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“जाति और जातिवाद”

SUBODHA
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गीता ज्ञान में प्रभु ने अर्जुन को तो चार जातियों का ही ज्ञान दिया ,पर हमने अपने देश में लगभग ४००० जातियां तैयार की. अब ब्राह्मण की ही बात करते हैं,अपनी बात करने में हमेशा इंसान सेफ रहता है ,यदि मैं ख़राब और बुरा भी लिखूंगा तो अपने ऊपर,दूसरी जाति के लोग मुझ पर दोषारोपण नहीं कर पाएंगे.
समाज को सुचारू और व्यवस्थित ढंग से संजोने और चलाने के लिए वर्गीकरण आवश्यक है.वर्गीकरण आप आर्थिक आधार पर ,बुद्धिमत्ता के आधार पर,कर्म के आधार पर या बल के आधार पर जैसे चाहें वैसे करें. प्रत्येक मनुष्य को एक -दूसरे की आवश्यकता कभी न कभी लग ही जाती है.अनपढ़ को अपने किसी परिजन या प्रियजन का पत्र पढ़वाने के लिए और पढ़े लिखे को अपना कुछ मेहनत का काम करवाने के लिए. पढ़े लिखे लोग ऐसा समझते हैं -बौद्धिक श्रम ,शारीरिक श्रम से अधिक कठिन है. कलम चलाने के लिए ,तलवार या बन्दूक चलाने की अपेक्षा अधिक योग्यता चाहिए. बड़ी कंपनी का मैनेजमेंट सोचता ,वो लोग महान हैं ;वर्कर सोचता ,हम मैनेजमेंट के लोगों का पेट भरते हैं ,इसी अंतर्द्वंद में अनेक कंपनियां बंद भी हो जाती है,समय के साथ दोनों ,मैनेजमेंट और वर्कर्स, का नशा उतर जाता है.
मेरा यह मानना है -यदि किसान सुबह तीन बजे उठकर अपने हल -बैल के साथ बिना कुछ खाए पिए ,९ बजे तक, एक खेत में लांखो -करोङो परिक्रमाएं कर सकता है ,तो यदि वह थोड़ी सी चेष्टा करे ,तो वह और उसके बच्चे एरोनॉटिक्स और राकेट साइंस भी सीख सकते हैं. शायद एयरोप्लेन चलाना ,साइकिल चलाने से अधिक आसान है,पर किसान और मजदूर का बेटा आर्थिक तंगी और अपने जीवन के परेशानियों के कारण साइकिल से अधिक कुछ सोच ही नहीं पाता.
अब जाति पर बात करते हैं-मुझे बचपन से गंदगी से घृणा है ,यदि कोई इंसान साफ -सुथरा नहीं है तो भले ही वह ब्राह्मण क्यों न हो ,मैं उससे उचित दूरी बनाये रखता हूँ.
मैं बचपन में चारागाह में जानवर चराने भी जाया करता था ,अपने परिवार के एक बूढ़े बाबा(बाबा जी के चाचा जी ) के साथ ,वह मुझे एक तरफ बिठा देते ,दूसरे कोने में वह खुद बैठ जाते.एक बार बरसात के मौसम में,अचानक तेज बरसात होने लगी , जिधर मैं बैठा उधर एक इंसान साथ में ४-५ सूअर लेकर आया,वह वारिश से भीगने के कारण ठंड से काँप रहा था.मेरे पास उसने लगभग २ मीटर की एक बड़ी पॉलिथीन(बरसाती) देखी,तो बोला मुझे भी बिठा लो,मैंने कहा ,हाँ आ जाओ बाबा.२-३ घंटे बाद बरसात शांत हुयी. वो इंसान सूअर लेकर चला गया.मेरे बूढ़े बाबा जी दूसरे कोने से यह सब देख रहे थे.उसके चले जाने के बाद वह पास आकर बड़ा नाराज हुए.पास के नाले में बहते बरसाती पानी में मुझे नहाने के लिए कहा और बोले चलो घर पे आज लज्जाराम(मेरे बाबा जी ) से तुम्हारी शिकायत करेंगे.मुझे अपने बाबा जी का पूरा विश्वास ,वो मेरे सबसे क्लोज फ्रेंड,मेरा लँगोटिया यार.मुझे मन में पता था ,बाबा कुछ नहीं कहेंगे.घर जाकर ऐसा ही हुया.
एक बार ,मैं और बाबा जी, साथ में खेत के पास जा रहे थे.बरसात की सीजन में या अन्य ऋतुओं में भी कुछ लोग जानबूझकर सड़क के ऊपर ही मल त्याग कर देते हैं,निकलने बाला जब वहां से गुजरता ,तब थूंकता. मैंने भी थूंका ,बाबा जी तुरंत बोले -मल त्याग तो सभी करते हैं ,पर उचित स्थान पर. लोग उस इंसान पर थूंकते हैं ,जिसने यह सड़क के ऊपर गन्दा काम किया. एक कहावत है -“मेहतर है ,सो वेहतर है “.समाज की गंदगी को भी साफ करता ,खुद भी साफ रहता.
इसलिए प्रत्येक मनुष्य अपने कर्म को दिनों दिन अच्छा बनाये ,तो दासी पुत्र भी देवर्षि बन सकता है ,ऐसा मेरा दृढ विश्वास है.

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