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“जीवन लक्ष्य”

SUBODHA
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क्षिति,जल ,पावक ,गगन ,समीर का शरीर यह,ईश्वर का अंश जीव इसमें समाया है|
जगत में भटकाव है हर तरफ प्यारे,ध्यानस्थ होकर देखो तो राम ही रमाया है ||
लघु जीवन में न जाने कितने मोड़ हैं,क्यों रिश्ते -नातों का विस्तृत जाल फैलाया है |
सबको तसल्ली दे ,अलग होकर रमण करो,जीवन के अनुभवों से यही सार पाया है ||
जितनी इच्छाएं बने ,उतने नए रोड़े हैं ,ऐसा क्यों ,वैसा क्यों नहीं ,बस यही माया है |
जो कुछ भी हो रहा सब विधि का विधान है,तू तो एक द्रष्टा है ,यही शोध आया है|
वशिष्ठ भी न टाल सके राम के वनवास को,कंचन मृग भी हरी की योगमाया है||
मायामृग के पीछे धावत है मेरा प्रभु ,इसी ध्यान में तो डूबी योगमाया है ||
जिसके डर से काल भी कांप रहा,यशोदा से उस प्रभु ने स्वयं को बंधाया है |
राधा के प्रेम में नाच रहा स्वयं वह,उसमे डूब मीरा ने जग को भुलाया है ||
सगुन -निर्गुण के द्वन्द में मत भ्रमित हो मन,राम-कृष्ण गाये जा यदि शरीर पाया है ||

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