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भारतवर्ष की आत्मा ,गॉँव हैं ;ऐसा विचार हमारे राष्ट्रपिता ने रखा | आज मैंने विकिपीडिया में चेक किया भारत में कितने गॉँव हैं,तो पाया -६,३८,५९६ ( छह लाख अड़तीस हज़ार पांच सौ छियानबे ) | अवश्य ही इतने सरकारी नौकरी से रिटायर्ड लोग होंगे-अध्यापक,फ़ौजी,डॉक्टर,इंजीनियर आदि -आदि | भले ही इन लोगो की जड़े,गॉँव से जुडी हुयी हों,पर यह वापस गॉँव में न रहकर शहर में ही रहना चाहते हैं ,क्यूंकि गॉँव के लोगों से सही से सामंजस्य नहीं बैठ पाता उनका,उसी गॉँव के रहिवासी होने के वावजूद भी | और जो सुविधाएँ उन्हें अपनी नौकरी के दौरान मिली ,वो भी गॉँव में नहीं मिलती,अतः आवश्यक है गॉँव में रहने के बजाय अपने एकत्रित धन से किसी कसबे या शहर में थोड़ी जगह लेकर शेष जीवन आराम से बिताया जाये,ऐसी उनकी सोच |
पर यदि यह लोग अन्ना हज़ारे जैसे अपने गॉँव में रहने का और उसे सुधारने का मन बनाये तो क्या परिवर्तन नहीं आ सकता,अवश्य पर एक दृढ़ इच्छाशक्ति,दूरदर्शिता और सहनशीलता चाहिए |
सरकार भी ऐसे लोगो को विशेष पावर और कर्तव्य देकर गॉँव में नियुक्ति करे,गॉँव के लोग भी ऐसे व्यक्तियों को विशिष्ट आदर सम्मान दें ,उनके अनुसार चले,तो विकास हो सकता है | एक गॉँव में ६-७ किराना स्टोर होने की वजाय एक बड़ी दूकान हो,जिसमे कोई भी अपना पैसा इन्वेस्ट कर सके और उसे उसका हिस्सा मिले,शेयर बाज़ार जैसे कांसेप्ट से तो हम सर्वशक्तिमान बन सकते हैं |
मैं,जिस कॉलेज में १२ में पढता था -डी.न.कॉलेज तिर्वागंज,कन्नौज ,उत्तर प्रदेश ,उसी कॉलेज से टी.न. चतुर्वेदी (एक्स -आई .ऐ.यस.,कर्नाटक के भूतपूर्व राज्यपाल),श्री राम अरुण ( वरिष्ठ पुलिस अधिकारी) और भी अनेक जाने -माने क्षेत्रीय लोग वहां से निकले ,जिन्होंने अपनी प्रतिभा से देश -विदेश में बहुत ख्याति अर्जित की,पर यह वापस उस धरा पर नहीं गए | यदि यह लोग चाहते तो पूरे क्षेत्र में एक नया परिवर्तन कर सकते थे | भोली -भाली जनता इनके एक इशारे से पूरा नया इतिहास लिखने का दम -ख़म रखती थी,पर ,यह हो न सका |
और जब तक हम गॉँव में परिवर्तन नहीं करेंगे ,तब तक भारत कभी नहीं बदलेगा |
“जय हिन्द ,जय भारत ”
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