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“दहेज़”

SUBODHA
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इस शब्द को सुनते या पढ़ते ही ,कुछ के रोंगटे खड़े हो जाते होंगे ,तो कुछ के दिल खिल जाते होंगे.पिछले १-२ दसक में यह शब्द इतना भयाबह हो गया कि समाज के बीच में इसका दीर्घ उच्चारण करना मानो अपराध हो.इस शब्द ने कुछ एक को तो आबाद कर दिया ,परन्तु बहुतों को बर्बाद कर दिया.कइयों का तो पूरा परिवार तबाह हो गया-जेल में पड़े-पड़े या फिर कोर्ट के चक्कर लगाते -लगाते.कई नारियों ने तो इस शब्द से प्रेरित प्रताड़ना को झेला और जब विवश हो गयी ,तो आत्महत्या को ही अपना अंतिम समाधान समझा.कुछ को तो उनके परिवार ने ही उन्हें मार डाला.
मैंने इस शब्द के बारे में बहुत सुना,कुछ पढ़ा और कुछ इस शब्द के विस्तार को करीब से देखा.
मेरे नाना जी ,मेरी माँ जी की शादी के लिए बहुत परेशान हुए, ४-५ साल तक लड़का खोजने के लिए परेशान रहे ,जो भी कहीं कोई बता देता वहां जाते.वह बहुत एनालाइजर और हाज़िर जवाबी थे.
एक जगह उनके एक सम्बन्धी ले गए,लड़के के घर पहुँचकर सब बातचीत होने के बाद उनके सम्बन्धी बोले इनके पास २० बीघे खेत है और २०००० रुपये मांग रहे ,नाना जी तुरंत बोले हम १००० रुपये बीघे इनके खेत नहीं ले पाएंगे ,चलो यहाँ से.(यह १९७९-८० का वाकया रहा होगा ).
एक लड़के के बारे में किसी ने बताया वो बीना(भोपाल ,मध्य प्रदेश) के कॉलेज में लेक्चरर है ,वो बीना तक गए ,पता किया वहां सब झूठ पाकर बापस आ गए.
बाद में वह हमारे ही गॉव के एक दुसरे परिवार में अपने एक सम्बन्धी के साथ आये ,उनके घर पहुँचने पर लड़के की माँ ने मोटे और काले पराठे बनाकर पूरी बास्केट सामने रख दी .वह बाहर आकर बोले कहाँ लेकर आ जाते हो यार.जो इंसान सही से अच्छा खाना नहीं खा और परोस सकता ,उसके घर में हमारी लड़की क्या सुखी रहेगी.
बाद में उनके सम्बन्धी ने कहा -चलो इसी गॉव में एक दुबे परिवार में भी एक लड़का है ,देख लेते हैं. हमारे घर आने पर उन्हें कुछ ठीक लगा होगा .घर की व्यबस्था ,खानपान ,बाबा जी के बात करने का स्टाइल .बाबा जी ने नाना जी से कहा जहाँ आप ने पहले देखा ,उनके पास खेत अधिक हैं,हमारे पास उतने खेत नहीं हैं, तिवारी. नाना जी ने उत्तर दिया -चाहे वो आसमान से लगे हो ,पर हम उनके घर शादी नहीं करेंगे.
यह सब आत्मगाथा लिखने के पीछे ,एक ही कारण है कि नए लोग जान सकें कि पुराने लोग अपनी कन्या के लिए वर कैसे खोजते थे.और आजकल इतना समय किसके पास है जो अपने बच्चों को आपबीती बता सके ,यदि मेरी अगली पीढ़ी उचित समझेगी ,तो पढ़ लेगी ,शायद उसको भी अपने पूर्वजों से कुछ सीख मिले.
१९८० में उन्होंने माँ जी का विवाह किया और १६००० रुपये खर्च किये, और आजीवन सहयोग करते रहे पूरे हर्ष पूर्णः मन से ,न कि कोई आभार स्वरुप.(शादी से पूर्व उन्होंने हमारे पिता जी से पूछा तुम्हारी भी कोई इच्छा या मांग है,पिता जी ने कहा नही ,हमारी कोई मांग नहीं.)
आजकल सब कुछ बदल रहा है ,रिश्ते -नाते और उनकी अहमियत घटती जा रही है .शादी एक बोझ और समझौता बनती जा रही है.रिश्तों के बीच में कानून ,वकील ,कोर्ट सब कुछ आ जाता है .जो रिश्ते आग ,जल ,आचार्य ,पृथ्वी ,ध्रुव तारे को साक्षी मानकर बनाये जाते थे ,वो कानून के हिसाब से बनने लगे.
माँ-बाप अपने बच्चों को नहीं समझ पा रहे और बच्चे माँ- बाप को.
दहेज़ जो प्रीतिवर्धक और पोषक तत्त्व था,वो ही शोषक और कलंक बन गया.नए कानून बन गए.कानून हर समस्या का हल नहीं हो सकता .नए कानून के मुताबिक लड़की का अपने पिता के घर पर अधिकार है, तब से बड़े शहरों में घर के ऊपर भाई -बहनो में झगडे होने लगे.अब शायद पुनः किसी नए कानून की आवश्यकता होगी………………………..

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