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सर्वप्रथम इस शब्द को मैंने प्राइमरी की ४-५ कक्षा की एक कविता में पढ़ा-उस कविता की कुछ पक्तियां मुझे अभी भी याद हैं ,जिसे मैं बचपन में पूरी लयबद्धता और तेज आवाज में गाया करता था-
यदि होता किन्नर नरेश, मैं राजमहल में रहता ,
सोने का सिंहासन होता ,सिर पर मुकुट चमकता .
बंदी जन गुण गाते रहते,संध्या और सवेरे ,……….. इसके आगे की पक्तियां मेरे स्मृति कोष से डिलीट हो गयी,क्योंकि साहित्य का स्थान एयरोप्लेन ने ले लिया ,पैसे जो कमाने थे.
तब मैं जानता था -किन्नर का अर्थ देवता होता है. बढ़ती उम्र और ज्ञान के साथ मैं अनेकार्थी शब्द समझा,और किन्नर का एक और अर्थ समझ में आया.
आगे चलकर मैंने शिखंडी के बारे में पढ़ा ,जिसे रणभूमि में अपने सामने देखकर महाभारत के महान योद्धा भीष्म पितामह ,जिसने भगवान की भी प्रतिज्ञा भंग करवाकर रथ का पहिया उठाने को विवश कर दिया ,ने अपने शस्त्र त्याग दिए ,क्योंकि शिखंडी पूर्व जन्म में स्त्री था .धन्य है भीष्म पितामह का ज्ञान और उनका आचरण. जो स्त्रियों पर अत्याचार करते हैं ,उनके लिए यह एक मिशाल हो सकती है.
समाज के किसी विशेष वर्ग या व्यक्ति के लिए अपमान जनक शब्द प्रयोग करना पूर्णतः गलत है,ऐसा मेरे बाबा जी ने सिखलाया.पर जिन्हे हर शब्द में अपमान नज़र आये ,उनका कुछ नहीं हो सकता या कहने वाला अच्छे शब्द को भी अपमान के लहज़े में कह सकता है.सम्मान या अपमान ह्रदय के अंतःस्थल का विषय है ,न कि मनोहारी शब्दों का.
अब जैसे कि ब्राह्मण से आप वामन कहो,चाहे पंडित कहो ,चाहे पंडितवा कहो सब ठीक है ,परन्तु हरिजन को, खुद को हरिजन कहे जाने पर भी आपत्ति हो सकती है .हाँ ,मैं मानता हूँ इस देश में कुछ एक जातियों का अन्य जातियों ने बहुत शोषण किया,पर मैं यह भी दृढ़तापूर्वक कह सकता हूँ ,कुछ व्यक्तियों ने छोटे तबके के लोगों कि बहुत मदद की.
मुझे ,कोई किसी के सामने हाथ फैलाये ,गिड़गिड़ाए तो बिलकुल अच्छा नहीं लगता.यदि आप असहाय हैं तो अलग बात है ,लेकिन भारत जैसे विशाल और धार्मिक देश में भीख मांगना पेशा नहीं बनना चाहिए. कुछ एक मांगने वाले तो ,अतिक्रमण भी कर सकते हैं.
मानो मांगना ,उनका जन्मसिद्ध अधिकार हो.
कभी -कभी ऐसी न्यूज़ भी पढ़ने या सुनने में आती है,कि यदि पैसे नहीं दिए तो झगड़ा हो गया,मारपीट हो गयी.पिछले किसी फेस्टिवल के अवसर पर शायद दिल्ली से कोई लड़का घर जा रहा था ,तो उसके साथ कोई घटना घटित हुयी.
मैं,इस देश के सर्वोच्च न्यायालय के १५ अप्रैल के उस न्याय का स्वागत करता हूँ ,जिसमे किन्नर को तीसरे लिंग का दर्जा दिया गया.
दुनिया , सदाचारी ,बुद्धिजीवी और कर्मठ लोग चला रहे हैं, न कि आवारा , नंगे ,लुच्चे और लफंगे………………………………………………….
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