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“ग्राहक,देवता है या मूर्ख”

SUBODHA
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राष्ट्र पिता की उपाधि से विभूषित हमारे महान नायक मोहनदास कर्मचन्द(महात्मा) गांधी जी ने ग्राहक के ऊपर बहुत अच्छा और बड़ा वक्तव्य दिया है,उसमे से अभी मुझे इतना ही याद है,ग्राहक को देवता समझो. हमारे देश में पिछली किसी सरकार या संवैधानिक संस्था ने,” जागो ग्राहक जागो” का उद्घोष भी किया.भले ही देवता पूजा -पाठ से न जागते हो,पर ग्राहक रूपी देवता को जागना ही पडेगा,नहीं तो लुटता रहेगा.समाज और सरकार में ठगी करने वालों की कोई कमी नहीं है. अब सारे ठगी करने वालों के लिए कोई कानून बनाने की अपेक्षा ग्राहक को ही जगाना अधिक आसान और फायदेमंद है.
आज के इस सामाजिक परिवेश और सरकारी तंत्र में लगभग हर इंसान अपने आप को ठगा हुआ महसूस करता है,आप सबने भी ऐसा बहुत बार अनुभव किया होगा,कुछ अपने अनुभव मैं आप से शेयर करता हूँ –
१.) हमारी गली में एक सब्जी बेंचने वाली महिला से,लगभग २ माह पूर्व मैंने ३४ रुपये की सब्जी खरीदी और १०० का नोट दिया,मुझे पैसे वापस देने की बजाय,वह दूसरे को सब्जी देने लगी.मैंने कहा पैसे वापस दो,मैंने १०० का नोट दिया.तो वह बोली,१०० का किधर ५० का दिया,बगल में एक लड़का खड़ा था-बोली, इससे पूंछ लो.वह भी बोला-हाँ,५० का ही दिया.उसकी आवाज की तीव्रता के आगे,मेरी सच्चाई मौन होने लगी.मैंने कहा कोई बात नहीं आंटी,हो सकता है ५० का ही दिया हो,उससे १६ रुपये लेकर मैं वापस आया.
पर मैंने सोचा,यार ३२ साल की उम्र में अब तक मैं लगभग ३२ या उससे भी बहुत अधिक घाटों का पानी पी चूका हूँ,क्या मुझे यह भी नहीं मालूम,५० और १०० के नोट में क्या डिफ़्फरेंस है और जब मैं घर से गया था,तब मैंने अपने बैग से १०० के २ नोट ही अपनी जेब में रखे थे.काश मैं उस आंटी को नोट देते वक्त ही बोल देता ,१०० का नोट है आंटी.
पर उस दिन से मैंने कसम खा ली,आंटी अब तुम्हारी दुकान पर कभी नहीं आऊंगा.आंटी जी के दुकान के सामने से नित्य गुजरना होता है,पर यह निगाह उनकी सब्जियों की तरफ नहीं जाती. शायद अब उन्हें भी अहसास हो गया,सत्य की आवाज और आकृति,कितनी तेज और विशाल होती है.
दूसरा उदाहरण देने में लेख अधिक बड़ा हो जाएगा,अतः एक ही पर्याप्त है.लेख लिखते वक्त मैं हमेशा वह बाबा जी का वक्तव्य याद रखता हूँ,जो मुझे बचपन में बार -बार सुनाते थे-
“A POINT IS ENOUGH FOR A WISE MAN”.
“बुद्धिमान के लिए इशारा ही काफी होता है”.

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