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जब जब इस देश पर विदेशी आक्रमण हुए,उन्होंने अपनी भाषा को भी हमारे ऊपर थोपा | हम “विद्यासमस्ता तव देवि भेदा” -सारी विद्याएँ माँ का ही स्वरुप हैं -के सिद्धांत से सब सीखते रहे | सब कुछ हमने सहज़ता से आत्मसात कर लिया | और जब जहाँ जिसकी जरूरत पडी ,वही बोल दिया |
पर यह सब केवल बोलने तक ही सीमित नहीं रहा | विदेशी भाषा ,रईस और योग्य इंसान की भाषा समझी जाने लगी ,और तभी समस्या उत्पन्न हुयी | आजकल हमारे सिस्टम में अंग्रेज़ी बहुत अंदर तक घुस चुकी है और जब इंसान की योग्यता का आंकलन biscuit को -बिस्किट या बिस्कुट कहने से हो ,तो समझो हम मूर्ख बनने की ओर सतत अग्रसर हैं |
ऐसा कदापि नहीं, मात्र अंग्रेज़ी जानने और बोलने वाला ही काबिल और सफल हो सकता है ,बहुत से ऐसे लोग जिन्हे अंग्रेज़ी की घुट्टी पिलाई गयी ,बहुत से इंग्लिश शब्दों की सही स्पेलिंग नहीं जानते और अनेक हिन्दी भाषी व्यक्ति ,इंग्लिश भाषा के भी बहुत अच्छे राइटर और पोएट बने |
इतना सब परिश्रम और पढ़ने के बाद , मुझे भी अफ़सोस है ,यदि मैं बचपन से इंग्लिश मीडियम स्कूल से पढता,तो शायद आज I.I.T. क्वालिफाइड कर के एक दूसरा नारायण मूर्ति होता | पर ऐसा न होने का एक मात्र कारण अंग्रेज़ी | एक वर्ष कानपुर में कोचिंग के बावजूद भी ,असफलता | शायद इसी ट्रांसफॉर्मेशन की वजह से है | १२ वीं तक मनोहर रे और कुमार मित्तल को हिन्दी में पढ़ने के बाद जब सब इंग्लिश में होता है,तब पुस्तकें भी बोझ लगने लगती हैं | नहीं तो भाजपा की सरकार में ,एक गांव की बैकग्राउंड से ,१० वीं -६९% और १२ वीं -७४ % लेकर मुंबई एयरपोर्ट पर होने की बजाय, आज मैं किसी विभाग का थिंक टैंक होता | खैर यह सब बेकार की बातें हैं,जो होना रहता है ,वही होता है |
आजकल U.P.S.C. EXAM को लेकर देश में अनशन चल रहा है, देखते हैं आगे क्या होता है.
पर मेरा मानना है,इंग्लिश को अलग से परीक्षा का विषय न रखा जाये | मैंने १२ वीं मेंU.P.S.C. के NATIONAL DE FENCE ACADEMY के लिए भी एग्जाम दिया | उसमे भी हिन्दी माध्यम के छात्रों की यही शिकायत रहती है,मैथ ,साइंस तो ठीक थी ,पर इंग्लिश बहुत कठिन थी |
इस इंग्लिश का प्रतियोगी परीक्षाओं में बौद्धिक परीक्षण,अब समाप्त करने का और मैथ, साइंस को इंग्लिश में पढ़ने का वक्त आ गया है |
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