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“BLACK MONEY,WHITE MONEY AND GOLDEN MONEY”

SUBODHA
SUBODHA
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पैसा ,पैसा ,पैसा और केवल पैसा ही सत्य नहीं है.वैसे तो हमारा दर्शन कहता है ,”सम्पूर्ण जगत ही मिथ्या है “. पर जब पेट में आग लगी हो ,तब दर्शन की नहीं ,भोजन की ही आवश्यकता होती है. पहले हम काम के बदले अनाज या अपनी मज़दूरी करने वाले का भी कुछ काम कर देते थे.पर देश की जमींदारी प्रथा में ,मज़दूर वर्ग पर बहुत अत्याचार किया गया.उनकी मज़दूरी की वाज़िब कीमत भी नहीं दी गयी. कभी -कभी तो मज़दूरी भी नहीं दी जाती.गांव का जमीदार वर्ग ,भले ही वह अपने को बहुतों का भाग्य -विधाता मानता हो ,लेकिन उसके घरों में भी फाके पड़े हुए हैं.यह पृथिवी,वैसे ही अन्न उपजती है ,जैसे जिसके कर्म.
मैंने एक बार खेत में काम करते हुए अपने बाबा जी से कहा ,”यार,अपने पास कम खेत हैं”,तो बाबा जी बोले -इतने तो मैं ,सही से कर नहीं पाता.ज्यादा होते तो कैसे संभालता. गांव में जिनके पास ५० बीघे खेत हैं,वैशाख में ५० कुंतल गेहूं नहीं होते उनके यहाँ. वह हमेशा पहले पैसो का वन्दोवस्त कर लेते थे,इसके बाद ही किसी को काम पर बुलाने के लिए जाते और जैसे ही शाम को मज़दूर ने काम करना बंद किया,हाथ में पैसे दे देते थे.
धन तो धन है,काला ,सफेद या सुनहरा हमारे कर्मो से बनता है.किसी दूसरे का हिस्सा या अन्याय का पैसा ,अपने खाते में जमा कर लेना ,शायद काला धन हो जाता है.
हमेशा ,ईमानदारी से कमाओ ,ऐसी कमाई सफेद धन की श्रेणी में आती है.
अपनी मेहनत की कमाई भी,किसी अच्छे परोपकार के काम में लगा दो,तो सफेद धन भी ,सुनहरा धन बन जाएगा.ऐसा मेरा अपना विचार है.
संस्कृत का एक श्लोक –
अन्याये उपार्जते वित्तम,दशम वर्षाणि तिष्ठति,
प्राप्तये तु एकादशे,समूलम तद विनश्यति..
भावार्थ – अन्याय से पैदा किया हुआ धन,दस वर्ष तक ठहरता है और ११ वें वर्ष में मूलधन सहित नष्ट हो जाता है.
मेरी ऐसी सोच है -देश के काले धन को भी देश में ही रखना चाहिए.एक ऐसी बैंक भी हो,जो सब कुछ सीक्रेट रखे. स्विटजरलैंड में हो सकती है ,तो यहाँ क्यों नहीं.
हो सकता है समय के साथ काला धन भी सुनहरा बन जाये,देश के काम आये.जरूरतमंद लोग , कम ब्याजदर से वहां से लोन ले सकें और अपना जीवन बदल सकें.
किसी समस्या को लेकर हाय -हाय चिल्लाना ,समाधान नहीं है.अतिशीघ्र कुछ नए कदम उठाने से ही कुछ राहत और अच्छे परिणाम सामने आएंगे.
हे लक्ष्मी,तुम हमसे थोड़ा दूर ही रहना.

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