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मैंने तपाक से कहा- नहीं,शायद उन्हें भी पूर्वाभास था ,मेरे उत्तर का,तभी तो बहुत धीरे से और संकुचित होकर कहा.अब मात्र इतने से तो आप को पूरी कहानी की स्पष्ट समझ होगी नहीं,विस्तार से सुननी पड़ेगी,तो आगे लिखते हैं –
हमारी गली में कुछ दिवस पूर्व एक पोस्टर लगाया गया,स्कूल के छात्रों को फ्री में छाता वितरण किया जाएगा,जिसे मैंने उसी दिन देख और समझ लिया था,जब वह पोस्टर लगा था.मैंने सोचा-यह फिर कोई नेता,रेवड़ी बाटने का कार्यक्रम कर रहा,वोट बटोरने के लिए.पर यही तो लोकतंत्र है.आखिरकार,कल छाते बाँटे गए.नेता जी की उदारता को प्रणाम; उनका सौभाग्य ,जो छाता हासिल करने में कामयाब हो गए;उनके प्रति सहानुभूति ,जिन्हे नहीं मिल पाया.
हमारी बिल्डिंग में एक लेडीज टेलर की दुकान,जैसे ही हम बाहर निकलते,तो उन्ही का दर्शन होता,उसमे एक लेडीज कार्य करती,दिन में उसके पति,हमारे भाईसाहब ड्यूटी जाते,स्पेयर समय में वह भी उसी दुकान पर समय देते,अच्छा कार्य है.पर बात करना तो कोई लेडीज से सीखे.यदि आप को समझना है -राजनीती की भाषा,कूटनीति की भाषा तो इन महिलाओं के दो बोल अवश्य सुन लिया करना प्रतिदिन,धीरे -धीरे आप परिपक्व हो जायेंगे,बातें करने में.बातें सुनने के लिए नज़रे मिलाने की कोई जरूरत नहीं हैं,इसीलिये हमारे निर्माता ने कान साइड में रखे और आँखे सामने.इधर -उधर से सुनते रहो और आगे चलते रहो.
वैसे तो अपने पास एक छाता है ही,पर हमारे डेढ़ वर्षीय सुपुत्र ने मम्मा,पापा के बाद गाय और छाता कहना ही शुरू किया.दिन में कम से कम ५० बार गाय और छाता कह ही देतें होंगे.बाल हठ क्या नहीं कर सकती और यदि त्रिया हठ भी साथ में मिल जाये,तो हठी राजा भी अपनी हठ छोड़कर आत्मसमर्पण कर देगा.
एक दिन मैंने अपने लाल का बाल मन बहलाने के लिए,अपने ड्यूटी बैग से छाता निकाल कर थमा दिया,मैंने सोचा २ वारिश इस छाते ने निकाल ही दी,तीसरी के अंत होते -होते शायद इसका भी अंत होना ही लिखा होगा,मेरे बच्चे के नन्हे हाथों से.
पर जैसे ही साहब ने छाता थामा,उसको दो बार जमीन पर पटक कर तीन ताने तोड़ दीं.बच्चा,उसकी माँ,मेरी माँ सब खुश,केवल मैं और छाता ही दुखी थे.
कल जब छाता वितरण का कार्यक्रम,जो ऊंची दुकान और फीकी पकवान,के मुहावरे को पूर्ण चरितार्थ कर रहा था,चल रहा था.मैं जैसे ही मार्केट से घर-गृहस्थी का सामान लेकर लौटा,हमारी धर्म पत्नी जी टेलर की दुकान के पास ही बोल दीं -छाता बट रहा इधर कहीं,”नन्नू” के लिए लेने जाओगे क्या?,यह दीदी अपनी “नियति”(टेलर की बेटी) के लिए ले आयीं.मैं तत्काल समझ गया-यह सुझाव,इन्ही दीदी जी का होगा.मैंने अपनी मैडम को समझाते हुए कहा -स्कूली बच्चों को दे रहे,सबको नहीं.बोली नहीं -उनकी बच्ची तो नहीं पढ़ती,पर मिल गया.मैंने कहा ,मैं नहीं जाऊंगा ,फ्री की चीज लेने,वह भी बच्चे के लिए . तब तक एक माँ ,जो अपने ३-४ वर्षीय छोटे बच्चे को लेकर छाता लेने गयी थी,बेचारी मुह लटकाकर वापस आ गयी,वह मारवाड़ी महिला बोली-उन्हीं को दे रहे ,जिनका वोटर लिस्ट में नाम हैं.मैडम जी तब तक अंदर जा चुकी थी,बाद में जाकर हमने बताया,वह दूसरी लेडी ऐसा बोल रही थी.
मैंने अपने बाबा जी को याद करते हुए,उनका वक्तव्य और वह खेत का स्थान पुनः-पुनः
याद किया जिसमे उन्होंने कहा था -” हमेशा भगवान से मांगो,वह १००० हाथ से बाँट रहा है,यह दो हाथों वाला इंसान किसी को क्या दे सकता है?”. और शाम तक एक छोटा छाता दुकान से लाकर बच्चे के हाथ में थमा दिया.
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