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“तुम, मेरे “बाल गुरु” हो”

SUBODHA
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तुमको पाकर अभिभूत हुआ मैं,
तुमको देखा तो प्रशांत हुआ मैं ,
प्रियवर,तेरी किलकारी से,
नित नव मंगल पूर्ण हुआ मैं .
जीवन के इस बेला में ,तुम एक उद्द्देश्य बनकर आये|
मैं क्या पालूँगा तुमको ,तुम मेरा दुःख हरने आये ||
सदा रहा मैं एकाकी,तुम नव साथी बनकर आये |
मेरे बच्चे बनकर ,अपना अनुराग प्रगट करने आये ||
हे रूद्र अंश ,हे ब्रह्म रूप तुम मेरा हित करने आये |
हे उपमन्यु गोत्र के प्रिय वंशज,तुम मेरा तम हरने आये ||
पा……….पा…………..की ध्वनि मेरे कानों में हर पल गूंजे|
मानो कोयल प्रिय शब्दों से नित्य मधुर नवरस घोले ||
ग्रंथों से मैंने जाना था,वेद -प्यास का पुत्र प्रेम ,
ग्रंथों में मैंने पाया था ,दसरथ का वह सत्य प्रेम ,
पर तेरी रुदन भरे स्वर में मैं जब पा..पा..सुनता हूँ ,
अपने मानस के मंदिर में एक नया ग्रन्थ पा लेता हूँ ||
चाह नहीं वैराग्य मिले,मुझको जंगल में जा कर |
चाह नहीं मैं तप लीन रहूँ,तुमको हर पल बिसराकर ||
मेरे मानस मंदिर में तुम हर पल स्थित रहना |
मेरी सांसों की माला पर,तुम राम -राम बनकर फिरना ||

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