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“अनुभवजन्य सामाजिक नीति”……………१.

SUBODHA
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१.)स्वच्छ भारत अभियान के लिए,२ घंटे और २०० मीटर,की योजना बनाई जाये -बेरोजगार स्वैच्छिक युवा या अन्य नागरिक को २ घंटे के लिए कार्य दिया जाये,उस कार्य का उसे वेतन भी मिले ,न्यूनतम २५ रुपये /घंटा ,उस समय में कम से कम २०० मीटर लंबा और ५ मीटर चौड़ा एरिया साफ़ किया जाये |
इससे बेरोजगारी भी कम होगी,लोग ८ घंटे के बजाय ,२ घंटे कार्य करके अपने अन्य कार्य कर सकेंगे,नवयुवकों को आत्मनिर्भर बनने के नए अवसर मिलेंगे |उन्हें यह कार्य करने का एक प्रमाण पत्र भी दिया जाये |
२.) आज हमारे समाज में जगह -जगह पान टपरी वालों की संख्या बढ़ती जा रही,जो की किसी भी देश के भविष्य के लिए बहुत घातक सिद्ध होगी,यह बेरोजगारी का दुष्परिणाम और इससे सिगरेट,पान -मसाला ,तम्बाकू पीने -खाने वालों की सतत वृद्धि हो रही है |
शायद इस देश में पान टपरी खोल लेना,सबसे आसान और कम पैसों से किया जाने वाला व्यवसाय है | इसको तुरंत रोकना,देश के नागरिकों को उनके जीवन के मुख्य उद्देश्य -सदाचार और सेवा से आत्मउत्थान -के प्रति जागरूक करना,हम सबका एक लक्ष्य होना चाहिए |
३.) दुराचार बहुत घातक है और दुर्जन,काले सर्प से भी अधिक जहरीला | आचार्य चाणक्य के एक मंत्र का अंश है -सर्प के तो फन में ही जहर होता है ,पर दुर्जन के रोम -रोम में जहर होता है |
आज हमारे समाज में बहुत भयावह स्थिति है,हंसकर बोलने वाले साथी भी आप को ,मौका पाते ही , मौत के मुंह में धकेल देंगे| अतः हर कदम बहुत सोच विचार कर चलना ही बुद्धिमानी है | शायद ऐसे अनुभवों से ही,कबीर और रहीम ने लिखा –
कबिरा खड़ा बाज़ार में मागत सबसे खैर|
न काहू से दोस्ती ,न काहू से बैर ||
रहिमन ओछे नरन ते तजौ बैर और प्रीति|
काटे ,चाटे श्वान के दोउ भांति विपरीत ||
कहि रहीम कैसे निभै,केर बेर को संग |
वे डोलत रस आप ने ,तिनके फाटत अंग ||
४.) जब भी ऐसा अनुभव हो तुम अकेले हो ,तुम्हे कोई मार्गदर्शक या सच्चा साथी चाहिए,परम सत्ता को याद कीजिये ,वह हमेशा तुम्हारे साथ है | इस शरीर में चलने वाली हर सांस उसका दिव्य उपहार है | यह चराचर जगत जिसकी विभूति का एक बहुत छोटा अंश है ,तो वह परमेश्वर ,कितना विशाल और शक्तिशाली होगा ,उसके आगे हम सब बौने हैं |वही हमें बुराई से अच्छाई की ओर ले जाएगा |
५.) चापलूसी और चापलूसों से हमेशा बचकर रहो | चापलूसी करने से तुम्हारी योग्यता का हनन होगा और चापलूसों से घिरे होने पर तुम्हे अपने दोष नहीं पता चल पाएंगे | आत्मसमीक्षा और आत्म सुधार ही आत्मउत्थान करने का श्रेष्ठ साधन हैं |

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