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“तीर्थयात्रा और देव दर्शन”

SUBODHA
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भारत देश में इतनी विविधता होते हुए भी एकता है ,तो शायद उसका मूल कारण हमारे एक जैसे विचार और देवता हैं,पहनावा भले ही अलग हो | कर्नाटक का इंसान वैष्णोदेवी और अमरनाथ के दर्शन करना चाहता है और कश्मीर का हिन्दू रामेश्वरम और कन्याकुमारी देखना चाहता है | ५२ शक्तिपीठ,द्वादस ज्योतिर्लिंग,ब्रह्मा ,विष्णु ,हनुमान ,सूर्य,गणेश,कार्तिकेय आदि के मंदिर जिनके दर्शनार्थ करोड़ों लोग प्रतिवर्ष इधर -उधर भ्रमण करते हैं,एक बहुत बड़ा कोष सरकार के खजाने में एकत्रित होता है ,इस तीर्थयात्रा से और इस देश का भगवान भी पैसे वाला हो जाता है; आम जनमानस की कामना भी पूर्ण अवश्य होती है,तभी तो दर्शनार्थी बढ़ते जाते हैं,दिनोंदिन | मैंने भी अभी तक कुछ देवदर्शन किये,जहाँ रहने का अवसर मिला,उसके निकटतम देव दर्शन तो अवश्य किये-उज्जैन के महाकाल,देवास की चामुण्डा देवी, तिरुमला के तिरुपति,मुंबई के सिद्धिविनायक,मुम्बा देवी,काशी के विश्वनाथ- माँ अन्नपूर्णा ,काल भैरव,संकटमोचक,नाशिक के त्र्यंबकेश्वर इत्यादि |
मैंने दर्शन के साथ -साथ दर्शनार्थियों को भी एनालाइज किया,९९.९ % लोग ऐसे आते ,मानो किसी पिकनिक पर आये हो, अधिकतर इंसान मंदिर में प्रवेश के दौरान भी तम्बाकू,बीड़ी ,गुटखा,पान चबाता रहेगा;बेफ़िज़ूल की बातें करता रहेगा,पर कुछ तो ऐसे महान अवश्य होते जो एकाग्र चित्त से परमात्मा को याद करते हुए गर्भगृह में अपने इष्ट की एक झलक पाने के लिए बेचैन रहते हैं | यह जो ९९.९ % लोग मंदिर जाने से पूर्व अपने आप को सुधार लें,तो भगवान इनके पास आने लगे,इन्हे मंदिर जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी |
मैंने रामचरितमानस में एक तथ्य एनालाइज किया,शिव जी जब भी राम दर्शन के लिए आये,तो या तो सबसे पहले और नहीं तो सबसे बाद में,भीड़ से बचकर अलग से उन्होंने अपनी मुलाकात रखी और स्तुति की | भगवान से साक्षात्कार एकांत में ही संभव है,भीड़ में भी होने पर आप को उसका अनुभव करने के लिए नेत्र बंद करने पड़ेंगे |
पुराने समय में कोई बिरला ही चारधाम,गया आदि की यात्रा पर जाता था,लोगों की ऐसी धारणा थी,जो गया गया ,वो चला गया अर्थात उसके वापस आने की उम्मीद कम ही होती थी | केदारनाथ त्रासदी को टीवी पर देखकर,मेरी यह धारणा और मज़बूत हो गयी | भगवान घट -घट वासी है | एक कहावत है –
कर्म तेरा अच्छा है ,तो किस्मत तेरी दासी है |
नियत तेरी साफ़ है, तो घर में मथुरा काशी है ||
और जब भी किसी मंदिर में जाओ,तो ऐसे समय पर और ऐसे दिन जाओ जब कम से कम भीड़ हो,मुझे पूरा और सच्चा विश्वास है,ईश्वर हमारी पुकार उस दिन भी सुन लेगा |
और अंत में तुलसी के शब्दों में –
|| कलियुग केवल नाम अधारा | सुमिरि -सुमिरि नर उतरहिं पारा ||

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