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यह दुर्गासप्तशती के चौथे अध्याय के २१ वे श्लोक की प्रथम पंक्ति है ,जिसका अर्थ -देवि आप का शील दुराचारियों के बुरे वर्ताव को दूर करने वाला है. अर्थात अंगुलिमाल जैसा भयंकर अपराधी भी महात्मा बुद्ध के एक वाक्य से -” मैं तो ठहर गया,पर तू कब ठहरेगा”- अपने जीवन में आमूल -चूल परिवर्तन कर सकता है.जितने भी अवतार , महान आत्माए और महापुरुष अभी तक हुए ,हैं या आगे भी होंगे उनमे शील अवश्य होगा. रामचरितमानस में बाबा तुलसी ने कलियुग का वर्णन करते हुए लिखा –
तामस बहुत रजोगुण थोरा ! कलि प्रभाव विरोध चहुँ ओरा!!
इस संसार में आकर त्रिगुण रहित बनना तो बहुत दुष्कर है,पर फिर भी अनेक परमहंस इस देश में हुए ,हैं और आगे भी होंगे.भारत वर्ष की धरती संत-देवभूमि है,यहाँ अध्यात्म की पराकाष्ठा हमेशा रहेगी,भले ही वह हिमालय की गुफाओं से ही सारे व्रह्माण्ड में गूंजे,पर गूंजेगी अवश्य.
हमें सतोगुणी बनने का प्रयत्न करना चाहिए,यदि वह भी न हो सके तो रजोगुणी ही बनो. पर तुलसी ने लिखा,संसार तमोगुणी प्रधान है,रजोगुण भी अति अल्प मात्रा में है.सतोगुण का तो अता-पता ही नहीं. तमस हर जगह विरोध करता है.
जैसे यह गुण हैं,वैसे ही भोजन के भी प्रकार हैं,गीता में प्रभु ने विस्तार से अर्जुन को समझाया. गांव में कहावत है -“जैसा खाओ अन्न ,वैसा बने मन” और “जैसा पिओ पानी ,वैसी बोलो वानी”.
पहले, वर्ष की दोनों चैत्र और आश्विन की नवरात्रियों में हर घर में कलश रखे जाते थे.एक ही घर में दो-चार कलश रखते थे,एक ही परिवार के चार लोग.साथ में पूजा -पाठ होता था .
माँ अन्नपूर्णा,पूरे परिवार पे अपना शील वरसाती थी,अब सब विखर चुका है.धर्म भी भीड़ और हंगामे की भेट चढ़ रहा है. वटुक और ज्ञानी ,वेद को बेंच रहा है. समाज का शील दिनोदिन क्षरण हो रहा है.
कल मैं , यहाँ मुंबई के एक पोस्ट ऑफिस में एक पत्र, स्पीड पोस्ट करने गया,६७ रुपये मूल्य हुआ,मैंने कहा ,सर १०० का नोट है हमारे पास.साहब ने प्रतिउत्तर दिया -मैं नोट फाड़ के लूँ क्या? मैंने कहा नहीं , आप थोड़ा रुको ,मैं बाहर से,किसी दुकान से कुछ खरीद कर चेंज लेकर आता हूँ,अच्छा हुया ,पत्र पर स्पीड पोस्ट का स्टीकर लग चुका था,नहीं तो वह पत्र मुझे वापस ही थमाने वाले थे.
इसलिए शीलवान होना बहुत जरूरी है ,शील ही हमें बात करना सिखाता है.न जाने हमारे जैसे कितने आये और गए इस संसार में अब तक और आगे भी आते रहेंगे.
हमारे बाबा जी कहते ,किसान खेत -खलिहान से कितने भी अच्छे तरह से अनाज उठाये ,पर कुछ दाने ,छूट अवश्य जायेंगे,लेकिन ईश्वरीय व्यवस्था कितनी अच्छी है -कोई संसार में रहता भी नहीं और संसार कभी जीव से रहित भी नहीं होता.
अतः शीलवान अवश्य बनो.
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