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“कामचोर”

SUBODHA
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कभी आप ने या हमने सोचा है, अपने जीवन काल में एक इंसान कितना कार्य करता होगा | और ऐसा कार्य जिससे उसका ,परिवार का ,समाज का और प्रकृति का भला हुआ हो | बहुतों ने अवश्य सोचा होगा और कइयों ने तो कदापि नहीं | यदि हम अपने २४ घंटे का ही एक सूक्ष्म विश्लेषण करे,तो पाएंगे ८-१२ घण्टे सोने में निकल गए,कुछ दैनिक कार्यों में,कुछ अनर्गल प्रलाप में और शेष आवश्यक कार्य में | ऐसे, बहुत कम समय मिल पाता है,हमें कुछ अच्छा कर गुजरने के लिए,पर फिर भी बहुत हस्तियों ने कुछ अलग कर के दिखाया | वह भी लोग हमारे जैसे ही थे,हो सकता है ,हमसे अधिक संघर्ष पूर्ण जीवन रहा हो ,उनका |
मेरा ऐसा विश्लेषण है,धीरे -धीरे कुछ न करने वालों की संख्या में सतत वृद्धि हो रही है और इसका दुष्परिणाम बेरोजगारी के रूप में हमारे सामने है |
एक कहावत है न -,”बैठे से तो ,बेगार भली”,अर्थात -कुछ न कुछ करो जीवन में | जब ऐसा लगे कि,मैं क्या करूँ?,तो घर की सफाई ही करो,यत्र-तत्र बिखरी हुयी बस्तुओं को ही सुव्यबस्थित करो | यदि यह भी नहीं कर सकते हो तो,शांत होकर एकाग्रता का ही विकास करो | अच्छे विचार मन में जगाओ | सबका भला हो,सब आगे बढे | मेरे बाबा जी के कथनानुसार,सब में तुम तो अपने आप ही आ जाते हो |
जो इंसान कामचोरी और दूसरे को झूठा समझाने का कार्य करते हैं,वह दूसरे को मूर्ख नहीं बनाते,अपितु खुद ही हमेशा अँधेरे में रहते हैं | और उन्हें भी इस बात का ज्ञान है,कि किससे, कब और कितना,उन्होंने झूठ बोला,क्यूंकि कोई भी इंसान ,कभी भी अपने आप से झूठ बोल ही नहीं सकता | देह में व्याप्त परमात्मा का अंश,असत्य को स्वीकार ही नहीं करता |
अतः सत्य पथ पर अग्रसर होकर,कर्मनिष्ठ बनना ही जीवन का मूल लक्ष्य है|
नहीं तो –
येषां न विद्या,न तपो ,न दानं ;ज्ञान न शीलं ,न गुणो ,न धर्मः |
ते मृत्युलोके भुविभार भूता,मनुष्य रूपे मृगा इव चरन्ति ||

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