- 240 Posts
- 617 Comments
विगत वर्ष जब देश की धर्म संसद साईं नाम पर चर्चा और चिंतन कर रही थी ,तभी एक दिवस रामचरितमानस का पाठ करते हुए मेरा ध्यान साईं शब्द पर केंद्रित हुआ ,मन में विचार आया,तुलसी को भी साईं शब्द से प्यार है ,बाबा ने अपनी कृति में गोसाईं ,सुर साईं एवं साईं शब्द का प्रत्येक कांड में प्रयोग किया | मैं रीडर्स के समक्ष उन चौपाइयों को रखना चाहता हूँ ,जिसमे गोस्वामी जी ने अपने इष्ट को साईं कहा –
तब देवन्ह दुंदुभी बजाईं | बरषि सुमन जय जय सुर साईं ||
बोले मधुर बचन सुर साईं | मुनि कहँ चले विकल की नाई ||
तुम्हहि देत अति सुगम गोसाईं |अगम लागि मोहि निज कृपनाई ||
सब सुत प्रिय मोहि प्रान की नाई | राम देत नहि बनत गोसाईं ||
तौ शिवधनु मृणाल की नाई | तोरहुँ राम गनेस गोसाईं ||
कृपा कोप बध बँधब गोसाईं | मो पर करिअ दास की नाई ||
जौं तुम्ह औतेहु मुनि की नाई | पद रज सिर सिसु धरत गोसाई ||
मोहि कृतकृत्य कीन्ह दोउ भाई | अब जो उचित सो कहिअ गोसाईं ||
अब सब बिप्र बोलाइ गोसाईं | देहु धेनु सब भांति बनाईं ||
बिप्र सहित परिबार गोसाईं | करहि छोहु अब रौरिहि नाईं ||
आयसु होइ सो करौं गोसाईं | सेवकु लहइ स्वामी सेवकाई ||
अति विषाद बस लोग लुगाई | गए मातु पहिं राम गोसाईं ||
देव पितर सब तुम्हहि गोसाईं | राखहुं पालक नयन की नाईं ||
दीन्हि मोहि सिख नीकि गोसाईं | लागि अगम अपनी कदराई ||
गुर पितु मातु बंधु सुर साईं | सेइअहि सकल प्रान की नाई ||
सब कै सार सँभार गोसाईं | करबि जनक जननी की नाई ||
करुणामय रघुनाथ गोसाईं | बेगि पाईअहि पीर पराई ||
जोगवहिं जिनहहिं प्रान की नाईं | महि सोवत तेइ राम गोसाईं ||
काल करम बस होहिं गोसाईं | बरबस राति दिवस की नाईं ||
कुल कलंक करि सृजेउ बिधाता | साईं दोह मोहि कीन्ह कुमाता ||
सुनि रिधि सिधि अनिमादिक आईं | आयसु होइ सो करहिं गोसाईं ||
बिनु पूछे कछु कहउँ गोसाईं | सेवकु समय न ढीठ ढिठाई ||
पाहि नाथ कहि पाहि गोसाईं | भूतल परे लकुटि की नाईं ||
देब काह हम तुम्हहि गोसाईं | ईधनु पात किरात मिताई ||
पुनि जेहि कहँ जस कहब गोसाईं | सो सब भांति घटिहि सेबकाई ||
गुर गोसाईं साहिब सिय रामू | लागत मोहि नीक परिनामू ||
जगु अनभल भल एक गोसाईं | कहिअ होइ भल कासु भलाई ||
बूझब राउर सादर साईं | कुसल हेतु सो भयउ गोसाईं ||
स्वामि गोसाइहि सरिस गोसाईं | मोहि समान मैं साईं दोहाई ||
धन्य भरत जय राम गोसाईं | कहत देब हरषत बरिआईं ||
पुरजन परिजन प्रजा गोसाईं | सब सुचि सरस सनेह सगाई ||
सहित अनुज मोहिं राम गोसाईं |मिलिहहिं निज सेबक की नाईं ||
ते तुम्ह सकल लोकपति साईं | पूछेहुँ मोहि मनुज की नाईं ||
सुर नर मुनि सचराचर साईं | मैं पूछहुँ निज प्रभु की नाईं ||
मोर न्याउ मैं पूछा साईं | तुम्ह पूछहु कस नर की नाईं ||
धर्म हेतु अवतरेउ गोसाईं | मारेहु मोहि व्याध की नाईं ||
आन दंड कछु करिअ गोसाईं | सबही कहा मंत्र भल भाई ||
सो परनारि लिलार गोसाईं | तजउ चउथि के चंद की नाईं ||
निकट काल जेहिं आवत साईं | तेहि भ्रम होइ तुम्हारेहि नाईं ||
देखहु कपि जननी की नाईं | बिहसि कहा रघुनाथ गोसाईं ||
जिमि सिसु तन ब्रन होइ गोसाईं | मातु चिराव कठिन की नाईं ||
सील कि मिलु बिनु बुध सेबकाई | जिमि बिनु तेज न रूप गोसाईं ||
नारी विबस नर सकल गोसाईं | नाचहिं नट मर्कट की नाईं ||
बाहिज़ नम्र देख मोहि साईं | बिप्र पढ़ाव पुत्र की नाईं ||
उदासीन नित रहिअ गोसाईं | खल परिहरिअ स्वान की नाईं ||
सोई मुनि तुम्ह सन कहेउ गोसाईं | नहि आदरेहु भगत की नाईं ||
सो मायाबस भयउ गोसाईं | बंध्यो कीर मरकट की नाईं ||
राम भजत सोई मुकुति गोसाईं | अनिच्छित आवइ बरिआईं ||
कुछ एक चौपाईं में मंदोदरी ने रावण के लिए साईं शब्द प्रयोग किया | पर तुलसी के साईं तो राम ही हैं |
मेरी समझ से रामचरितमानस के अतिरिक्त अन्य किसी हिन्दू ग्रन्थ में साईं शब्द नहीं मिलेगा |
Read Comments