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“तुलसी,तुलसीदल है”

SUBODHA
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आत्मा और परमात्मा,जीव और ईश्वर की कोई तुलना नहीं की जा सकती| ईश्वर सर्वत्रव्याप्त,जीव देह के बंधन में बंधा हुआ अपना प्रारब्ध और कर्मफल भोग रहा है | जीव हमेशा परेशान है ,परमात्मा हमेशा सत्च्चिदानन्द है | जीव अपने पराये के मोह में भटककर,संसार में सतत कष्ट पा रहा है | परमात्मा जगत का श्रष्टा होकर भी जगत से निर्लेप है | इसलिए जीव दीन है,तो जगदीश ,दीनदयाल है ;जगत में जन्म लेने वाला प्रत्येक जीव दरिद्र है ,तो ईश ,दरिद्रनारायण है;जीव पतित है ,ईश्वर पतितपावन है,जीव रोगी और भोगी है,ईश्वर महायोगी है………………………………………………………………………
श्रीमद्भागवत के मंगलाचरण में परमहंसशुकदेव जी ने कहा ,
तपस्विनो ,दानपरा,यशस्विनो
मनस्विनो ,मंत्रविदा ,सुमंगला
क्षेमं न विन्दन्ति ,विना यद अर्पणम्
तस्मै सुभद्रश्रवसै नमो नमः ||
भावार्थ -चाहे कितना भी बड़ा तपस्वी हो ,चाहे कोई दानवीर हो ,चाहे बहुत यश का धनी व्यक्ति हो ,चाहे मनीषी ,विचारक हो ,या बड़े -बड़े महान मंत्रो का ज्ञाता हो ,चाहे सतत कल्याण पथ का पथिक हो ;पर तब तक किसी का भी कल्याण नहीं हो सकता ,जब तक वह अपने आप को ईश्वर के चरणो में समर्पित न कर दे ,ऐसे पवित्रकीर्ति वाले प्रभु को हम नमस्कार करते हैं |
यही बात गोस्वामी तुलसीदास जी ने उत्तरकाण्ड में कही ,
साधक सिद्ध विमुक्त उदासी | कवि कोविद कृतज्ञ सन्यासी ||
जोगी सूर सुतापस ज्ञानी | धर्म निरत पंडित विज्ञानी ||
तरहि न विनु सेये मम स्वामी | राम नमामि नमामि नमामि||
सरन गए मोसे अघरासी | होहिं शुद्ध नमामि अविनाशी ||
अतः उस प्रभु के सामने सभी दीन हैं ,सभी याचक है ,उसकी कृपा के विना ,पत्ता तक नहीं हिलता और उसके सामने दीन बनने में ही कल्याण है, क्यों कि –
तात राम नहि नर भूपाला | भुवनेश्वर कालहु कर काला ||
मैंने अपने बाबा जी से एक बार पूछा,सुबह बन्दर कहने से दिन अच्छा नहीं बीतता क्या? क्यूंकि सुन्दरकाण्ड में हनुमान जी ने विभीषण से कहा –
प्रात लेहि जो नाम हमारा | तेहि दिन ताहि न मिले अहारा ||
बाबाजी हंसकर बोले ,ऐसा नहीं है,हनुमान जी ने विभीषण के सामने अपनी वाह-वाही नहीं की और यह समझाने की कोशिश की- प्रभु समदर्शी हैं |
अतः जैसे प्रभु को तुलसीपत्र प्रिय है,ऐसा बनने के लिए उसके प्रति हर पल आत्मसमर्पण का भाव रखना अत्यावश्यक है |
बाबा तुलसी के शब्दों में,मैं तो भांग के पौधे जैसा था ,पर ईश्वरीय अनुग्रह से तुलसी के पौधे जैसा बन गया | भांग और तुलसी के गुणों से शायद हम सभी भलीभांति परिचित हैं |
तुलसी की रचनाएँ ,रामभक्ति की पराकाष्ठा का प्रतिफल हैं | राम व्यक्ति नहीं ,ब्रह्म है | राम मात्र अयोध्या का राजा नहीं,अखिल ब्रह्माण्ड के कण -कण में व्याप्त शक्ति है |
और प्रभु के सभी रूपों से बाल रूप की स्तुति अधिक सहज है | बच्चा बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाता है ,राजा के सामने अधिक अनुनय -विनय करनी पड़ती है |
तुलसी की कृति रामचरितमानस आध्यात्मिक ,पारिवारिक ,सामाजिक ,जातीय ,राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सभी समस्याओं का हल है |
गीताप्रेस की साइट पर रामचरितमानस इंग्लिश भाषा में भी फ्री में डाउनलोड की जा सकती है |
बाबा तुलसी ने अपने आप को ,अपनी काव्य प्रतिभा को बहुत छोटा बताया ,कहा मेरे अंदर सब अवगुण ही हैं ,बुद्धिजीवी मुझे दोष दे तो कोई बात नहीं ,पर इतना अपने बारे में लिखने पर भी जो मेरी रचना को छोटा समझे ,वह मुझसे अधिक जड़मति है |
इस अनाथ बालक ने अपने मन को ऐसी रामकथा सुनायी ,कि वह तुलसी बनकर प्रभु के चरणो में परम विश्राम पा गए |
||| जय श्री राम |||

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