिलित यन्त्र कहते हैं.ऐसी गर्मी में उसकी बहुत जरूरत है,यदि ए.सी.नहीं तो कूलर तो होना ही चाहिए,नहीं तो फैन. आख़िरी ऑप्शन एक ही रहता -गॉव का देशी हाथ से झलने वाला पंखा,तब तक झलते रहो,जब तक नींद न आ जाये.
हाथ वाले पंखे की बात की,तो मेरी दादी याद आ गयी.मैं बचपन में जब पढता था,दादी पास में लेटकर पंखा झलती रहती थीं,जब उन्हें नींद आ जाती,तो पंखा मेरे ऊपर गिरता. फिर अकस्मात् नींद खुली,पुनः पंखा झलना प्रारम्भ.ऐसा दो -तीन बार होता ,फिर मैं रोक देता,पंखा बंद कर दो तुम. पर दादी कहाँ मानने वाली.बाद में कहती अब तुम भी सो जाओ,बहुत पढ़ चुके.सारी पढाई आज ही करोगे क्या.
ACTUALLY कल जब मैं ड्यूटी से घर जा रहा था,तो बाहर एक बड़ी गाड़ी खड़ी थी,उसके पास से गुजरा,तो मैं एकदम झुलस सा गया.ऐसा अक्सर हो जाता है ,जैसे किसी इंजन के एग्जॉस्ट के पास से निकलो तब होता है,पर वह कम मात्रा में रहता ,निर्भर करता इंजन के साइज के ऊपर. गाड़ी के पास से निकलने पर मुझे अहसास हुआ,एक गाड़ी के अंदर कूल करने के लिए,बाहर और गाड़ी के पास कितनी गर्मी रहती.
अभी कुछ माह पहले,हैदराबाद में एक हादसा हुआ था ,जिसमे एक वॉल्वो बस में आग लग गयी,सब यात्री जलकर ख़त्म हो गए.
“पर चारो तरफ जलती आग के बीच बैठने वाला जीव कब तक ठंडाता रहेगा”,यह बहुत बड़ा प्रशन है हमारे लिए,और हमारी अगली पीढ़ियों के लिए.
वक्त की मांग यही है ,हम आर्टिफिशिअल ए.सी. को हटा कर,नेचुरल ए.सी. की ओर बढ़ें…………………………………..नहीं तो, आज नहीं तो कल, सभी जलेंगे.

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